छत्तीसगढ़ी समाज की मान्यता है कि फसल कटाई के बाद यह विवाह आयोजन प्रकृति की कृपा और समृद्धि का प्रतीक है।
जमशेदपुर के भालोबाशा में छत्तीसगढ़ी समाज ने एक अनूठी परंपरा का निर्वहन किया। समाज के लोगों ने गुड्डे-गुड़िया की शादी का आयोजन पूरे विधि-विधान से किया।
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इस विवाह समारोह में वास्तविक शादी की सभी रस्में निभाई गईं। हल्दी, मटकोर, नाच-गाना के साथ पंडित जी का मंत्रोच्चार और फिर बरात भी सजी और बारात का आगमन हुआ। जहां शादी के कर्म में सिंदूर दान, प्रीतिभोज और फिर विदाई हुई। छत्तीसगढ़ी समाज की मान्यता है कि फसल कटाई के बाद यह विवाह आयोजन प्रकृति की कृपा और समृद्धि का प्रतीक है।

समाज की महिलाओं ने बताया कि यह आयोजन बच्चों को संस्कृति से जोड़ने का माध्यम है।
बच्चों को संस्कृति से जोड़ने का माध्यम
समाज की महिलाओं ने बताया कि यह आयोजन बच्चों को संस्कृति से जोड़ने का माध्यम है। इससे बच्चों को विवाह की प्रक्रियाओं की जानकारी खेल-खेल में मिलती है। साथ ही यह उन्हें जीवन की जिम्मेदारियों के लिए तैयार करता है।
महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में विवाह गीत गाए कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ी समाज के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में विवाह गीत गाए। पुरुषों ने बारात में नृत्य किया। यह आयोजन सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का ही नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को नैतिक शिक्षा और सामुदायिक एकता का संदेश देने का भी माध्यम है। जमशेदपुर, जिसे ‘मिनी हिंदुस्तान’ कहा जाता है, में भारत के लगभग हर राज्य और संप्रदाय के लोग रहते हैं। यहां सभी अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को पूरी आस्था से निभाते हैं।
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आग पर चल किन्नरों और महिलाओं ने दिखाई आस्था:माता की मूर्ति स्थापना स्थल तक पहुंचीं कलश यात्रा, मुख्य आकर्षण रहा अग्नि कुंड

किन्नर और अन्य महिलाएं लंबी अग्नि रेखा पर नंगे पांव चलती हुई माता की अग्नि परीक्षा में शामिल हुईं।
जमशेदपुर में आस्था और भक्ति की मिसाल पेश करते हुए बिष्टुपुर नर्दन टाउन क्षेत्र में मां मंगला की विशेष पूजा का आयोजन किया गया। इस मौके पर किन्नर समाज और अन्य श्रद्धालु महिलाओं ने नंगे पांव सिर पर कलश लेकर भव्य शोभायात्रा के रूप में माता की मूर्ति स्थापना स्थल तक पहुंचीं। पढ़िए पूरी खबर…