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- Parivartini Ekadashi On 3rd September, Significance Of Parivartini Ekadashi, Vishnu Puja Vidhi, Ekadashi Vrat Puja Vidhi
11 घंटे पहले
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भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी और जलझूलनी एकादशी कहा जाता है, इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की विशेष पूजा करनी चाहिए। इस बार ये व्रत 3 सितंबर, बुधवार को है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि योगनिद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इस व्रत को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी का अर्थ है – परिवर्तन की एकादशी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस तिथि पर भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में रहते हुए करवट बदलते हैं, जिससे सृष्टि के संचालन में एक नवीन ऊर्जा का संचार होता है। कुछ क्षेत्रों में इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद होने वाली सूर्य पूजा का आयोजन भी होता है।
ऐसे कर सकते हैं परिवर्तिनी एकादशी का व्रत
- परिवर्तिनी एकादशी व्रत दशमी तिथि (2 सितंबर) की रात से ही शुरू हो जाता है। दशमी तिथि की रात ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- एकादशी (3 सितंबर) को ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान के बाद भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र के सामने बैठकर व्रत और पूजन करने का संकल्प लें। इस दिन वामनदेव की भी पूजा करनी चाहिए।
- भगवान विष्णु पर शुद्ध जल चढ़ाएं। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और मिश्री) से अभिषेक करें।
- फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र अर्पित करें।
- भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और वामन अवतार की कथा सुनें।
- अंत में आरती करके नैवेद्य अर्पित करें और प्रसाद का वितरण करें।
व्रत के लिए खान-पान से जुड़े नियम
इस व्रत में अन्न का त्याग आवश्यक है। संभव हो तो इस तिथि पर पूर्ण उपवास करें। यदि पूरे दिन भूखे रहना संभव न हो तो केवल एक समय फलाहार कर सकते हैं। दूध, फल, फलों के रस का सेवन कर सकते हैं। व्रत करने वाले भक्त को शरीर और मन दोनों की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
रात्रि जागरण और द्वादशी के नियम
एकादशी की रात में भगवान विष्णु और वामनदेव की मूर्ति या चित्र के समीप जागरण करें। द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करें। इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन कराकर, दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
ये व्रत सभी प्रकार के पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा बताते हुए कहा है कि ये व्रत त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने के समान पुण्य देता है।