Officials provide protection to illegal animal dairies; Rs 2.5 crore budget every year for catching animals | निगम का अभियान फेल: अवैध पशु डेयरियों को अधिकारियों का संरक्षण; पशु पकड़ने के लिए हर साल ढाई करोड़ का बजट – Jaipur News


तपती धूप व गर्मी के कारण जयपुर शहर की हर प्रमुख सड़क व पार्क के बाहर आवारा पशुओं का जमावड़ा रहने लगा है। शहर के चारदीवारी से लेकर प्रमुख बाजारों तक हर जगह बड़ी संख्या में आवारा पशु आमजन के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। यह पशु अचानक राह चलते वाहनों

.

बता दें कि आवारा पशु के हमले से अर्जेंटीना के पर्यटक जॉन लाम्पे की मौत हो गई थी। वहीं, इन पशुओं की वजह से हुए सड़क हादसे में कई लोग घायल हो चुके हैं। ऐसी घटनाओं के बाद भी नगर निगम प्रशासन नहीं चेत रहा है। साथ ही शहरी आबादी में 130 पशु डेयरियां संचालित हैं, लेकिन निगम प्रशासन उन पर लगाम नहीं कस रहा।

अगर प्रशासन कुछ सख्ती दिखाता भी है तो आनन-फानन में अभियान चलकर आवारा पशुओं को पकड़ने की मुहिम चलती है, लेकिन कुछ दिन बाद ही मामला ठंडा पड़ जाता है। सही तो यह है आवारा पशुओं का यह मुद्दा हमें देखने में छोटा लगता है, लेकिन है बड़ा गंभीर। गाय, भैंस या सांड़ ही क्यों, आवारा कुत्ते भी लोगों के लिए परेशानी बने हुए हैं। आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए शहर के ग्रेटर व हेरिटेज नगर निगम को हर साल ढाई करोड़ का बजट मिलता है।

प्रदेश में इस महीने के अंत तक प्री-मानसून की एंट्री होने की उम्मीद है और उस दौरान बीच सड़क पर खाने की तलाश में घूमते आवारा पशुओं से दोपहिया वाहन चालकों के दुर्घटना का अंदेशा भी बढ़ जाएगा। शहर की आबादी में 130 पशु डेयरियां संचालित है, जिनके पशु सड़क, सब्जी मंडियां तथा बाजारों के बीच बैठे रहते हैं। कोर्ट के आदेश पर हर साल निगम प्रशासन पशु डेयरियों को अवैध मानते हुए नोटिस जारी करता आया है। अभी तक करीब साढ़े 9 हजार से ज्यादा नोटिस दिए गए।

एक-एक डेयरी संचालक को 50 से 55 बार नोटिस थमाया गया, लेकिन यह पशु डेयरियां हटाई नहीं जा सकी। वजह साफ है, निगम की पशु नियंत्रण शाखा और डेयरी संचालकों के बीच की सांठगांठ। क्योंकि अगर मिलीभगत नहीं होती तो 11 साल में 78 हजार पशु पकड़े जाने के बावजूद जयपुर की सड़कों पर इतने आवारा जानवर नजर नहीं आते। निगम रोजाना 20 से 30 पशु पकड़ने का दावा करता है यानी एक महीने के 650 और एक साल में करीब 7600। जबकि हिंगोनिया गोशाला में 19 हजार पशु धन ही हैं यानी शेष 50 से 58 हजार पशु आबादी में संचालित डेयरियों में ही पल रहे हैं।

वीआईपी एरिये पर फोकस, आबादी नजरअंदाज
पशु नियंत्रण शाखा के कर्मचारी सिविल लाइंस, रामनिवास बाग, जेएलएन मार्ग तथा एमएलए क्वार्टर्स तथा वीआईपी रूट पर ही जा रहे हैं। ऐसे में आमेर रोड, रामगंज बाजार, जोरावरसिंह गेट, सुभाष चौक, कंवर नगर, गोविंददेवजी कॉलोनी, पुरानी बस्ती, घाटगेट तथा जनता मार्केट को नजर अंदाज कर दिया गया है, जिसके चलते यहां मुख्य बाजारों में भी आवारा जानवर घूमते देखे जा सकते हैं।

मिलीभगत से छुड़ा ले जाते हैं पशु

शहर से अवैध पशु डेयरियों को बाहर किया है तब से जुर्माना भी बढ़ा दिया गया। निगम एक पशु छोड़ने के 5 हजार वसूलता है। जितने दिन जानवर को गोशाला में रखा जाता है, उसमें प्रति दिन के हिसाब से 100 रुपए अतिरिक्त चारे के पेटे वसूले जाते हैं। इसके अलावा वकील तथा कागजात का खर्च अतिरिक्त लगता है यानी कुल 10 हजार रुपए प्रति पशु लिए जाने का प्रावधान है। इसलिए निगम बीच के रास्ते ही गोपाला सेे मिलीभगत कर 2 से 3 हजार रुपए लेकर ही पशुओं को छोड़ देता है।

समाधान – आबादी से पशु डेयरियां पूरी तरह से हटाई जानी चाहिए। गोपालकों को तीन जगह जमीन आवंटित की गई। रमलावाला, भाटावाला व हीरावाला, लेकिन ये लोग वहां गए नहीं। हकीकत यह है कि जब पशु पकड़ने का ठेका नहीं होता तब भी काम होता है यानी जरूरत तो सिर्फ बेहतर मॉनिटरिंग की है।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *