14 घंटे पहले
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नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने फ्यूचर एंड ऑप्शन्स (F&O) एक्सपायरी डे को बदलने के अपने फैसले को सोमवार तक टाल दिया है। इससे पहले NSE ने मार्च में ही कहा था कि 4 अप्रैल 2025 से एक्सपायरी गुरुवार की जगह सोमवार को होगी। यह वीकली के साथ मंथली, क्वार्टर्ली और हाफ इयरली कॉन्ट्रैक्ट्स पर लागू होना था।
निफ्टी के वीकली कॉन्ट्रैक्ट हर गुरुवार को एक्सपायर होते हैं। वहीं निफ्टी, बैंक निफ्टी, फिन निफ्टी, निफ्टी मिडकैप सिलेक्ट और निफ्टी नेक्स्ट50 के F&O कॉन्ट्रैक्ट्स की मंथली एक्सपायरी अंतिम गुरुवार को होती है। मंथली और तिमाही एक्सपायरी दिन एक्सपायरी महीने के अंतिम सोमवार को ट्रांसफर किए जाने थे।
NSE का यह फैसला भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के परामर्श पत्र के बाद आया है। सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि सभी स्टॉक एक्सचेंजों में इक्विटी डेरिवेटिव्स के लिए एक्सपायरी के दिनों का एक मानक बना दिया जाए, इन्हें मंगलवार या गुरुवार तक सीमित किया जाए।
SEBI के कंसल्टेशन पेपर के मुताबिक…
- हर एक एक्सचेंज को अपने सभी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए मंगलवार या गुरुवार में से किसी एक दिन को चुनना होगा।
- हर एक एक्सचेंज अपने चुने हुए दिन पर केवल एक बेंचमार्क इंडेक्स कॉन्ट्रैक्ट के लिए वीकली एक्सपायरी ऑफर कर सकता है।
- बाकी सभी कॉन्ट्रैक्ट एक्सचेंज के चुने हुए दिन के अनुसार महीने के अंतिम मंगलवार या अंतिम गुरुवार को एक्सपायर होंगे।
- इक्विटी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट – बेंचमार्क इंडेक्स फ्यूचर्स, गैर-बेंचमार्क इंडेक्स F&O, और सिंगल स्टॉक F&O की न्यूनतम अवधि एक महीने होगी।
- इस कदम से एक्सपायरी के दिन फिक्स्ड और स्थिर होंगे। इसका मकसद कंसनट्रेशन का जोखिम कम करना और मार्केट में स्थिरता लाना है।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज बाजार का फीडबैक लेगा
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी, BSE ने कहा है कि वो डेरिवेटिव्स एक्सपायरी नियमों में बदलाव पर प्रतिक्रिया देने से पहले बाजार का फीडबैक लेगा। बीएसई के शेयरों में आज 15% की तेजी है। यह 5,378 रुपए पर कारोबार कर रहा है।
जानें क्या है फ्यूचर एंड ऑप्शन?
फ्यूचर एंड ऑप्शन्स का इस्तेमाल हेजिंग या स्पेकुलेशन के लिए किया जाता है:
1. फ्यूचर: फ्यूचर एक तरह का कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमें दो पक्ष (खरीदार और विक्रेता) इस बात पर सहमत होते हैं कि वे भविष्य में एक निश्चित तारीख पर एक निश्चित कीमत पर कोई स्टॉक, इंडेक्स या कमोडिटी खरीदेंगे या बेचेंगे। इसे “फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट” कहते हैं।
मुख्य बातें:
- यह एक बाध्यकारी समझौता है, यानी आपको कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को पूरा करना ही पड़ता है।
- इसमें “लॉट साइज” होता है, जैसे Nifty 50 का एक लॉट 25 यूनिट्स का हो सकता है।
- पूरी राशि देने की जरूरत नहीं होती, बल्कि मार्जिन (अमानत) जमा करना पड़ता है।
- एक्सपायरी डेट पर सेटलमेंट होता है, जो आमतौर पर हर महीने का आखिरी गुरुवार होता है।
उदाहरण: मान लीजिए आपने निफ्टी 50 का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट 24,000 पर खरीदा। अगर एक्सपायरी पर निफ्टी 24,500 पर पहुंचता है, तो आपको प्रति यूनिट 500 का फायदा होगा। अगर यह 23,500 पर जाता है, तो आपको नुकसान होगा।
2. ऑप्शन्स: यह भी एक कॉन्ट्रैक्ट होता है, लेकिन इसमें आपको अधिकार मिलता है (लेकिन बाध्यता नहीं) कि आप भविष्य में एक निश्चित तारीख तक किसी स्टॉक या इंडेक्स को एक निश्चित कीमत पर खरीदें या बेचें।ऑप्शन्स दो प्रकार के होते हैं:
- कॉल ऑप्शन: यह आपको खरीदने का अधिकार देता है। यानी, अगर आप कॉल खरीदते हैं और बाजार ऊपर जाता है तो फायदा होगा।
- पुट ऑप्शन: यह आपको बेचने का अधिकार देता है। यानी, अगर आप पुट खरीदते हैं और बाजार नीचे जा है तो घाटा होगा।
मुख्य बातें:
- ऑप्शन खरीदने के लिए “प्रीमियम” देना पड़ता है, जो उस कॉन्ट्रैक्ट की कीमत होती है।
- आपका अधिकतम लॉस सिर्फ प्रीमियम तक सीमित रहता है।
- इसमें भी लॉट साइज होता है और एक्सपायरी डेट होती है।
उदाहरण: मान लीजिए आपने रिलायंस का कॉल ऑप्शन 3,000 की स्ट्राइक प्राइस पर खरीदा, जिसका प्रीमियम 50 रुपए है। अगर एक्सपायरी तक रिलायंस का शेयर 3,200 पर पहुंचता है, तो आप 150 रुपए प्रति शेयर का मुनाफा कमा सकते हैं (3,200 – 3,000 = 50) अगर शेयर 3,000 से नीचे रहता है, तो आपका नुकसान सिर्फ 50 रुपए प्रीमियम तक सीमित रहेगा