नई दिल्ली2 घंटे पहले
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2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद EVM में NOTA का ऑप्शन जोड़ा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने NOTA से जुड़ी एक याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका शिव खेड़ा (मोटिवेशनल स्पीकर और You Can Win के लेखक) ने लगाई है। इसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है। पिटीशन के मुताबिक, अगर NOTA (नन ऑफ द अबव) को किसी कैंडिडेट से ज्यादा वोट मिलते हैं तो उस सीट पर हुए चुनाव को रद्द कर दिया जाए और नए सिरे से चुनाव कराए जाएं।
CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच शुक्रवार 26 अप्रैल को शिव खेड़ा की याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई है।
लोकसभा चुनाव 2024 के दो चरणों की वोटिंग के बाद लगी याचिका
सूरत में 22 अप्रैल को BJP कैंडिडेट मुकेश दलाल की निर्विरोध जीत के संदर्भ में याचिका दायर की गई है। दरअसल, यहां से कांग्रेस कैंडिडेट नीलेश कुंभाणी का पर्चा रद्द हो गया था। उनके पर्चे में गवाहों के नाम और दस्तखत में गड़बड़ी थी। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस कैंडिडेट समेत 10 प्रत्याशी मैदान में थे।
21 अप्रैल को 7 निर्दलीय कैंडिडेट्स ने अपना नामांकन वापस ले लिया। BSP कैंडिडेट प्यारे लाल भारती ही बचे थे, जिन्होंने सोमवार 22 अप्रैल को पर्चा वापस ले लिया। इस तरह भाजपा के मुकेश दलाल निर्विरोध चुने गए। पढ़ें पूरी खबर…
निर्वाचन अधिकारी ने 22 अप्रैल को मुकेश दलाल को जीत का सर्टिफिकेट सौंप दिया था।
याचिका में ये 4 दलीलें भी दी गईं…
- याचिकाकर्ता के मुताबिक NOTA के स्वरूप में सबसे अहम बदलाव महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और पुडुचेरी में देखा गया। इन राज्यों के चुनाव आयोगों (SEC) ने ऐलान किया कि यदि किसी चुनाव में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो वहां दोबारा वोटिंग होगी। NOTA की शुरुआत के बाद से चुनावी प्रक्रिया में यह पहला बड़ा बदलाव था।
- राज्य चुनाव आयोगों ने नोटिफिकेशन जारी किया, जिनमें NOTA को एक काल्पनिक उम्मीदवार बताया। इसमें साफतौर पर कहा गया- अगर NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले तो दूसरे नंबर के उम्मीदवार को विजेता घोषित करना NOTA के सिद्धांत और उद्देश्य का उल्लंघन है।
- सुप्रीम कोर्ट का NOTA लाने का मकसद यह उम्मीद करना था कि इससे चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि ऐसा नहीं हुआ। ऐसा तभी हो सकता है जब राज्य और केंद्र चुनाव आयोग महाराष्ट्र, दिल्ली, पुडुचेरी और हरियाणा की तरह NOTA को भी अधिकार दें।
- महाराष्ट्र, दिल्ली, पुडुचेरी और हरियाणा में पंचायत और नगरपालिका चुनावों से NOTA के लिए जो प्रयास शुरू हुआ है, उसे सभी स्तरों पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
क्या है नन ऑफ द अबव (NOTA)
NOTA एक वोटिंग ऑप्शन है, जिसे वोटिंग सिस्टम में सभी उम्मीदवारों के लिए असहमति दिखाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसे भारत में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद EVM में जोड़ा गया था। हालांकि, भारत में NOTA राइट टू रिजेक्ट के लिए नहीं दिया गया है।
मौजूदा कानून के मुताबिक, NOTA को ज्यादा वोट मिलते हैं तो इसका कोई कानूनी नतीजा नहीं होता। ऐसी स्थिति में अगले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा।
NOTA का मौजूदा पैटर्न
देश में होने वाले तीनों लेयर (पंचायत/नगरीय निकाय, विधानसभा, लोकसभा ) के चुनावों में NOTA वोटिंग के आंकड़े अभी भी कम हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2013 में चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में NOTA ने कुल वोटिंग का 1.85% वोट हासिल किया। 2014 में आठ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में यह घटकर 0.95% रह गया।
2015 में दिल्ली और बिहार में हुए विधानसभा चुनावों में NOTA को 2.02% वोट मिले। दिल्ली में NOTA में मात्र 0.40% मतदान हुआ, जबकि बिहार में 2.49% NOTA वोट पड़े, जो विधानसभा चुनावों में किसी भी राज्य में अब तक डाले गए सबसे ज्यादा NOTA वोट हैं।
2013 से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में 261 विधानसभा क्षेत्रों और 24 निर्वाचन क्षेत्रों में डाले गए NOTA वोटों की संख्या, जीत के अंतर से ज्यादा थी। इसलिए इन निर्वाचन क्षेत्रों में NOTA वोटों ने चुनाव परिणामों पर असर डाला।
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बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग खारिज, EVM-VVPAT पर्ची का मिलान भी नहीं
देश में चुनाव इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (EVM) से ही होंगे, बैलट पेपर से नहीं। इसके अलावा EVM से VVPAT स्लिप की 100% क्रॉस-चेकिंग भी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इन मामलों से जुड़ी सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि हमने प्रोटोकॉल, तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है। इसके बाद हमने एक मत से फैसला दिया है। पढ़ें पूरी खबर…