गोपालगंज की थावे भवानी मंदिर की कहानी 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है। कहा जाता है कि बाघ को बांधकर खेती कराने वाले भक्त रहषू के बुलावे पर माता कामाख्या से खुद चलकर आई थीं। आने के दौरान मां 3 जगह रुकीं। उन जगहों पर आज प्रसिद्ध मंदिर बने हुए हैं। इनमें
.
मान्यता है कि रहषू भक्त को माता के दर्शन कराने के लिए राजा मनन सेन ने मजबूर किया था। रहषू ने कहा कि वो आईं तो आपका साम्राज्य खत्म हो जाएगा, लेकिन मनन सेन नहीं माने। आखिरकार रहषू भक्त के बुलावे पर माता आईं और मनन सेन को दर्शन दी। राजा को तो मोक्ष मिला, लेकिन उसका साम्राज्य खत्म हो गया।
इसके बाद साल 1714 में हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर लड़ाई में हारने के बाद निराश लौट रहे थे। माता ने उन्हें दर्शन देकर जीत का रास्ता सुझाया। राजा युवराज शाही बहादुर ने वापस जाकर लड़ाई जीती और फिर थावे में मंदिर की स्थापना करवाई।
पढ़िए भक्ति की अनोखी कहानियों को अपने में समेटे थावे मंदिर की पूरी कहानी। ये हमारी नवरात्र की स्पेशल स्टोरी का पार्ट-2 है।
थावे भवानी को सिंहासनी भवानी या रहषू भवानी के नाम से भी पुकारते हैं। ऐसे तो साल भर यहां मां के भक्त आते हैं, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्रि के समय यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगती है। गुरुवार को शारदीय नवरात्र के पहले दिन सुबह 3 बजे से ही भक्त दर्शन के लिए लाइन में लगे थे। रात तक करीब एक लाख भक्तों ने दर्शन किए।
भक्त के बुलावे पर आई मां…
मंदिर के पुजारी संजय पांडेय बताते हैं, ’16वीं शताब्दी में चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य था। यहीं माता के बड़े भक्त रहषू थावे जंगल में रहते थे। वह बाघ को बांधकर रखते थे। जंगल में उपजे खरपतवार (घास) को इकट्ठा करते थे और बाघ उस पर चलता था। इससे अनाज निकलता। इसी अनाज को बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।
एक बार यहां अकाल पड़ा। लोग खाने को तरसने लगे, लेकिन रहषू अनाज पैदा कर लोगों को दे रहे थे। जब राजा मनन सेन तक यह बात पहुंची तो उन्होंने रहषू को दरबार में बुलाया। चावल पैदा करने की बात पूछी।
रहषू ने बताया कि यह सब मां भवानी की कृपा से हो रहा है। राजा ने कहा, ‘मैं भी तो मां का भक्त हूं, तुम मां को बुलाओ’। भक्त रहषु ने कई बार कहा कि अगर मां यहां आईं तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, लेकिन राजा नहीं माने।
मजबूर रहषू ने मां को पुकारा। मां अपने भक्त के बुलावे पर असम के कामाख्या स्थान से चलकर यहां पहुंचीं। रास्ते में वो 3 जगह रुकीं, जहां आज प्रसिद्ध देवी मंदिर हैं।’
मां के साथ भक्त की भी होती है पूजा…
कहा जाता है कि रहषू भक्त के मस्तक को विभाजित करते हुए माता ने राजा को साक्षात दर्शन दिए। इसके बाद राज्य के सभी भवन गिर गए और राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई। तब से यहां देवी की पूजा हो रही है। यहां रहषू भगत का भी मंदिर है। एक मान्यता के मुताबिक, यहां आने वाले श्रद्धालु भक्त रहषू का भी दर्शन करते हैं। वर्ना उनकी पूजा सफल नहीं मानी जाती है।
1714 में हथुआ के राजा ने बनवाया मंदिर
मान्यता के अनुसार, हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की। वो चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से 10वीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित लौट रहे थे। थावे जंगल में विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल आराम करने के दौरान उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं।
माता के बताए अनुसार राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर जीत हासिल की। फिर उन्होंने पेड़ के चार कदम उत्तर दिशा में खुदाई कराई। 10 फीट नीचे वन दुर्गा की प्रतिमा मिली और उसी जगह मंदिर की स्थापना की गई।
नवरात्र की महाअष्टमी को रात भर होती है पूजा
थावे मंदिर में आम दिनों में सुबह 4 बजे पट खुलते और 12 बजे बंद हो जाते हैं। फिर 2:30 बजे पट खुलता है। रात 8 बजे आरती के बाद 9 बजे पट बंद हो जाता है। हालांकि, नवरात्र के दिनों में सुबह 3 बजे पट खुलता है। रात 9 बजे तक पूजा होती है।
अष्टमी को महानिशा काल में महागौरी की विशेष पूजा होती है। इस रात देवी का जागरण-हवन करके माता से मनचाहा आशीर्वाद मांग सकते हैं। परंपरा है कि हथुआ राजघराने की महारानी निशा पूजा के बाद हवन शुरू करती हैं।
महाअष्टमी को आधी रात में धूम-धाम से माता का भव्य श्रृंगार होता है। गर्भगृह में पूजा के बाद मंदिर का द्वार रातभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। नवरात्र में यहां मेला लगता है।
झारखंड, यूपी, बंगाल और नेपाल से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं की माने तो लोग किसी भी शुभ कार्य से पहले और उसके पूरे हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते।
800 दुकानें, पार्क, विवाह भवन बन रहा
थावे मंदिर तीन तरफ से जंगलों से घिरा है। मंदिर के गर्भगृह को अब आधुनिक रूप दिया गया है। बिहार सरकार ने 19 अक्टूबर 2023 को मंदिर के विकास कार्यों का शिलान्यास किया था। यहां प्रवेश द्वार, परिसर में स्थित दोनों तालाबों का विकास और जनसुविधाओं का निर्माण किया जाएगा।
इसके अलावा मंदिर में प्रवेश के लिए कतार प्रबंधन, रहषू मंदिर परिसर में बच्चों के पार्क का निर्माण, 800 दुकानों का निर्माण, दोनों यात्री निवास का जीर्णोद्धार, वाटर कियोस्क, पार्किंग का निर्माण, मेला ग्राउंड, हनुमान मंदिर, विवाह भवन, इको पार्क, पुलिस कंट्रोल रूम, गेस्ट हाउस, म्यूजियम, गोलंबर, तालाब, बच्चों के खेलने के लिए ग्राउंड, ऑक्सीजन युक्त पार्क समेत कई योजनाएं चल रही हैं।
ये खबर भी पढ़िए…
बड़ी पटन देवी मंदिर में है योनी कुंड:मान्यता- नवमी पर 4 फीट बढ़ जाती है हवन कुंड की ऊंचाई; सीधे पाताल पहुंचती है आहुति
पटना के बड़ी पटन देवी मंदिर के योनी कुंड हवन कुंड का वर्णन इतिहास के पन्ने में है। मंदिर के महंत विजय शंकर गिरी बताते हैं कि ‘इस हवन कुंड का निर्माण सतयुग में ही हो गया था। ऐसी मान्यता है कि यह हवन कुंड माता सती के पाताल लोक से सीधा संबंध स्थापित करता है। यही कारण है कि इस हवन कुंड में डाली गई सामग्री सीधे पाताल लोक में चली जाती है। मां का पाताल लोक से सीधा जुड़ाव है और माता पार्वती की महिमा अपरंपार है।
नवरात्र पूजा के नवमी के दिन यहां हवन कुंड में हवन करने वाले श्रद्धालुओं की काफी लंबा तांता लगा रहता है। मान्यता है कि नवमी के दिन हवन के दौरान हवन करने आए लोगों से हवन कुंड की ऊंचाई लगभग 4 फीट ऊंची हो जाती है और फिर यह सामग्री स्वत भूगर्भ में चली जाती है। पढ़िए जिस मंदिर के नाम पर राजधानी का नाम पटना पड़ा उसकी पूरी कहानी। ये हमारी नवरात्र की स्पेशल स्टोरी का पार्ट-1 है।