नई दिल्ली1 दिन पहले
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नेस्ले (Nestle) के बेबी फूड्स प्रोड्क्ट्स में एक्स्ट्रा शुगर मिलने की बात सामने आने के बाद सरकार ने इसकी जांच शुरू कर दी है। खाद्य सुरक्षा नियामक FSSAI ने गुरुवार को कहा कि वह नेस्ले के सेरेलेक बेबी फूड के सैंपल कलेक्ट कर रही है। FSSAI के CEO जी कमला वर्धन राव ने बताया कि इस प्रक्रिया को पूरा करने में 15-20 दिन लगेंगे।
दरअसल कुछ दिन पहले आई स्विट्जरलैंड की पब्लिक आई और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क (IBFAN) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नेस्ले भारत सहित एशिया और अफ्रीका के देशों में बिकने वाले बच्चों के दूध और सेरेलेक जैसे फूड प्रोडक्ट्स में अतिरिक्त शक्कर और शहद मिलाती है।
- पब्लिक आई एंड इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में बिकने वाले छह महीने तक के बच्चों के लिए गेंहू से बने लगभग सभी बेबी फूड्स में प्रति कटोरी (1 सर्विंग) में एवरेज 4 ग्राम शुगर की मात्रा पाई गई। पब्लिक आई ने इन देशों में कंपनी के 150 प्रोडक्ट्स की जांच बेल्जियम के लैब में की थी।
- सबसे ज्यादा फिलीपींस में 1 सर्विंग में 7.3 ग्राम शुगर मिली। वहीं, नाइजीरिया में 6.8 ग्राम और सेनेगल में 5.9 ग्राम शुगर बेबी फूड्स में देखने को मिली। इसके अलावा, 15 में से सात देशों ने प्रोडक्ट के लेवल पर शुगर होने की जानकारी ही नहीं दी।
- रिपोर्ट के मुताबिक, नेस्ले भारत में करीब सभी बेबी सेरेलेक प्रोडेक्ट्स के हर एक सर्विंग में औसतन करीब 3 ग्राम शक्कर मिलाती है। वहीं, 6 महीने से 24 महीने तक के बच्चे के लिए बिकने वाले 100 ग्राम सेरेलेक में टोटल 24 ग्राम शुगर की मात्रा होती है।
- रिपोर्ट में नेस्ले पर यह आरोप लगाया गया है कि नेस्ले अपने प्रोडेक्ट्स में मौजूद विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्वों को प्रमुखता से उजागर करती है, लेकिन शुगर मिक्स के मामले में कंपनी पारदर्शी नहीं है। WHO की गाइडलाइन के मुताबिक 3 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए भोजन में कोई शुगर या मीठे पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
भारत में शुगर को लेकर क्या मानक हैं?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बेबी फूड्स में एक्स्ट्रा शुगर की मात्रा को लेकर कोई अपर लिमिट नहीं है। इसे देखने वाली संस्था सिर्फ प्रोटीन, फैट और कार्बोहाइड्रेट जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और विटामिन सी, डी, आयरन और जिंक जैसे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की जरूरतें बताती है।
भारतीय नियमों के मुताबिक, अनाज वाले बेबी फूड्स में कॉर्न सिरप और माल्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है। कार्बोहाइड्रेट सोर्स के तौर पर सुक्रोज और फ्रुक्टोज का इस्तेमाल होता है, बशर्ते इनकी मात्रा कार्बोहाइड्रेट के 20% से कम हो।
यूरोपीय देशों के बेबी प्रोडक्ट्स में नहीं था शुगर
इसी तरह न्यू बॉर्न बेबी के लिए बेचे जाने वाले पाउडर मिल्क नीडो में प्रति बोतल औसतन 2 ग्राम शुगर मिला। दूसरी ओर, नेस्ले के अपने देश स्विट्जरलैंड या जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में बिकने वाले इन्हीं उत्पादों में शुगर नहीं थी।
ज्यादा मीठी चीज खाने-पीने का नुकसान क्या है
- हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
- शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। डायबिटीज हो सकती है।
- अल्जाइमर का खतरा हो सकता है।
- दांत में कैविटीज की समस्या हो सकती है।
- चीनी का असर मेंटल हेल्थ पर पड़ता है। इससे याद्दाश्त पर बुरा असर पड़ता है।
- चीनी खाने से वाइट ब्लड सेल्स 50 फीसदी तक कमजोर होते हैं। इससे इम्यूनिटी वीक हो जाती है।
- नॉन अल्कोहल फैटी लिवर की समस्या हो सकती है। इससे लिवर में फैट स्टोर होता है।