Nawazuddin Siddiqui on theater price OTT | महंगी टिकट का फायदा उठा रहे हैं OTT प्लेटफॉर्म्स: ओटीटी बनाम थियेटर बहस पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी बोले- ‘सस्ती टिकटें ही पब्लिक को सिनेमा हॉल लाएंगी

11 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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पिछले कुछ सालों में ये ट्रेंड देखने को मिला है कि फिल्में थियेटर में नहीं चल रही हैं। यहां तक ​​कि बड़े स्टार्स की फिल्में भी अच्छी कमाई नहीं कर रही हैं। अगर इस साल की बात करें तो सलमान खान की सिकंदर भी फ्लॉप हो गई। फिल्मों के नहीं चलने के पीछे OTT को बड़ी वजह माना जा रहा है।

हाल ही में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म कोस्टाओ रिलीज हुई। इसी सिलसिले में नवाजुद्दीन और फिल्म के प्रोड्यूसर विनोद भानुशाली ने दैनिक भास्कर को इंटरव्यू दिया। इस दौरान उन्होंने इस सवाल का भी जवाब दिया कि क्या थियेटर की जगह OTT ले लेगा और दर्शक थियेटर तक क्यों नहीं पहुंच रहे हैं, तो चलिए पढ़ते हैं उन्होंने क्या जवाब दिए।

फिल्म की थीम को देखकर लगता है कि यह प्रेरणादायक है, ऐसे विषय पर फिल्म बनाने की पहल कहां से हुई?

विनोद- असल में जब मुझे यह कहानी सुनाई गई, उस समय नवाज इस प्रोजेक्ट से पहले ही जुड़ चुके थे तो मेरे लिए यह तय करना आसान हो गया था। एक शानदार कहानी और उस पर नवाज जैसे दमदार कलाकार, यह अपने आप में 24 कैरेट गोल्ड थे। यह बायोपिक उस इंसान की है, जिसने सच में अपने जीवन में ईमानदारी, बहादुरी और सत्य को जिया। जब ऐसी रियल लाइफ स्टोरी सामने आती है, तो लगता है कि दुनिया को ये बताना जरूरी है।

क्या आपको लगता है कि थियेटर का दौर खत्म हो रहा है या अब भी उसमें संभावनाएं हैं?

नवाजुद्दीन- हां, कीमत एक बड़ा मुद्दा है। आम आदमी इतनी महंगी टिकट खरीद नहीं कर सकता और फिल्म तो वैसे भी लोगों के साथ बैठकर देखने की चीज है, जिसमें लोगों की मौजूदगी जरूरी है। अब वो पब्लिक तभी थियेटर आएगी जब टिकट की कीमतें थोड़ी कम हों। अगर दाम बहुत ज्यादा होंगे, तो लोग कैसे आएंगे? यही वजह है कि ओटीटी इसका फायदा उठा रहा है।

विनोद- नहीं, ऐसा नहीं हो सकता कि थियेटर बंद हो जाए। थियेटर देखने की आदत लोगों को होती है। समस्या टिकटों की कीमत की है। जिस जनता के लिए फिल्म बनाई जाती है, वह उसे देख सके यह जरूरी है। बड़े शहरों में जैसे बॉम्बे के कुछ इलाकों में लोगों की कमाई ज्यादा होती है, तो वहां ठीक है, लेकिन हर जगह एक जैसी टिकट के दाम नहीं होने चाहिए। अगर इस पर काम किया जाए, तो थियेटर फिर से चलेगा.

आप दोनों ने कई बायोपिक्स की हैं, क्या आपको बायोग्राफिकल कहानियां करने में मजा आता है?

विनोद- असल में जब आप किसी ऐसी शख्सियत की कहानी सुनते हैं, जिसने वो जिंदगी वाकई में जी है, तो लगता है कि अरे, ऐसा भी होता है? मेरी जिंदगी तो ऐसी नहीं कि कोई बायोग्राफी बने। हम तो आम लोग हैं, जो नीचे से उठकर काम कर रहे हैं, लेकिन जब कोई ऐसा इंसान दिखता है जिसने फिल्म जैसी जिंदगी जी है और फिर भी सच्चाई, बहादुरी और ईमानदारी जैसे मूल्यों पर कायम रहा है तो उसकी कहानी जरूर लोगों तक पहुंचनी चाहिए।

इस फिल्म को बड़े पर्दे की जगह OTT पर क्यों रिलीज किया गया?

विनोद- हमने इसे 130 देशों में एक साथ रिलीज करने का फैसला, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें। कोस्टाओ के बारे में कस्टम डिपार्टमेंट के लोगों और गोवा के कुछ लोग को छोड़कर शायद ही कोई ज्यादा जानता हो। उन पर ज्यादा किताबें भी नहीं लिखी गईं, लेकिन हमारा मकसद था कि इस कहानी को जितना हो सके आम आदमी तक पहुंचाएं जाएं। थियेटर में तो इतनी बड़ी संख्या में लोग शायद नहीं पहुंच पाते, लेकिन ZEE5 पर ज्यादा लोग आसानी से इसे देख सकते हैं और इस फिल्म की कहानी अब उन तक पहुंच रही है।

सेट पर सबसे खास या मजेदार पल कौन-सा रहा जो आपको आज भी याद है?

विनोद- नवाज सेट पर जब अपनी फैमिली के साथ रहते थे, तो वह माहौल ही अलग होता था। एक सीन था जिसमें नवाज और प्रिया बापट के बीच फाइट सीन था। स्क्रिप्ट में दो लाइनें ही थीं, लेकिन दोनों ने उसमें जान डाल दी। एक समय ऐसा आया जब दोनों स्क्रिप्ट से बाहर जाकर परफॉर्म कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे सच में झगड़ा कर रहे हों। वहां मौजूद हर किसी को लगा कि ये तो स्क्रिप्ट में नहीं था।

नवाजुद्दीन- वो सीन इतना रियल बन पड़ा क्योंकि उसमें जो इमोशंस थे, वो हमारे अंदर से आ रहे थे। भगवान का शुक्र है कि वह सीन काटा नहीं गया।

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