- Hindi News
- Jeevan mantra
- Dharm
- Navratri 2025, The Story Of Lord Shiva, Goddess Sati And Shri Ram, Goddess Sati And Lord Shiva Story In Hindi, Life Management Tips Of Lord Shiva
23 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

आज (23 सितंबर) नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दिनों में देवी पूजा के साथ ही देवी की कथाएं पढ़ने-सुनने की भी परंपराएं हैं। सभी शक्तिपीठ देवी सती से जुड़े हैं। देवी सती ने शिव जी से विवाह किया था। शिव जी और सती से जुड़ा एक किस्सा श्रीराम चरित मानस में बताया गया है। जानिए ये किस्सा और इसकी सीख…
रामायण काल की घटना है, उस समय माता सीता का हरण हो चुका था और भगवान श्रीराम सीता की खोज में वन-वन भटक रहे थे। उनकी पीड़ा इतनी गहरी थी कि वे बार-बार पुकारते जा रहे थे- हा सीते, हा सीते।
उस समय एक दिन शिव जी और माता सती उस वन से गुजर रहे थे, शिव-सती श्रीराम की कथा सुनने गए थे। जब उन्होंने श्रीराम को देखा तो शिव जी ने दूर से ही उन्हें प्रणाम किया।
माता सती को हैरानी हुईं कि श्रीराम अगर साक्षात् भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो वे ऐसे विलाप क्यों कर रहे हैं? क्या ईश्वर को मोह हो सकता है? क्या उसे पीड़ा हो सकती है?
सती ने ये बात शिव जी से कही। शिव जी ने समझाया कि ये सब भगवान की लीला है। श्रीराम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वे स्वयं साक्षात नारायण हैं। उनकी हर क्रिया के पीछे कोई दिव्य उद्देश्य होता है।
शिव जी की बात सुनने के बाद भी सती का संदेह दूर नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि मैं स्वयं श्रीराम की परीक्षा लूंगी।
सती ने सीता का रूप धारण किया और भगवान राम के सामने प्रकट हुईं। श्रीराम मुस्कुराए, उन्हें प्रणाम किया और कहा कि देवी, आप वन में अकेली क्या कर रही हैं? महादेव कहां हैं?
इस वाक्य ने सिद्ध कर दिया कि श्रीराम सब कुछ जानते हैं कि कौन, किस रूप में, कहां उपस्थित है।
सती को तुरंत अपनी गलती का एहसास हो गया। वे मौन होकर शिव जी के पास लौट आईं। शिव जी ध्यान में थे। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो पूछा कि क्या आपने भगवान श्रीराम की परीक्षा ली?
सती ने झूठ बोल दिया कि नहीं प्रभु, मैं भी आपकी तरह दूर से प्रणाम कर लौट आई हूं।
शिव जी त्रिकालदर्शी हैं, उन्होंने ध्यान लगाया और सारी सच्चाई जान ली। उन्होंने कहा कि देवी, आपने मेरी माता सीता का रूप धारण किया है, इस देह से आपने जो किया है, उसके कारण अब से मैं इस रूप का मानसिक त्याग करता हूं। इस घटना के बाद शिव जी और सती का वैवाहिक जीवन वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।
लाइफ मैनेजमेंट के 5 महत्वपूर्ण सबक
- झूठ से विश्वास टूटता है
पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास की नींव पर खड़ा होता है। जब सती ने शिव जी से झूठ बोला, तो रिश्ते में दरार पड़ गई। रिश्ते में कभी झूठ न बोलें, विशेषकर जब सामने वाला आपकी सच्चाई को जान सकता है।
- ईश्वर की परीक्षा नहीं ली जाती
सती का ये विचार कि वे भगवान श्रीराम की परीक्षा लेंगी, उनके भीतर मौजूद अहम् को दर्शाता है। जब हमें किसी शक्ति या सत्य पर संदेह हो, तो शांति और श्रद्धा से समझने का प्रयास करें, न कि अहंकार से उसकी परीक्षा लें।
- ध्यान और विवेक से सत्य की पहचान करें
शिवजी ने ध्यान लगाकर पूरी सच्चाई जान ली। उन्होंने कोई बाहरी प्रमाण नहीं मांगा। किसी भी स्थिति का निर्णय बाहरी बातों पर नहीं, बल्कि आंतरिक विवेक और मानसिक शांति से करना चाहिए। जब हम ध्यान करते हैं तो अच्छी-बुरी सारी बातें समझ आने लगती हैं।
- रिश्ते दूध और पानी जैसे होते हैं
दूध और पानी जब मिलते हैं, तो उनका अलगाव संभव नहीं होता, लेकिन यदि उसमें एक बूंद नींबू गिर जाए, तो दूध फट जाता है। रिश्तों में शक, झूठ और धोखे की एक बूंद सब कुछ बिगाड़ सकती है। रिश्तों को सावधानी और ईमानदारी से संभालें।
- संवाद की शक्ति समझें
यदि सती अपने मन की बात खुलकर शिवजी से साझा कर देतीं और अपनी गलती मान लेतीं, तो शायद संबंध वैसा न बिगड़ता। रिश्तों में संवाद बनाए रखना बेहद जरूरी है। जब हम से कुछ गलत हो जाए, तो उसे छिपाने की बजाय, सामने लाना ही समाधान है। अपनी गलती को स्वीकार करेंगे तो रिश्ता सुधरने की संभावनाएं बनी रहती हैं।
सच्चे रिश्ते झूठ से नहीं, बल्कि ईमानदारी, संवाद और विश्वास से बनते हैं। जीवन में चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां आएं, संयम, सत्य और श्रद्धा से ही हर समस्या का समाधान हो सकता है।