Nag panchami on 9th August, Nagchandreshwar temple facts, ujjain mahakaleshwar temple | नाग शय्या पर विराजित हैं नागचंद्रेश्वर: नाग पंचमी 9 अगस्त को, साल में एक बार खुलता है उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर, 11वीं शताब्दी की है दुर्लभ प्रतिमा

9 मिनट पहले

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कल (9 अगस्त) नाग पंचमी है। अभी सावन चल रहा है इस महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर नाग पूजा का महापर्व नाग पंचमी मनाया जाता है। इस दिन जीवित सांप की नहीं, शिवलिंग पर स्थापित नाग देव की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। नाग पंचमी पर उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के ऊपरी तल मौजूद नागचंद्रेश्वर प्रतिमा के दर्शन किए जा सकेंगे। ये मंदिर साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी पर ही खोला जाता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और शिवपुराण कथाकार पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, बारह ज्योतिर्लिंगों में तीसरा है महाकालेश्वर मंदिर। पुराने समय में ये मंदिर कई बार तोड़ा गया है और कई बार बनाया गया है। महाकाल मंदिर की वर्तमान इमारत करीब 250-300 साल पुरानी मानी जाती है। मुगलों ने प्राचीन मंदिर को तोड़ दिया था, बाद में मराठा राजाओं ने महाकाल मंदिर बनवाया था।

दीवार पर लगी है नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा

महाकाल मंदिर का निर्माण और जिर्णोद्धार समय-समय पर अलग-अलग राजाओं ने करवाया था। जब मंदिर का पुनर्निमाण हुआ, तब नागचंद्रश्वेर की मूर्ति को मंदिर के ऊपरी तल पर एक दीवार में लगा दिया गया था। तभी से ये प्रतिमा यहीं स्थापित है। हर साल नाग पंचमी पर इस प्रतिमा का दर्शन और पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इस प्रतिमा के दर्शन मात्र से कुंडली के कालसर्प दोष का असर कम हो सकता है। हर साल लाखों भक्त नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

महाकालेश्वर और नागचंद्रेश्वर की खास बातें

नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा दुर्लभ है और 11वीं शताब्दी की मानी जाती है। नागचंद्रेश्वर की मूर्ति में फन फैलाए हुए नाग देव हैं। नाग शय्या पर शिव-पार्वती विराजित हैं।

इस मूर्ति एक शिव जी के साकार स्वरूप के दर्शन होते हैं। भगवान विष्णु की तरह ही शिव जी इस प्रतिमा पर नाग शय्या पर विराजमान हैं।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। दक्षिणमुखी होने की वजह से महाकाल के दर्शन से असमय मृत्यु के भय और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान महाकाल की रोज सुबह भस्म आरती की जाती है।

पुराने समय में महाकालेश्वर मंदिर क्षेत्र को महाकाल वन के नाम से जाना जाता था। स्कंद पुराण के अवंती खंड, शिवमहापुराण, मत्स्य पुराण आदि ग्रंथों में महाकाल वन का जिक्र है।

पौराणिक कथा के मुताबिक उज्जैन क्षेत्र में दूषण नाम के दैत्य को मारने के लिए शिव जी प्रकट हुए थे। इस जगह को धरती का नाभिस्थल भी कहते हैं। यहां से कर्क रेखा भी निकलती है।

महाकालेश्वर शिवलिंग में भगवान ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं, इस कारण इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

माना जाता है कि महाकालेश्वर मंदिर में पूजा और दर्शन करने से भक्तों का भय, दुख दूर होता है। बीमारियों से मुक्ति मिलती है। सावन में हर सोमवार को राजा महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने निकलते हैं। इसे महाकाल की सवारी कहते हैं।

महाकाल की सवारी सावन के हर सोमवार और भाद्रपद मास के एक पक्ष में आने वाले सोमवार को निकलती है।

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