नई दिल्ली22 मिनट पहले
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इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर सैटेलाइट को सिग्नल भेजता है। सिग्नल सैटेलाइट से टकराकर वापस आता है, जिसे डिश कैप्चर करती है। डिश यूजर्स के मॉडेम से जुड़ा होता है, जो कंप्यूटर सहित अन्य डिवाइस को इंटरनेट प्रोवाइड करता है।
इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने का आखिरी रेगुलेटरी अप्रूवल मिल गया है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी।
स्टारलिंक तीसरी कंपनी है जिसे भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस ऑपरेट करने का लाइसेंस मिला है। इससे पहले वनवेब और रिलायंस जियो को मंजूरी मिली थी।
आइए, सवाल-जवाब के जरिए इस मामले को समझते हैं…
सवाल 1: स्टारलिंक क्या है और ये खास क्यों है?
जवाब: स्टारलिंक, स्पेसएक्स का प्रोजेक्ट है, जो सैटेलाइट्स के जरिए हाई-स्पीड इंटरनेट देता है। इसके सैटेलाइट्स पृथ्वी के करीब घूमते हैं, जिससे इंटरनेट तेज और स्मूथ चलता है। ये खासकर उन इलाकों के लिए फायदेमंद है, जैसे गांव या पहाड़, जहां आम इंटरनेट नहीं पहुंचता।
सवाल 2: स्टारलिंक को लाइसेंस मिलने में इतना वक्त क्यों लगा?
जवाब: स्टारलिंक भारत में एंट्री के लिए 2022 से कोशिश कर रही थी, लेकिन सिक्योरिटी चिंताओं की वजह से देरी हुई। भारत सरकार ने डेटा सिक्योरिटी और कॉल इंटरसेप्शन जैसी शर्तें रखी थीं। स्टारलिंक ने इन शर्तों को माना और मई 2025 में लेटर ऑफ इंटेंट मिलने के बाद टेलीकॉम डिपार्टमेंट का लाइसेंस मिला था। अब उसे आखिरी रेगुलेटरी अप्रूवल यानी, इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) का अप्रूवल भी मिल गया है।

सवाल 3: अब स्टारलिंक को सर्विस शुरू करने के लिए और क्या करना होगा?
जवाब: लाइसेंस मिलने के बाद स्टारलिंक को अब सरकार से स्पेक्ट्रम हासिल करना होगा। भारत में ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा। इसमें सैटेलाइट अर्थ स्टेशन, कम्युनिकेशन गेटवे और एक कंट्रोल व मॉनिटरिंग सेंटर बनाना शामिल है।
इसके बाद कंपनी को सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए सर्विस की टेस्टिंग और ट्रायल्स करने होंगे। सिक्योरिटी एजेंसियां स्टारलिंक की सर्विस को बारीकी से जांचेंगी। बिना सिक्योरिटी क्लीयरेंस के कॉमर्शियल सर्विस शुरू नहीं हो सकती।
सवाल 4: स्टारलिंक की सर्विस भारत में कब शुरू होगी?
जवाब: अभी सटीक तारीख तो नहीं बताई गई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक सिक्योरिटी टेस्टिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होने के बाद कुछ महीनों में सर्विस शुरू हो सकती है।
सवाल 5: स्टारलिंक की सर्विस कितनी तेज होगी और इसका खर्चा क्या होगा?
जवाब: स्टारलिंक 50 Mbps से 250 Mbps तक की डाउनलोड स्पीड देने का दावा करता है, जो स्ट्रीमिंग, वीडियो कॉल और गेमिंग जैसे कामों के लिए काफी है। भारत में स्टारलिंक का स्टैंडर्ड किट की कीमत करीब 33,000 रुपए होने की उम्मीद है।
इसमें सैटेलाइट एंटीना, माउंटिंग स्टैंड, वाई-फाई राउटर और केबल्स शामिल हैं। हालांकि मंथली सब्सक्रिप्शन प्लान्स की कीमत अभी साफ नहीं है।

सवाल 6: स्टारलिंक के लिए भारत में कौन-कौन से पार्टनर्स हैं?
जवाब: भारत की दो सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनियां जियो और एयरटेल ने मार्च में स्टारलिंक के साथ पार्टनरशिप की घोषणा की थी। ये दोनों कंपनियां अपने रिटेल स्टोर्स में स्टारलिंक के इक्विपमेंट बेचेंगी। ये पार्टनरशिप स्टारलिंक के भारत में रोलट को और मजबूत करेगी।
सवाल 7: स्टारलिंक की सर्विस से भारत में क्या फायदा होगा?
जवाब: स्टारलिंक की सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट सर्विस खासकर उन ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में गेम-चेंजर हो सकती है, जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है। ये डिजिटल इंडिया के मिशन को सपोर्ट करेगा और शिक्षा, हेल्थकेयर जैसे सेक्टर्स में डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाएगा।
स्टारलिंक के 6,750 से ज्यादा सैटेलाइट्स लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में हैं, जो कम लेटेंसी और हाई-स्पीड इंटरनेट देते हैं। कंपनी 2027 तक अपने सैटेलाइट्स की संख्या 42,000 तक बढ़ाने की योजना बना रही है।
सवाल 8: स्टारलिंक की सर्विस अभी कितने देशों में उपलब्ध है?
जवाब: स्टारलिंक 100 से ज्यादा देशों में अपनी सर्विस दे रही है। एशिया में ये मंगोलिया, जापान, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, जॉर्डन, यमन और अजरबैजान जैसे देशों में मौजूद है। हाल ही में बांग्लादेश और श्रीलंका में भी स्टारलिंक की सर्विस शुरू हुई है।
सैटेलाइट नेटवर्क से हाई-स्पीड इंटरनेट कवरेज मिलता है
- सैटेलाइट धरती के किसी भी हिस्से से बीम इंटरनेट कवरेज को संभव बनाती है। सैटेलाइट के नेटवर्क से यूजर्स को हाई-स्पीड, लो-लेटेंसी इंटरनेट कवरेज मिलता है। लेटेंसी का मतलब उस समय से होता है जो डेटा को एक पॉइंट से दूसरे तक पहुंचाने में लगता है।
- स्टारलिंक किट में स्टारलिंक डिश, एक वाई-फाई राउटर, पॉवर सप्लाई केबल्स और माउंटिंग ट्राइपॉड होता है। हाई-स्पीड इंटरनेट के लिए डिश को खुले आसमान के नीचे रखना होगा। iOS और एंड्रॉइड पर स्टारलिंक का ऐप मौजूद है, जो सेटअप से लेकर मॉनिटरिंग करता है।

जून 2020 में सरकार ने IN-SPACe स्थापित किया था
डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने जून 2020 में IN-SPACe को स्थापित किया था। यह स्पेस एक्टिविटीज में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को रेगुलेट करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिए सिंगल-विंडो एजेंसी के रूप में काम करती है। IN-SPACe नॉन-गवर्नमेंटल एंटिटीज के लिए लाइसेंसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग और स्पेस बेस्ड सर्विसेज को बढ़ावा देने का काम भी करती है।