56 मिनट पहले
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स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिनमें जीवन में सुख, शांति और सफलता पाने के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को अपना लें तो हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। आज जानिए एक ऐसा किस्सा, जिसमें परमहंस जी ने बताया है कि हमारी भक्ति कैसी होनी चाहिए…
परमहंस जी के एक शिष्य मथुरा बाबू बहुत अमीर थे। मथुरा बाबू भगवान विष्णु के भक्त थे। उन्होंने विष्णु जी का एक मंदिर बनवाया था। मंदिर में भगवान की मूर्ति का श्रृंगार बहुत महंगे वस्त्र और आभूषणों से कर रखा था।
जो लोग मंदिर की मूर्ति देखते थे, वे मूर्ति के महंगे श्रृंगार की तारीफ जरूर करते थे। ये बातें सुनकर मथुरा बाबू बहुत खुश होते थे। मथुरा बाबू जब भी परमहंस जी से मिलते तो अपने मंदिर और महंगी सजावट की बातें करते रहते थे।
परमहंस जी तो महंगी चीजों को कोई महत्व नहीं थे, इसलिए वे मथुरा बाबू की सभी बातें बहुत ध्यान से सुन लेते, लेकिन इन बातों के जवाब में कुछ कहते नहीं थे।
एक दिन मथुरा बाबू परमहंस जी के पास दौड़ते हुए आए और कहने लगे कि आप मेरे साथ चलिए। मेरे मंदिर में चोरी हो गई है। चोर मूर्ति के वस्त्र और गहने चुरा ले गया।
परमहंस जी को लेकर मथुरा बाबू मंदिर में पहुंचे। मंदिर पहुंचकर परमहंस जी मूर्ति को निहारने लगे। मथुरा बाबू भगवान से ही शिकायत करने लगे कि आप तो भगवान हैं, आपके सामने चोरी कैसे हो गई?
मथुरा बाबू तो दुखी हो रहे थे, लेकिन परमहंस जी तो मुस्कान के साथ ही मूर्ति को ही देखे जा रहे थे। मथुरा बाबू ने परमहंस जी के चेहरे पर मुस्कान देखी तो इसकी वजह पूछी।
रामकृष्ण परमहंस की सीख
परमहंस जी बोले कि मथुरा बाबू भगवान के लिए महंगी चीजों का कोई महत्व नहीं है। वे तो अपने भक्ति की नि:स्वार्थ भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं।
जिन भक्तों की भावनाएं नि:स्वार्थ हैं, उन्हें भगवान की कृपा जरूर मिलती है। भगवान को ऐसी महंगी चीजों से कोई मोह नहीं है।
ये बातें सुनकर मथुरा बाबू का दुख दूर हो गया, उन्हें समझ आ गया कि वे व्यर्थ ही इन चीजों का मोह कर रहे थे और इन चीजों की वजह से उनके मन में अहंकार भी आ गया था।