motivational story of gautam buddha, life management tips in hindi, When the mind is restless, questions increase, | गौतम बुद्ध की सीख: मन अशांत हो तो प्रश्न बढ़ जाते हैं, लेकिन जब मन शांत हो जाता है, तो कई प्रश्न स्वयं खत्म हो जाते हैं

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6 घंटे पहले

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अशांत मन हमेशा प्रश्नों से भरा होता है। जब मन में लगातार हलचल चलती रहती है, तब सही निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग गौतम बुद्ध और एक अशांत व्यक्ति से जुड़ा है। ये प्रसंग हमें बताता है कि कभी-कभी मौन रहना ही मन को शांति देने का सबसे बड़ा तरीका बन जाता है।

चर्चित प्रसंग के मुताबिक, गौतम बुद्ध प्रतिदिन अपने शिष्यों को उपदेश दिया करते थे। शिष्यों के अलावा उनके उपदेश सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। एक दिन जब बुद्ध अपने शिष्यों को जीवन की गहराइयां समझा रहे थे, तभी एक व्यक्ति वहां पहुंचा। उसके चेहरे पर उलझन और बेचैनी दिखाई दे रही थी। उसने हाथ जोड़कर कहा कि तथागत, मेरा मन बहुत अशांत है। मेरे भीतर सैकड़ों प्रश्न उठते रहते हैं। कृपया मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर दीजिए, ताकि मैं मन की शांति पा सकूं।

बुद्ध बोले कि मैं तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दूंगा, लेकिन पहले तुम्हें एक साल का मौन धारण करना होगा। एक साल बाद तुम जो चाहो पूछ लेना, मैं एक भी प्रश्न अनुत्तरित नहीं छोड़ूंगा।

व्यक्ति हैरान था, लेकिन उसे बुद्ध पर विश्वास था। उसने पूछा कि क्या आप सच में एक साल बाद मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर दे देंगे?

बुद्ध ने दृढ़ स्वर में कहा कि मैं अपनी बात पर अटल हूं।

बुद्ध की बात मानकर व्यक्ति ने मौन व्रत धारण कर लिया। शुरुआत में मौन कठिन था, लेकिन धीरे-धीरे उसका मन शांत होने लगा। बोलने की इच्छा घटने लगी और विचार स्वाभाविक रूप से स्थिर होने लगे। मौन ने उसके भीतर गहराई से झांकने की क्षमता विकसित कर दी। वह ध्यान में उतरने लगा और बाहरी दुनिया की हलचल से दूर अपने मन की परतों को समझने लगा।

एक साल बीत गया। बुद्ध ने उसे बुलाकर कहा कि अब तुम अपने प्रश्न पूछ सकते हो।

व्यक्ति मुस्कुरा उठा और बोला कि तथागत, अब मेरे मन में न कोई प्रश्न है, न कोई भ्रम। मौन ने ही मेरे मन को उत्तर दे दिया।

बुद्ध ने कहा कि जब मन अशांत होता है, तब प्रश्न बढ़ जाते हैं, लेकिन जब मन शांत हो जाता है, प्रश्न स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। मौन हमें भीतर ले जाता है, जहां सारे उत्तर पहले से मौजूद हैं।

ये प्रसंग हमें सीख देता है कि जीवन की कई उलझनों का समाधान बाहर नहीं, हमारे भीतर छिपा है। वहां पहुंचने का सरल मार्ग मौन है।

प्रसंग की सीख

  • कुछ देर मौन रहने की आदत बनाएं- दिन में सिर्फ 10 मिनट बिना बोले बैठें। इस दौरान सिर्फ सांसों के प्रवाह को महसूस करें। धीरे-धीरे मन की उथल-पुथल शांत होने लगेगी और निर्णय क्षमता बढ़ेगी।
  • विचारों को रोकें नहीं, बस उन्हें आने-जाने दें- मन को जबरदस्ती शांत करने की कोशिश न करें। विचारों को बादलों की तरह गुजरने दें। ये अभ्यास मानसिक दबाव घटाता है और मन को हल्का बनाता है।
  • सोशल मीडिया से दूरी बनाएं- मोबाइल, सोशल मीडिया और लगातार सूचनाओं की बौछार मन को बेचैन करती है। दिन का कम से कम एक घंटा पूरी तरह डिजिटल मुक्त रहें। इससे मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।
  • धीमी गति से सोचने की आदत डालें- तेजी से सोचने पर निर्णय गलत होते हैं। किसी भी मुद्दे पर शांत होकर दो–तीन बार विचार करें। ये आदत जीवन में स्थिरता और शांति लाती है।
  • प्रकृति के संपर्क में रहें- सुबह की धूप, पौधों का स्पर्श, हवा का हल्का झोंका, ये सभी मन के लिए प्राकृतिक उपचार हैं। सप्ताह में कुछ समय प्रकृति से जुड़ें और मन को रीसेट करें।
  • अनावश्यक प्रश्नों से बचें- हर प्रश्न पूछना आवश्यक नहीं होता। कभी-कभी मन खुद भ्रम पैदा करता है। ऐसे प्रश्नों को लिख लें और कुछ समय बाद देखें, अधिकतर प्रश्न खुद ही महत्वहीन लगने लगते हैं।
  • ध्यान और प्राणायाम करें- रोज कुछ देर ध्यान करने से मन को स्थिरता मिलती है। प्राणायाम से मन शुद्ध और शांत होता है, जिससे भावनात्मक संतुलन बढ़ता है।
  • किसी भी परिस्थिति में प्रतिक्रिया देने से पहले रुकें- ये छोटा सा रुकना आपको गुस्से, निराशा या भ्रम में लिए गए गलत फैसलों से बचा सकता है।
  • अपने अंदर के शोर को पहचानें- बाहरी नहीं, आंतरिक शोर सबसे ज्यादा हानि पहुंचाता है। नियमित रूप से आत्मचिंतन करने से इस शोर को कम किया जा सकता है।

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