मुंबई10 मिनट पहले
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RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास 6 दिसंबर को सुबह 10 बजे मीटिंग में लिए गए फैसले की घोषणा करेंगे
ब्याज दरों पर फैसला लेने के लिए मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग आज यानी, 4 दिसंबर से शुरू हो गई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास 6 दिसंबर को सुबह 10 बजे मीटिंग में लिए गए फैसले की घोषणा करेंगे।
आरबीआई ने फरवरी 2023 से रेपो रेट को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा है। मार्केट विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक भारत की महंगाई को अपने लक्ष्य स्तर के करीब लाने के लिए अपने मौजूदा रुख को बनाए रखेगा।
MPC में 6 सदस्य हैं, जिनमें से तीन केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर राजीव रंजन हैं। सरकार ने 1 अक्टूबर को कमेटी में राम सिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार सहित तीन नए बाहरी सदस्यों की नियुक्ति की है।
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की पिछली मीटिंग अक्टूबर में हुई थी
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की पिछली मीटिंग अक्टूबर में हुई थी, जिसमें कमेटी ने लगातार 10वीं बार दरों में बदलाव नहीं किया था। अब इस मीटिंग में भी ब्याज दरों में बदलाव की उम्मीद नहीं है। ये मीटिंग हर दो महीने में होती है।
2020 से रिजर्व बैंक ने 5 बार में 1.10% ब्याज दरें बढ़ाईं
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने कोरोना के दौरान (27 मार्च 2020 से 9 अक्टूबर 2020) दो बार ब्याज दरों में 0.40% की कटौती की। इसके बाद अगली 10 मीटिंग्स में सेंट्रल बैंक ने 5 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, चार बार कोई बदलाव नहीं किया और एक बार अगस्त 2022 में 0.50% की कटौती की। कोविड से पहले 6 फरवरी 2020 को रेपो रेट 5.15% पर था।
महंगाई से लड़ने का शक्तिशाली टूल है पॉलिसी रेट
किसी भी सेंट्रल बैंक के पास पॉलिसी रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है।
पॉलिसी रेट ज्यादा होगी तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है। मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है।
इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सेंट्रल बैंक पॉलिसी रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।