maharashtra mhada case, Supreem court is considering whether private property is a material resource of the community or not | प्राइवेट प्रॉपर्टी पर क्या समुदाय या संगठन का हक है?: केंद्र बोला- अनुच्छेद 39 बी को आर्थिक चश्मे से देखना गलत

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नई दिल्ली4 दिन पहलेलेखक: पवन कुमार

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सुप्रीम कोर्ट निजी संप​त्ति को लेकर 1977 में रंगनाथ रेड्डी केस में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या को लेकर सुनवाई कर रही है। (फाइल फोटो) - Dainik Bhaskar

सुप्रीम कोर्ट निजी संप​त्ति को लेकर 1977 में रंगनाथ रेड्डी केस में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या को लेकर सुनवाई कर रही है। (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 39 बी की व्याख्या को लेकर गुरुवार (25 अप्रैल) को तीसरे दिन भी सुनवाई की। इस दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने सवाल उठाया कि क्या कंपनी अथवा निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है?

इस पर सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमानी ने कहा, अनुच्छेद 39 बी हमेशा से सभी राजनीतिक और आर्थिक ​सिद्धांतों से स्वतंत्र रहा है। संसाधनों और जरूरतों के बारे में समाज की व्याख्या समय के साथ परिपक्व होती रहती है, ऐसे में अनुच्छेद 39 बी को आर्थिक चश्मे से देखना गलत होगा।

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट निजी संप​त्ति को लेकर 1977 में रंगनाथ रेड्डी केस में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या को लेकर सुनवाई कर रही है।

अनुच्छेद 39B में कहा गया है कि सरकार को सभी के भले के लिए सामुदायिक संसाधनों को उचित रूप से साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। इसमें निजी स्वामित्व वाले संसाधन भी शामिल हैं।

केंद्र बोला- संविधान संशोधन के बाद भी उसमें मूल प्रावधान बरकरार रहते हैं
निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39B के तहत लाने के मुद्दे पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि जब संविधान में संशोधन करके उसकी जगह अन्य प्रावधान लाया जाता है तो मूल प्रावधान कायम रहता है या नहीं? इस पर केंद्र ने दलील दी कि मूल प्रावधान कायम रहता है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप संपत्ति की पूंजीवादी अवधारणा से देखें तो यह विशिष्टता की भावना को बताती है। उन्होंने अपना पेन दिखाते हुए कहा, यह मेरा ही है। वहीं, समाजवादी अवधारणा संपत्ति की समानता की धारणा को बल देती है। यह कहती है कि कुछ भी व्यक्ति विशेष का नहीं है, बल्कि सारी संपत्ति समुदाय के लिए सामान्य है। यह घोर समाजवादी दृष्टिकोण है। आमतौर पर हम संपत्ति को ऐसी चीज मानते हैं, जिसे हम ट्रस्ट के तौर पर रखते हैं।

कोर्ट रूम लाइव…

चीफ जस्टिस: अगर समुदाय में कुछ उत्पन्न नहीं हुआ है तो वहां अनुच्छेद 39बी लागू नहीं होता। वहीं, अगर आप संपत्ति को किसी दूसरे को वितरित नहीं करते तो भी आर्टिकल 39बी लागू नहीं होता। यह सुझाव देना थोड़ा अतिवादी होगा कि समुदाय के पास संसाधनों का मतलब व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं होगा।

संविधान का मूल उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना था। हम कतई नहीं कह सकते कि संपत्ति को निजी तौर पर रखे जाने के बाद 39बी का उपयोग नहीं बचता है। सरकार का तर्क यह है कि 39बी और 39सी अभी वैध हैं। क्या यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोर्ट इस की जांच करे।

तुषार मेहता (सॉलिसिटर जनरल): हमने भी इस दृष्टिकोण से अभी तक जांच नहीं की है।

चीफ जस्टिस: मिनर्वा मिल्स के फैसले के आधार पर अनुच्छेद 31सी मौजूद नहीं है। ऐसे में क्या निजी संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधनों के अंतर्गत लाने का कानून अनुच्छेद 39बी व सी के तहत संरक्षित है? इसका सवाल ही नहीं उठता है।

एक वकील: 39बी भूमि के स्वामित्व की बात नहीं करता है। इसलिए इसे अनुच्छेद 31सी के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल: 31C का इतिहास बताता है कि आप किसी खिलाड़ी काे विकल्प बनाकर मैदान में भेजते हैं और वह आउट हो जाता है तो मतलब यह नहीं कि खिलाड़ी मैदान से बाहर हो गया। वह उसके बावजूद खेल में बना रहता है।

जस्टिस बिंदल: क्या कोई प्रावधान खत्म होने के बाद संसद संशोधन के लिए बाध्य है?

एक वकील अंध्यारूजिना: नहीं ऐसा नहीं है। संसद संशोधन कर भी सकती है और नहीं भी।

जस्टिस धूलिया: आईपीसी की धारा 303 को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था लेकिन यह अभी भी कानून की किताबों का हिस्सा है। हालांकि यह संविधान का हिस्सा नहीं है।​​​​​​

अंध्यारूजिना: किसी भी प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने के बाद भी वह कानून की किताबों में मौजूद रहता है।

चीफ जस्टिस: कोर्ट प्रावधानों के अमान्य होने से पहले उसके कानूनी प्रावधान को पुनर्जीवित नहीं कर सकता, क्योंकि कोर्ट कानून नहीं बना सकता है? समुदाय कौन है?

अटार्नी जनरल: समुदाय राष्ट्र अथवा राष्ट्र का एक हिस्सा होता है। अथवा जीने का तरीका है।

जस्टिस नागरत्ना: संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक और आर्थिक न्याय को शामिल किया है। इसलिए संविधान द्वारा तय किए गए इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास अनुच्छेद 39 है।

जानिए क्या है संविधान का अनुच्छेद 39 (B)
संविधान के अनुच्छेद 39 (B) में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीति को यह सुनिश्चित करने की दिशा में निर्देशित करेगा कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए जो आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो’।

क्या है महाराष्ट्र सरकार का कानून?

इमारतों की मरम्मत के लिए महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MHADA) कानून 1976 के तहत इन मकानों में रहने वाले लोगों पर उपकर लगाता है। इसका भुगतान मुंबई भवन मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को किया जाता है, जो इन इमारतों की मरम्मत का काम करता है।

अनुच्छेद 39 (B) के तहत दायित्व को लागू करते हुए MHADA अधिनियम को साल 1986 में संशोधित किया गया था। इसमें धारा 1A को जोड़ा गया था, जिसके तहत भूमि और भवनों को प्राप्त करने की योजनाओं को क्रियान्वित करना शामिल था, ताकि उन्हें जरूरतमंद लोगों को हस्तांतरित किया जा सके।

संशोधित MHADA कानून (Maharashtra Housing and Area Development Authority Act) में अध्याय VIII-A है में प्रावधान है कि राज्य सरकार अधिगृहीत इमारतों और जिस भूमि पर वे बनी हैं, उसका अधिग्रहण कर सकती है, यदि 70 प्रतिशत रहने वाले ऐसा अनुरोध करते हैं।

जमीन के मालिकों ने लगाई याचिका
महाराष्ट्र सरकार के कानून के खिलाफ जमीन के मालिकों ने कई याचिकाएं दायर की हैं। प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने दावा किया है कि यह कानून मालिकों के खिलाफ भेदभाव करने वाला है। अनुच्छेद 14 के तहत समानता के उनके अधिकार का उल्लंघन है। यह मुख्य याचिका साल 1992 में दायर की गई थी।

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