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- Lord Shiva’s Awtar Is Bhairav, We Should Offere Imarti As Prasad To Bhairav Maharaj, Kal Bhaiav Ashtami On 23rd November
10 मिनट पहले
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आज (23 नवंबर) काल भैरव अष्टमी है। माना जाता है कि मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे। इसलिए इस तिथि को काल भैरव अष्टमी कहा जाता है। इस बार 23 तारीख को ब्रह्म योग और इंद्र योग भी है। जानिए काल भैरव अष्टमी से जुड़ी खास बातें
भैरव भगवान शिव का रौद्र स्वरूप है। शिव जी के इस स्वरूप को पूजन से भक्त को भय, भ्रम और अन्य परेशानियों से मुक्ति मिलती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, काल भैरव अष्टमी पर काल भैरव का सिंदूर और चमेली के तेल से श्रृंगार करना चाहिए। हार-फूल चढ़ाएं, धूप-दीप जलाकर आरती करें। भैरव भगवान को इमरती का भोग लगाना चाहिए।
शास्त्रों में कुल 64 भैरव बताए हैं। इनके नाम है बटुक भैरव, काल भैरव और आनंद भैरव।
बटुक भैरव – बटुक भैरव सात्विक और बाल स्वरूप है। इनकी पूजा से भक्त को सुख-शांति, लंबी आयु, अच्छी सेहत, मान-सम्मान और ऊंचा पद मिलता है।
काल भैरव – ये भैरव का तामसी स्वरूप है। इस स्वरूप की पूजा करने से भक्तों का अनजाना भय दूर होता है। काल का एक अर्थ है समय। काल भैरव को काल यानी समय का नियंत्रक माना जाता है।
आनंद भैरव – ये भैरव का राजसी स्वरूप है। देवी मां की दस महाविद्याएं हैं और हर एक महाविद्या के साथ भैरव की भी पूजा होती है। इनकी पूजा से धन, धर्म की सिद्धियां मिलती हैं।
भगवान शिव का ये स्वरूप जब प्रकट हुआ तब इस रूप में भगवान ने भय (भै) बढ़ाने वाली आवाज (रव) उत्पन्न की थी। इस वजह से शिव के इस रूपरूप का नाम भैरव पड़ा। शिव का ये अवतार हमेशा देवी मां की रक्षा में तैनात रहता है। भैरव को कोतवाल भी कहते हैं। इसीलिए हर देवी मंदिर में भैरव की भी पूजा होती हैं।

मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित काल भैरव को मदिरा खासतौर पर अर्पित की जाती है।
काल भैरव की उत्पत्ति रात में हुई थी। इसीलिए इनकी पूजा रात में करने की परंपरा है। भैरव देव हमेशा युद्ध के मैदान में ही रहते हैं। युद्ध मैदान में खाने-पीने की चीजें नहीं मिलती हैं, इसीलिए भैरव को तामसिक चीजें जैसे मदिरा, राख, तेल, सिंदूर जैसी चढ़ाई जाती है। ये स्वरूप नकारात्मकता का नाश करता है।
काल भैरव युद्ध के मैदान में ही रहते हैं। आसुरी प्रवृत्तियों से युद्ध करते हैं, इस कारण इन्हें तामसिक चीजें अर्पित करते हैं। मदिरा चढ़ाने का भाव यह है कि हम अपनी सभी बुराइयां भगवान को समर्पित करते हैं यानी भगवान को मदिरा चढ़ाकर अपनी बुराइयां छोड़ने का संकल्प लेते हैं।