Lord Krishna’s teachings to the Pandavas, life management tips of Lord Krishna in hindi, mahabharata story in hindi | श्रीकृष्ण की पांडवों को सीख: कौरव अहंकार की वजह से असफल हुए, सफलता और सुख-शांति चाहते हैं तो अहंकार से बचें और विनम्र रहें

  • Hindi News
  • Jeevan mantra
  • Dharm
  • Lord Krishna’s Teachings To The Pandavas, Life Management Tips Of Lord Krishna In Hindi, Mahabharata Story In Hindi

7 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच द्युत क्रीड़ा यानी जुआं खेला गया था, जिसमें पांडव हार गए, उन्हें 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास का दंड मिला। इन 13 वर्षों को पांडवों ने धैर्य, संयम और एकता के साथ पूरा किया। समय पूरा होने के बाद वे अपना राज्य वापस लेने के लिए कौरवों के पास पहुंचे, क्योंकि जुए के समय यही शर्त रखी गई थी कि 13 वर्ष के बाद इन्हें इनका राज्य लौटा दिया जाएगा।

दुर्योधन ने अहंकार और कुटिलता के कारण पांडवों को राज्य लौटाने से मना कर दिया। अब पांडवों के पास एक ही मार्ग था युद्ध का।

पांडवों ने युद्ध की संभावना पर विचार किया। कौरवों की सेना विशाल थी, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वथामा जैसे महान योद्धा उनके साथ थे। पांडव संख्या में सिर्फ पांच थे और सेना भी नहीं थी। अर्जुन ने कहा कि कौरवों से युद्ध असंभव लग रहा है।

ऐसे समय में वहां श्रीकृष्ण पहुंचे। उन्होंने कहा कि सही बात के लिए संघर्ष करना कमजोरी नहीं, जिम्मेदारी है। ये युद्ध हिंसा नहीं, बल्कि सत्य, धर्म और न्याय की रक्षा के लिए आवश्यक है। कौरवों की संख्या भले अधिक हो, लेकिन उनके बीच मतभेद हैं। कर्ण भीष्म को पसंद नहीं करता, द्रोण दुर्योधन को पसंद नहीं करते और दुर्योधन अपने ही गुरुओं का अपमान करता रहता है। तुम पांच हो, लेकिन तुम पांचों एकजुट हो। जिस पक्ष में एकता है, जीत उसी की होती है।

श्रीकृष्ण के इन शब्दों ने पांडवों के सामने दिशा स्पष्ट कर दी। पांडवों ने एकता, संयम और रणनीति से युद्ध की तैयारी की और अंततः वही हुआ, कम संख्या में होने के बाद भी पांडवों ने कौरवों की विशाल सेना को पराजित किया।

श्रीकृष्ण की सीख

एकता में अतुल्य बल है। जीवन, परिवार या कार्यस्थल, जहां भी परस्पर मतभेद और अहंकार है, वहां छोटी समस्या भी पहाड़ बन जाती है। जहां संवाद, सामंजस्य और सहयोग है, वहां बड़ी-बड़ी समस्याएं भी सरल हो जाती हैं।

  • तालमेल से मिलती है सफलता

हर टीम या परिवार में सभी लोगों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन निर्णय लेते समय सभी का लक्ष्य एक होना चाहिए। अलग-अलग सोच से विविधता आती है, संघर्ष नहीं। सही तालमेल बना रहेगा तो सफलता जरूर मिलेगी।

  • संवाद सबसे प्रभावी साधन है

कौरव संवादहीनता और अहंकार की वजह से असफल हुए। जीवन में नियमित, स्पष्ट, भावनात्मक रूप से संवाद बनाए रखना चाहिए। सही संवाद रिश्तों में दरार को आने नहीं देता, संवाद सबसे प्रभावी साधन है, रिश्तों में प्रेम बनाए रखने का। ध्यान रखें- रिश्तों में अहंकार नहीं विनम्रता होनी चाहिए।

  • सही बात पर डटे रहना चाहिए

कभी-कभी सही मार्ग कठिन होता है, लेकिन लंबे समय में वही सफलता देता है। पांडवों ने न्याय के लिए संघर्ष चुना और युद्ध में पांडवों की जीत भी हुई। हमें भी सही बात पर डटे रहना चाहिए।

  • सफल टीम संख्या से नहीं, गुणवत्ता से बनती है

कौरवों की संख्या अधिक थी, लेकिन आपसी अविश्वास ने उन्हें कमजोर बनाया। टीम छोटी हो सकती है, लेकिन अगर उसमें विश्वास, जिम्मेदारी और सहयोग जैसी गुणवत्ता है, तो वह किसी भी टीम को या परेशानी को पराजित कर सकती है।

  • अपनी भूमिका के लिए स्पष्टता रखें

पांडवों में सभी भाइयों को अपनी-अपनी भूमिका स्पष्ट थी। युधिष्ठिर नीति में, अर्जुन युद्ध कौशल में, भीम बल में, नकुल-सहदेव विशेष कौशल में पारंगत थे। अच्छी टीम में सभी सदस्यों को अपनी-अपनी भूमिकाएं स्पष्ट रहती हैं।

  • अहंकार से बचें, आत्मसम्मान बनाए रखें

कौरवों का पतन अहंकार की वजह से हुआ। अहंकार रिश्तों को भी तोड़ता है और लक्ष्य को भी दूर कर देते हैं। आत्मसम्मान आपको मजबूत बनाता है। हमें अहंकार और आत्मसम्मान में अंतर होता है, इसे पहचानना चाहिए, तभी जीवन में सुख-शांति आ सकती है।

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *