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- Lord Krishna’s Teaching Every Deed Has Its Reward, Lesson Of Lord Krishna In Hindi, Life Management Tips From Mahabharata
19 मिनट पहले
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कुरुक्षेत्र के जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो, तब उन्होंने जीवन की सबसे बड़ी सीख दी थी। जीवन में कर्म करना हमारा धर्म है, लेकिन उसका फल क्या मिलेगा, इसकी चिंता हमें नहीं करनी चाहिए, हमें सिर्फ अपने कर्म धर्म के मुताबिक करते रहना चाहिए। कर्म का फल कभी खत्म नहीं होता है, वह सही समय आने पर हमें अवश्य मिलता है।
श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया और कर्म का महत्व समझाया। स्वयं श्रीकृष्ण ने भी अपने कर्मों के परिणाम स्वीकार किए। श्रीकृष्ण की लीलाएं जब पूरी हो गईं, तब एक दिन वे अकेले जंगल में विश्राम की मुद्रा में लेटे थे, तब एक शिकारी का बाण उनके पैर पर लगा और इसके बाद वे अपने धाम लौट गए। ये कर्म के चक्र की पूर्णता का प्रतीक है, कर्म भूलता नहीं।
कर्म का नियम है हर क्रिया का फल जरूर मिलता है
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि कोई भी मनुष्य एक क्षण भी बिना कर्म के नहीं रह सकता। श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए पांडवों का मार्गदर्शन किया, युद्ध की रणनीति बनाई और कई बार पारंपरिक नियमों को भी तोड़ा। धर्म की विजय के लिए उन्होंने कई तरह की लीलाएं रचीं।
गांधारी के सभी पुत्र महाभारत युद्ध में मारे गए। दुखी होकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया कि जिस तरह कौरव वंश खत्म हुआ है, ठीक इसी तरह तुम्हारा यदुवंश भी खत्म होगा। श्रीकृष्ण ने क्रोध नहीं किया, बल्कि इस शाप को भी स्वीकार किया, क्योंकि वे हमें संदेश देना चाहते थे कि हर कर्म की प्रतिक्रिया निश्चित है। श्रीकृष्ण की नीतियों की वजह से ही पांडवों ने कौरव वंश को खत्म कर दिया और धर्म की स्थापना हुई। इसके बदले में श्रीकृष्ण ने गांधारी का शाप स्वीकार किया।

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नि:स्वार्थ भाव के करना चाहिए कर्म
श्रीकृष्ण ने हमेशा निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया है। भगवान ने कभी भी राजपाट, यश, कीर्ति, वंश के लिए उन्होंने कभी मोह नहीं किया, उन्होंने सिर्फ धर्म के अनुसार कर्म पर ही ध्यान दिया। युद्ध में श्रीकृष्ण ने जो कर्म किए, उनकी वजह से उनके पूरे वंश को गांधारी का शाप झेलना पड़ा। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने हमें वही संदेश दिया है जो उन्होंने अर्जुन को दिया था। फल की चिंता छोड़ दो, लेकिन जब फल मिलता है तो उसे सकारात्मक सोच के साथ स्वीकार जरूर करना चाहिए।
कर्म और नियति, एक ही चक्र के अलग-अलग अंग हैं
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा अमर है, लेकिन शरीर नश्वर है। उन्होंने स्वयं ये सत्य अपने अंतिम समय से सिद्ध किया, जब जरा नाम के शिकारी ने श्रीकृष्ण के पैर में बाण मारा। माना जाता है कि जरा पुराने जन्म में बालि वानर था। विष्णु जी के अवतार राम ने बालि को छिपकर बाण मार था। त्रेतायुग के इस कर्म का फल द्वापर युग में विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को मिला। इसका अर्थ यही है कि हमारे कर्मों का फल केवल एक जन्म तक सीमित नहीं रहता, वह कई जन्मों तक हमारे साथ चलता है। जब श्रीकृष्ण के पैर पर बाण लगा, तब श्रीराम के रूप में किए गए कर्म का फल पूर्ण हुआ।
गीता कहती है कि मुक्ति केवल भक्ति से नहीं आती, बल्कि कर्म के फल को सहर्ष स्वीकारने से मिलती है। श्रीकृष्ण का संदेश यही है कि जब कर्म का फल आए तो हम भय नहीं, बल्कि साहस और संतुलन से उसका सामना करें। ध्यान रखें कर्म कभी भी हमें भूलता नहीं है, उसका फल जरूर मिलता है। इसलिए अच्छे कर्म करें, ताकि उसके फल भी हमें अच्छे ही मिले।