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7 घंटे पहले
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महाभारत का प्रसंग है। एक दिन खांडव वन में आग लग गई थी। उस समय वन की आग में मयासुर नाम का एक राक्षस जलने वाला था, लेकिन अर्जुन ने उसके प्राण बचा लिए थे। मयासुर ने अर्जुन से कहा, ‘आपने वन की आग से मुझे बचाया है, इस उपकार के बदले बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?
अर्जुन ने कहा, ‘आपने ये बात मुझसे कही है, बस यही मेरे लिए उस उपकार का बदला हो गया है। अब आप जा सकते हैं और ऐसा ही प्रेम हमेशा मुझसे बनाए रखिए।’
मयासुर बोला, ‘मैं दानवों का विश्वकर्मा हूं। शिल्प विद्या का जानकार हूं। मैं अद्भुत निर्माण करता हूं। मैं आपकी कुछ न कुछ सेवा तो करना चाहता हूं।’
अर्जुन ने साफ मना करते हुए कहा, ‘मुझे आपकी कोई सेवा नहीं चाहिए। अगर आप सेवा करना ही चाहते हैं तो श्रीकृष्ण से पूछ लीजिए, इनका कोई काम हो तो वह कर दीजिए।’
अर्जुन ने सोचा था कि श्रीकृष्ण भी मना ही करेंगे, लेकिन श्रीकृष्ण दूरदृष्टि रखकर ही कोई भी निर्णय लेते थे। श्रीकृष्ण ने मयासुर से कहा, ‘तुम पांडवों के बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर के लिए एक सभा भवन बना दो। सभा भवन ऐसा बनाना कि जो भी उसे देखे वह हैरान हो जाए।’
मयासुर ने युधिष्ठिर से बात करके एक अद्भुत सभा भवन बना दिया। उस समय अर्जुन को समझ आया कि श्रीकृष्ण कितना आगे की सोचते हैं। उस सभा भवन से पांडवों की शक्ति का पता लग गया और पांडवों को रहने के लिए सुंदर महल भी मिल गया था।
इस किस्से से सीखें जीवन प्रबंधन के ये सूत्र
दूरदृष्टि रखें – श्रीकृष्ण ने मयासुर से एक ऐसा कार्य करवाया जो तत्काल में एक भवन निर्माण था, लेकिन भविष्य में वही पांडवों की प्रतिष्ठा और सत्ता की नींव बना। निर्णय लेते समय केवल आज की स्थिति मत देखिए, भविष्य की संभावनाओं पर भी विचार करें।
अहंकार रहित बनें – अर्जुन ने जब मयासुर की सेवा को ठुकराया, तब भी उनमें कोई घमंड नहीं था। उन्होंने सेवा का श्रेय श्रीकृष्ण को दे दिया। जब सफलता मिले, तो उसे सभी करीबी लोगों के साथ बांटनी चाहिए।
विशेषज्ञता का सदुपयोग करें – मयासुर एक विशेषज्ञ शिल्पकार था। उसकी कला का उपयोग श्रीकृष्ण ने पांडवों के लिए भव्य आवास बनाने के लिए किया। अपने और दूसरों के कौशल का उपयोग सही दिशा में करें, तभी जीवन में सुख-शांति आ सकती है।
वर्तमान से सीखें और भविष्य के लिए तैयार रहें – कथा बताती है कि समय बदलते देर नहीं लगती। इसलिए बीते समय से सीख लेकर भविष्य के लिए तैयार रहना जरूरी है। गलती हो जाए तो पछताइए नहीं, सीखिए और आगे के लिए योजना बनाइए।
मदद करने वाले के लिए कृतज्ञ रहें – मयासुर ने अर्जुन के उपकार को पहचाना और आभार प्रकट किया। अर्जुन ने भी इस सेवा को त्याग कर नम्रता दिखाई। जीवन में जब कोई आपकी मदद करे, तो उसे कभी न भूलें। आभार की भावना जीवन में सकारात्मकता लाती है।
सही दिशा में सलाह लें – अर्जुन ने जब स्वयं निर्णय नहीं लिया, तो श्रीकृष्ण के पास मयासुर को भेज दिया। ये दिखाता है कि सही समय पर सही सलाह कितनी जरूरी है। जब कोई निर्णय कठिन लगे, तो किसी ज्ञानी व्यक्ति से मार्गदर्शन लें। सलाह लेना कमजोरी नहीं, बल्कि बुद्धिमानी है।