Loksabha Election 2024, Indian Celebrities In Politics: South superstars like MGR, J. Jayalalitha, NTR became Chief Ministers, amitabh bachchan, rekha failed | MGR, जे.जयललिता, NTR जैसे साउथ सुपरस्टार बने मुख्यमंत्री: राजीव गांधी ने कहा तो अमिताभ बच्चन ने चुनाव लड़ा, बॉलीवुड के मुकाबले साउथ स्टार्स का राजनीति में दबदबा

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16 मिनट पहले

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चुनाव न केवल फिल्मों का अहम सब्जेक्ट रहा है, बल्कि कई फिल्मी सितारों का भारत की राजनीति में अहम योगदान रहा है। साउथ सिनेमा हो या बॉलीवुड, सालों से सितारे चुनाव में उतरते रहे हैं। जहां एक तरफ साउथ सिनेमा से MGR, जे.जयललिता, NTR जैसे सितारों ने राजनीति में उतरकर मुख्यमंत्री पद संभाला, वहीं दूसरी तरफ सुपरस्टार राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे सितारे का राजनीतिक सफर चर्चा में रहा। चुनाव में उतरने वाले फिल्मी सितारों की फेहरिस्त लंबी है, हालांकि चंद ही ऐसे हैं, जिन्होंने राजनीति में सक्रिय रहकर झंडे गाड़े हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने से पहले एक नजर डालिए साउथ और बॉलीवुड सितारों के राजनीतिक सफर पर-

राजनीति में सबसे कामयाब रहे ये साउथ सुपरस्टार-

2 गोलियां लगी थीं, MGR ने अस्पताल से मद्रास स्टेट इलेक्शन की एप्लीकेशन भरी

MGR यानी एम.जी. रामचंद्रन। ये तमिल फिल्मों के सुपर स्टार भी रहे हैं, जिन्हें चाहने वाले भगवान की तरह पूजते थे। उनकी पॉपुलैरिटी का फायदा उठाने के लिए 50 के दशक की हर राजनीतिक पार्टी उन्हें अपने साथ शामिल करना चाहती थी। यही वजह रही कि 1953 में MGR ने कांग्रेस पार्टी जॉइन कर ली। कुछ समय बाद राइटर से पॉलिटिशियन बने सी.एन.अन्नादुरई ने उन्हें अपनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) में शामिल होने के लिए राजी कर लिया। ऐसे में 1962 में MGR पहली बार विधायक बने।

एमजीआर 3 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

एमजीआर 3 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

12 जनवरी 1967 को एक फिल्म के सिलसिले में हुई मीटिंग के दौरान साउथ फिल्मों के पॉपुलर विलेन एम.आर. राधा ने MGR पर गोलियां चला दीं। उनकी पॉपुलैरिटी इस कदर थी कि जैसे ही गोली लगने की खबर फैली तो एक घंटे में ही अस्पताल के बाहर 50 हजार फैंस इकट्ठा हो गए।

मद्रास स्टेट इलेक्शन का फॉर्म भरते हुए एमजीआर।

मद्रास स्टेट इलेक्शन का फॉर्म भरते हुए एमजीआर।

रिकवरी के दौरान ही MGR ने अस्पताल से मद्रास स्टेट इलेक्शन की एप्लीकेशन भरी। इसकी एक तस्वीर भी सामने आई, जब गर्दन और सिर पर पट्टी बांधे हुए MGR एक पेपर में साइन करते दिखे। फैंस और DMK पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनकी ये तस्वीर पूरे शहर में फैलाई। फायदा ये रहा कि 1967 में MGR पूरे 27 हजार वोटों के मार्जिन से विधायक बने। ये मद्रास के इतिहास में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले विधायक थे।

एमजीआर आमतौर पर भीड़ से दूर रहना पसंद करते थे, ऐसे में जब वो चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे, तो उन्हें देखने वालों की भीड़ लग जाया करती थी।

एमजीआर आमतौर पर भीड़ से दूर रहना पसंद करते थे, ऐसे में जब वो चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे, तो उन्हें देखने वालों की भीड़ लग जाया करती थी।

अन्नादुरई की मौत के बाद जब MGR ने DMK पार्टी में बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। पार्टी छोड़ने के बाद MGR ने अपनी पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम बनाई, जिसे बाद में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम नाम दिया गया। ये DMK की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने 1977 में 234 में से 130 सीटें हासिल कीं और MGR तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने।

MGR के कहने पर राजनीति में उतरीं जयललिता, उनकी मौत के बाद कुर्सी संभाली

सुपरस्टार MGR और जे.जयललिता का रिश्ता काफी सुर्खियों में रहा था। MGR से अलग होने के बाद भी जे.जयललिता उन्हें अपना गुरू मानती रहीं। MGR के कहने पर जे.जयललिता राजनीति में आईं। जब MGR ने अपनी पार्टी बनाई तो उन्होंने जे. जयललिता को भी पार्टी से जुड़ने को कहा। हालांकि पार्टी कार्यकर्ता इसके खिलाफ थे। जे.जयललिता पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम से जुड़कर प्रोपेगेंडा सेक्रेटरी बनीं जरूर, लेकिन विरोध के चलते MGR को उन्हें पद से हटाना पड़ा। पार्टी के लोग नहीं चाहते थे कि जे.जयललिता और MGR के रिश्ते के चलते पार्टी की छवि खराब हो।

1989 में तमिलनाडु विधानसभा में जे.जयललिता के साथ बदसलूकी हुई थी। उनकी साड़ी खींची गई थी।

1989 में तमिलनाडु विधानसभा में जे.जयललिता के साथ बदसलूकी हुई थी। उनकी साड़ी खींची गई थी।

MGR की मौत के बाद जे.जयललिता को उनके परिवार के विरोध का सामना करना पड़ा। उतार-चढ़ाव भरे राजनीतिक सफर में जे. जयललिता 1991 में पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। ये तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं।

सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के दौरान ली गई जे.जयललिता की तस्वीर।

सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के दौरान ली गई जे.जयललिता की तस्वीर।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नंदमुरी तारक रामा राव उर्फ NTR

60-70 के दशक में साउथ सिनेमा के स्टार रहे नंदमुरी तारक रामा राव उर्फ NTR ने भी राजनीति में सफलता हासिल की थी। उन्होंने राजनीति में कदम सिर्फ इसलिए रखा था, क्योंकि साउथ फिल्मों के प्रोड्यूसर वी. नागी रेड्डी ने उनसे कहा था कि कोई कितनी भी दौलत या शोहरत कमा ले, लेकिन असली पावर राजनेताओं के पास ही होता है। ये सुनते ही उन्होंने 1982 में अपनी तेलुगु देशम पार्टी बनाई। साउथ में भगवान की तरह पूजे जाने वाले NTR जब चुनाव में उतरे तो चाहने वालों ने उन्हें भरपूर प्यार दिया।

चुनाव प्रचार के दौरान ली गई एनटीआर की तस्वीर।

चुनाव प्रचार के दौरान ली गई एनटीआर की तस्वीर।

1983 में उन्होंने चुनाव में जीत हासिल कर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला। 1983-1994 तक NTR तीन बार आंध्र प्रदेश के सीएम बने थे।

चिरंजीवी ने बनाई थी अपनी पार्टी, चुनाव जीतकर कांग्रेस से हाथ मिलाया

साल 2008 में साउथ स्टार चिरंजीवी ने आंध्रप्रदेश में प्रजा राज्यम पार्टी बनाई थी। साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को 294 में से 18 सीटें मिली थीं। चिरंजीवी ने तिरुपति और पलकोल्लू से चुनाव लड़ा था, हालांकि वो सिर्फ तिरुपति से ही सीट जीत सके। 2011 में चिरंजीवी ने सोनिया गांधी से बात कर अपनी पार्टी को कांग्रेस में मिला दिया था। इसके बाद 2012 में वो राज्यसभा सदस्य बने। पार्टी से जुड़कर वो टूरिज्म मिनिस्टर भी रहे हैं। हालांकि 2018 से वो राजनीति में एक्टिव नहीं है।

सोनिया गांधी के साथ मंच साझा करते हुए चिरंजीवी।

सोनिया गांधी के साथ मंच साझा करते हुए चिरंजीवी।

इन बॉलीवुड सितारों ने भी राजनीति में आजमाया हाथ

राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में उतरे अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी करीबी दोस्त थे। ऐसे में अमिताभ बच्चन और राजीव की दोस्ती भी गहरी रही। साल 1984 में जब राजीव गांधी ने अमिताभ बच्चन से कहा कि उन्हें इलाहाबाद से हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ चुनाव में उतरना चाहिए, तो अमिताभ भी राजी हो गए। इस सीट पर हर किसी की नजर थी क्योंकि हेमवती नंदन बहुगुणा कभी चुनाव नहीं हारे थे, तब वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए, तो हर कोई हैरान रह गया। अमिताभ बच्चन के स्टार पावर के आगे हेमवती नंदन चुनाव हार गए।

चुनाव प्रचार के दौरान ली गई अमिताभ बच्चन की तस्वीर।

चुनाव प्रचार के दौरान ली गई अमिताभ बच्चन की तस्वीर।

फिल्मों में व्यस्त रहने के कारण अमिताभ राजनीति से दूर होते जा रहे थे, जिसका फायदा उनके राजनीतिक विरोधियों ने जमकर उठाया। बोफोर्स, फेयरफैक्स और पनडुब्बी घोटाले में अमिताभ का नाम घसीटा जाने लगा। यह दबाव अमिताभ नहीं झेल पाए और उन्होंने 1987 में राजनीति से संन्यास ले लिया।

एक चुनावी रैली में राजीव गांधी को माला पहनाते हुए अमिताभ बच्चन।

एक चुनावी रैली में राजीव गांधी को माला पहनाते हुए अमिताभ बच्चन।

लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव में उतरे थे राजेश खन्ना

साल 1991 में राजेश खन्ना ने कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। चुनाव में राजेश खन्ना ने अपोजिशन को कड़ी टक्कर दी, लेकिन वो महज 1589 वोटों की कमी से हार गए। आडवाणी को 93,662 वोट मिले थे, जबकि राजेश खन्ना को 92,073।

राजेश खन्ना, पत्नी डिंपल कपाड़िया, बेटियों ट्विंकल और डिंपल के साथ चुनाव प्रचार किया करते थे।

राजेश खन्ना, पत्नी डिंपल कपाड़िया, बेटियों ट्विंकल और डिंपल के साथ चुनाव प्रचार किया करते थे।

जब 1992 में लालकृष्ण आडवाणी ने दिल्ली सीट से इस्तीफा दिया, तो दिल्ली की सीट पर फिर उपचुनाव हुए। कांग्रेस ने इस चुनाव में फिर राजेश खन्ना को कैंडिडेट बनाया।

राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा की हुई टक्कर, नतीजे आने के बाद हुई थी अनबन

उपचुनाव में राजेश खन्ना के सामने भारतीय जनता पार्टी ने लाल कृष्ण आडवाणी के कहने पर शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट दी। चुनाव में राजेश खन्ना ने 25000 वोटों से जीत हासिल की और 1992-96 तक लोकसभा सदस्य रहे।

राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा दिल-ए-नादान और पापी पेट का सवाल जैसी कई फिल्मों में साथ काम कर चुके हैं।

राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा दिल-ए-नादान और पापी पेट का सवाल जैसी कई फिल्मों में साथ काम कर चुके हैं।

राजेश खन्ना का उस दौर में वो दबदबा था कि जीत के बावजूद वो इस बात से आहात हुए कि उन्हीं के दोस्त शत्रुघ्न सिन्हा उनके सामने चुनाव लड़ने के लिए राजी कैसे हुए। नतीजतन उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से बात करना बंद कर दिया। सालों बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने इसे अपनी गलती मानते हुए कहा था कि जब राजेश खन्ना अस्पताल में भर्ती थे, तब वो जाकर उनसे माफी मांगना चाहते थे, लेकिन अफसोस मुलाकात से पहले ही राजेश खन्ना चल बसे।

शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस, बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों का हिस्सा रहे हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस, बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों का हिस्सा रहे हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा दो बार सांसद रह चुके हैं। 2014 में उन्हें केंद्र में मंत्री पद नहीं मिला तो उनके भाजपा से संबंधों में खटास आ गई। 2019 में भाजपा ने उनकी जगह रविशंकर प्रसाद को पटना साहिब से उम्मीदवार बना दिया तो शत्रुघ्न सिन्हा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। वे भाजपा में करीब 28 साल रहे। इसके बाद कांग्रेस में उनका सफर मात्र तीन साल का ही रहा। फिर उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस जॉइन कर ली और अब आसनसोल से सांसद हैं। इस लोकसभा इलेक्शन मे उन्हें आसनसोल से टिकट दी गई है।

विदेश राज्य मंत्री बने थे विनोद खन्ना, अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था पद

1997 में एक्टर विनोद खन्ना भी राजनीति में उतरे थे। भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने के बाद वो गुरदासपुर, पंजाब से सांसद बने थे। 1999 में वो चुनाव जीतकर कल्चर एंड टूरिज्म के यूनियन मिनिस्टर बने। 6 महीने बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें विदेश राज्य मंत्री का पद दिया था। विनोद खन्ना इकलौते बॉलीवुड एक्टर हैं जिन्होंने 4 बार लोकसभा इलेक्शन में जीत हासिल की है।

चुनावी रैली के दौरान ली गई विनोद खन्ना की तस्वीर।

चुनावी रैली के दौरान ली गई विनोद खन्ना की तस्वीर।

धर्मेंद्र ने चार साल में छोड़ी राजनीति, सनी देओल भी अब राजनीति से कटे-कटे हैं

धर्मेंद्र ने साल 2004 में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और तब उन्होंने एकतरफा जीत हासिल की थी। हालांकि उसके बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। जब वो फिल्मों और राजनीति का तालमेल नहीं बैठा सके, तो उन्होंने 2008 में राजनीति से इस्तीफा दे दिया।

धर्मेंद्र महज 4 सालों तक ही राजनीति का हिस्सा रहे हैं।

धर्मेंद्र महज 4 सालों तक ही राजनीति का हिस्सा रहे हैं।

धर्मेंद्र की राह पर उनके बेटे सनी देओल ने भी 2019 में भारतीय जनता पार्टी जॉइन की थी। उन्होंने गुरदासपुर से कांग्रेस के कैंडिडेट सुनील जाखर को 82459 वोटों से हराया था। हालांकि वो फिलहाल राजनीति में सक्रिय नहीं है।

गदर 2 रिलीज के बाद से ही सनी देओल राजनीतिक मुद्दों से दूर हैं।

गदर 2 रिलीज के बाद से ही सनी देओल राजनीतिक मुद्दों से दूर हैं।

भाजपा की पार्टी महासचिव रही हैं हेमा मालिनी

1999 में हेमा मालिनी भारतीय जनता पार्टी के कैंडिडेट विनोद खन्ना के चुनाव प्रचार का हिस्सा बनी थीं। इसके बाद 2004 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी जॉइन की थी। साल 2003-09 तक वो अपर हाउस में सांसद रहीं। 2011 में हेमा मालिनी पार्टी महासचिव बनी थीं। साल 2014 में लोकसभा चुनाव में हेमा मालिनी ने मथुरा के आरएलडी चीफ जयंत चौधरी को 330743 वोटों से हराया था। हेमा मालिनी आज भी राजनीति में एक्टिव हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में हेमा मालिनी को मथुरा से चुनाव में उतारा गया है।

लोकसभा चुनाव 2024 में हेमा मालिनी को मथुरा से चुनाव में उतारा गया है।

20 सालों से राजनीति का हिस्सा हैं जया बच्चन

जया बच्चन साल 2004 में समाजवादी पार्टी की तरफ से चुनाव लड़कर सांसद बनी थीं। तब से लेकर आज तक वो राजनीति में सक्रिय हैं। संसद में दिए गए उनके बयान अकसर चर्चा में रहते हैं।

जया बच्चन 5 बार चुनाव जीतकर राज्यसभा सांसद बन चुकी हैं।

जया बच्चन 5 बार चुनाव जीतकर राज्यसभा सांसद बन चुकी हैं।

1994 से राजनीति में एक्टिव हैं जया प्रदा

जया प्रदा ने 1994 में साउथ के एनटी रामाराव की पार्टी तेलुगु देशम से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। साल 1996 में एक्ट्रेस पहली बार राज्यसभा सांसद के रूप में नियुक्त की गई थीं। कुछ सालों बाद ही एक्ट्रेस ने दक्षिण भारत छोड़कर उत्तर भारत की राजनीति में समाजवादी पार्टी के जरिए कदम रखा था। इस पार्टी के जरिए एक्ट्रेस दो बार सांसद चुना जा चुकी हैं।

2019 से जया प्रदा भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा हैं।

2019 से जया प्रदा भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा हैं।

बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से गोविंदा, शेखर सुमन, उर्मिला मातोंडकर, परेश रावल, शबाना आजमी जैसे कुछ सितारे ऐसे भी रहे हैं, जो राजनीति में तो उतरे, लेकिन लंबी पारी नहीं खेल सके। वहीं साउथ सिनेमा से थलपति विजय और कमल हासन जैसे सितारे भी अपनी पार्टी बना चुके हैं। हालांकि वो राजनीति में सक्रिय नहीं हैं।

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