9 घंटे पहले
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लोग अक्सर जरूरी काम को टालते रहते हैं। सोचते हैं कि अभी नहीं, बाद में अच्छा समय आएगा, तब करेंगे। अभी बुरा समय है, ये समय निकल जाए, फिर काम शुरू करेंगे, काम टालने की आदत हमें लक्ष्य से दूर कर देती है। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें संदेश देते हैं कि समय हमारे नियंत्रण में नहीं है। जो एकमात्र क्षण वास्तव में हमारे पास है, वह “अभी” है। गीता हमें सिखाती हैं कि प्रतीक्षा न करें। अभी उठें और अभी कर्म करने में लग जाएं, क्योंकि समय बिना रुके निकलता चल रहा है।
युद्धभूमि पर दिया था श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश
भगवान ने गीता का ज्ञान किसी शांत जगह पर नहीं, युद्ध भूमि पर दिया था। महाभारत की रणभूमि पर युद्ध शुरू होने से ठीक पहले अर्जुन शोक में डूबे थे, भ्रमित थे और मानसिक रूप से टूट चुके थे और वे युद्ध से भाग जाना चाहते थे, उस समय भगवान ने अर्जुन से ये नहीं कहा कि थोड़ा समय और ले लो, उन्होंने कहा कि खड़े हो जाओ। अभी कर्म करो। युद्ध करो।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म करने का संदेश हिंसा करने के लिए नहीं दिया था, बल्कि अपने कर्तव्य और जीवन के उद्देश्य पूरे करने के लिए दिया था। श्रीकृष्ण ने ये स्पष्ट किया कि डर के कारण इंतजार करना हमें पछतावे की ओर ले जाता है। जब हम किसी संदेह में फंसे हों, तब भी हमें कर्म करना चाहिए, किसी भी स्थिति में निष्क्रिय रहने से बेहतर है कर्म करना।
ध्यान रखें, समय पर किसी का अधिकार नहीं है
श्रीकृष्ण कहते हैं कि कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रभृद्धो यानी मैं काल हूं, संसार का संहारक हूं। भगवान ने ये बात डराने के लिए नहीं कही थी, बल्कि अर्जुन को जागृत करने के लिए कही थी।
लोग हर काम को बाद में करने की योजना बनाते हैं, जैसे बाद में किसी को क्षमा करेंगे, बाद में बदलाव करेंगे, बाद में धर्म के अनुसार जीएंगे, लेकिन समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, समय पर किसी का अधिकार नहीं है। इसलिए हम समय गंवाए बिना कर्म करने पर ध्यान देना चाहिए।
श्रीकृष्ण हमें सचेत करते हैं कि ये क्षण जो तुम्हारे पास है, वह अमूल्य है। इसे विचार करने में, कड़वाहट, निराशा, ईर्ष्या और आलस में बर्बाद नहीं करना चाहिए।
अच्छे समय की प्रतीक्षा करना एक भ्रम है, इससे बचें
अधिकतर लोग कभी न कभी कहते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाए, तब काम शुरू करूंगा। लेकिन गीता हमें सिखाती है कि अच्छा समय एक माया है, इसमें उलझने से बचना चाहिए। हम अपने कर्म तुरंत शुरू कर देने चाहिए।
अगर युद्ध के पहले श्रीकृष्ण अर्जुन की सही मानसिक स्थिति की प्रतीक्षा करते तो युद्ध समाप्त हो जाता और वे वहीं खड़े रह जाते, धर्म की स्थापना नहीं हो पाती।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा कि कर्म करते जाओ, स्पष्टता उसी से आएगी। तुम्हारा कर्तव्य ही तुम्हारा धर्म है, उसे मत टालो।
शांति इंतजार करने से नहीं, कर्म करने से मिलती है
कई लोग सोचते हैं कि कठिन निर्णयों से बचकर, उन्हें टालकर जीवन में शांति मिल जाएगी, लेकिन गीता कहती है कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। हमारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
शांति फल से नहीं, कर्म में समर्पित होने से मिलती है। जो करना है, उसे करो, शांति तो कार्य करने की प्रक्रिया से ही मिलती है।