- Hindi News
- Jeevan mantra
- Dharm
- Lessons From The Story Of Lord Shiva And Daksha Prajapati, Life Management Story Of Daksh Prajapati And Lord Shiva
6 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

भगवान शिव और दक्ष प्रजापति की कहानी है। दक्ष ने एक दिन एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें शिव जी के साथ सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनि और विद्वानों का बुलाया गया था। जब दक्ष यज्ञ स्थल पर आए तो सभी देवता उनके सम्मान में खड़े गए। उस समय सभी को खड़ा देखकर दक्ष के मन में अहंकार आ गया।
दक्ष का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि मेरे सम्मान में कितने लोग खड़े हुए हैं, दक्ष ये देखने लगे कि कौन खड़ा नहीं हुआ है। उस समय भगवान शिव ध्यानमग्न बैठे हुए थे, वे दक्ष के दामाद थे, लेकिन उन्होंने किसी के आने-जाने पर ध्यान नहीं दिया। दक्ष को ये बात अपमानजनक लगी।
अहंकार वश दक्ष बोले कि ये मेरे दामाद हैं, फिर भी मेरे सम्मान में नहीं उठे। मैंने अपनी पुत्री सती का विवाह ऐसे व्यक्ति से कर दिया, जिसका रूप विचित्र है। दक्ष के कटु वचनों से यज्ञ स्थल की शांति भंग हो गई।
शिव जी ने तो कुछ नहीं कहा, वे मौन रहे, लेकिन उनके वाहन नंदी ने शिव जी का ये अपमान सहन नहीं किया और क्रोध में दक्ष को शाप दे दिया। ये देखकर भृगु ऋषि ने नंदी को शाप दे दिया। देखते ही देखते पूरा यज्ञ स्थल शापों का रणक्षेत्र बन गया। एक पवित्र यज्ञ, जो सभी के कल्याण के लिए आयोजित किया गया था, आपसी अहंकार और अपमान के कारण विनाश का कारण बन गया।
अंततः शिव जी अपने गणों के साथ यज्ञ स्थल से चले गए। आगे चलकर यही घटना सती के आत्मदाह और दक्ष यज्ञ के विनाश का कारण बनी थी।
प्रसंग की सीख
इस कथा से हमें ये सीख मिलती है कि जब व्यक्ति अपने पद और प्रतिष्ठा में डूब जाता है, तो उसे दूसरों का सम्मान दिखाई नहीं देता। अहंकार अच्छे कामों को भी बर्बाद कर देता है। इसलिए इस बुराई से बचना चाहिए। अब जानिए अहंकार कैसे दूर सकते हैं-
- अहंकार की पहचान करें
जब आप दूसरों के व्यवहार से अधिक अपने सम्मान की चिंता करने लगते हैं, समझिए आपके स्वभाव में अहंकार प्रवेश कर चुका है। इसे समय रहते पहचानें और नियंत्रित करें।
- पद बड़ा नहीं, व्यवहार बड़ा होता है
दक्ष प्रजापति का पद बड़ा था, इसी वजह से उनके मन में अहंकार आ गया था। शिव जी का स्थान सबसे ऊंचा है, लेकिन फिर भी दक्ष ने अहंकार की वजह से उनका अपमान कर दिया। हमें ध्यान रखना चाहिए कि जीवन में पद से नहीं, व्यवहार से सम्मान मिलता है।
- मौन से टल सकता है विवाद
दक्ष की अपमानजनक बातों पर शिव जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वे अपने गणों को लेकर वहां से चले गए। शिव जी के मौन ने उस समय हालात को और बिगड़ने से रोक दिया। हमें भी विवाद की स्थिति में मौन धारण करना चाहिए, ऐसा करने से विवाद टल सकता है।
- क्रोध में किसी से कुछ कहने से बचें
क्रोध और अहंकार में बोले गए शब्द रिश्तों को तोड़ देते हैं। क्रोध की स्थिति में किसी से कुछ बोलने से बचना चाहिए। बोलने से पहले सोच-विचार जरूर करें, वर्ना सब कुछ बर्बाद हो सकता है।
- हर स्थिति में शांति बनाए रखें
मुश्किल समय में भी शांत रहना चाहिए। शांत मन वाला व्यक्ति हमेशा समाधान खोज लेता है और दूसरों की अपमानजनक बातों पर भी तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देता है। ध्यान रखें दूसरों का सम्मान करने से ही हमें भी सम्मान मिलता है।
