Lessons from the Bhagavad Gita: How to avoid overthinking, Lord krishna and Arjun story life management tips from gita | श्रीमद् भगवद् गीता की सीख: ओवरथिंकिंग से कैसे बचें: अनियंत्रित मन सफलता-असफलता में उलझ जाता है और बहुत ज्यादा सोच-विचार करने लगता है

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31 मिनट पहले

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श्रीमद् भगवद गीता का संदेश है कि अनियंत्रित मन माया और अहंकार में बहुत जल्दी उलझ जाता है। आज अधिकतर लोग माया और अहंकार में उलझकर ओवरथिंकिंग यानी बहुत ज्यादा सोच-विचार करने लगते हैं, इस वजह से वे परेशान रहते हैं। सुख-दुख, प्रशंसा-आलोचना, सफलता-असफलता ये सभी माया ही हैं। गीता हमारे भ्रम दूर करती है और हमें मन को स्थिर करने का मार्ग दिखाती है। जानिए गीता के कुछ ऐसे सूत्र, जिनकी मदद से हम ओवरथिंकिंग से बच सकते हैं…

अपने पथ पर चलें यानी स्वधर्म का पालन करें

भगवद गीता स्वधर्म पर चलने की शिक्षा देती है। जब हम अपनी प्रकृति और कर्म के अनुरूप आगे बढ़ते हैं, तब ही शांति प्राप्त करते हैं। परधर्म में सफलता से अच्छा है, स्वधर्म में असफलता, ये श्लोक हमें याद दिलाता है कि दूसरों की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करने और जीने से हमारे जीवन की सुख-शांति खत्म हो जाती है। हमें सिर्फ अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, तब ही हम ओवरथिंकिंग से बच सकते हैं।

कर्म करें, फल की चिंता न करें

अति चिंतन यानी ओवरथिंकिंग की मुख्य वजह है डर, अस्वीकृति का डर, असफलता का डर और गलत समझे जाने का डर। कर्मयोग के अनुसार हमें सिर्फ कर्म करना चाहिए, फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करने का अधिकार तुम्हारा है, लेकिन फल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। जब हम परिणाम की चिंता छोड़कर सिर्फ कर्म में लगते हैं, तब मन का बोझ हल्का होता है।

मन को नियंत्रित करें, अनुशासन बनाए रखें

ओवरथिंकिंग तब होती है, जब हमारा मन अनुशासित नहीं होता है, मन अनियंत्रित होता है। श्रीमद् भगवद् गीता कहती है कि हमारा मन मित्र भी हो सकता है और शत्रु भी। ध्यान, श्वास अभ्यास और लगातार मनन करने से हम मन को नियंत्रित कर सकते हैं। मन नियंत्रित हो जाएगा तो हम बहुत ज्यादा सोच-विचार करने से बच जाएंगे।

प्रशंसा और आलोचना दोनों में समानता का भाव रखें

सच्ची शांति समानता के भाव में है। जब हम अपनी प्रशंसा से उत्तेजित और अहंकारी हो जाते हैं तो संतुलन खत्म हो जाता है। जब हम आलोचना से निराश होते हैं तो हमारा संतुलन खत्म होता है। गीता सिखाती है कि सुख और दुख, लाभ और हानि, मान और अपमान, ये सब जीवन के हिस्से हैं। स्थिर चित्त बाहरी बातों से प्रभावित नहीं होता है। जब हम अपनी प्रशंसा और आलोचना में समानता का भाव रखते हैं, यानी इन दोनों स्थितियों में एक समान रहते हैं, तब मन नियंत्रित रहता है।

दूसरों की सोच की कल्पना करने से बचें

अति चिंतन का एक बड़ा कारण है, दूसरों की सोच की कल्पना करना। जब हम अपने लिए दूसरों की सोच के बारे में ज्यादा कल्पना करने लगते हैं, तब मन अस्थिर हो जाता है। दूसरे लोग हमारे लिए क्या सोचते हैं, इस बारे में विचार करने से बचेंगे तो मन स्थिर रहेगा, शांत रहेगा।

अहंकार को तुरंत त्यागें

गीता कहती है कि जिस तरह कमल की पत्ती पानी से अछूती रहती है, ठीक उसी तरह इंसान को अहंकार से मुक्त रहना चाहिए। श्रेष्ठ इंसान वही है जो संसार के प्रभावों से भी अछूता रहता है। जब अहंकार खत्म होता है, तब ओवरथिंकिंग की आदत भी छूट जाती है।

वर्तमान पर ध्यान दें

ओवरथिंकिंग या तो अतीत के पछतावे की वजह से होती है या भविष्य की चिंता से। गीता कहती है कि हमें सिर्फ वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए। जब हमारी जीवनशैली संतुलित होती है, खानपान, कार्य, विश्राम सब में तालमेल होता है, तब हम पल में स्थिर होते हैं और कल्पनाओं से बाहर आकर वास्तविकता में जीने लगते हैं। हमें भूतकाल और भविष्य के बारे में सोच-विचार छोड़कर सिर्फ वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए।

अर्जुन का युद्ध केवल बाहरी नहीं था, वह भीतर का भी था। भगवद गीता हमें संसार से विमुख नहीं करती है, बल्कि ये सिखाती है कि स्वयं को दुनिया की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, हमें सिर्फ धर्म के अनुसार अपने कर्म करते रहना चाहिए।

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