Learning the entire Ramayana in 7 days, Part 1 of Balakanda | 7 दिन में सम्पूर्ण रामायण की सीख, भाग-1 बालकांड: ​दशरथ ने कहा- पुत्र से दूरी नहीं सह पाऊंगा, वशिष्ठ बोले- पुत्र बाहर निकलेगा, तभी क्षमतावान बनेगा

3 घंटे पहले

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संवाद-1 : दशरथ-विश्वामित्र अयोध्या पधारे ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा- राजन! राक्षस मेरे यज्ञ में बाधा डाल रहे हैं, अपने पुत्र राम को 10 दिनों के लिए मुझे सौंप दें। दशरथ बोले- मैं 60 हजार साल का बूढ़ा हूं, बड़े मनोरथ से पुत्र हुआ है। उससे दूरी न सह पाऊंगा। राम 16 बरस के भी नहीं हैं। मैं साथ चलता हूं।पुत्र हुआ है। उससे दूरी न सह पाऊंगा। राम 16 बरस के भी नहीं हैं। मैं साथ चलता हूं।

विश्वामित्र क्रोधित हो गए। फिर महर्षि वशिष्ठ ने दशरथ से कहा- राजन्! इसमें राम का ही कल्याण है। वे नए अस्त्र-शस्त्र-विद्याएं सीखकर और ज्यादा क्षमतावान बन जाएंगे। ऐसा सुन दशरथ मान गए।

चुनौती: माता-पिता बच्चों को खतरे से बचाना चाहते हैं, संरक्षण में ही रखना चाहते हैं, जिससे वे मौके खो देते हैं। सीख: अपने बच्चों को व्यवहारिक जीवन के मैदान में उतरने दें। हमेशा सुरक्षित घेरे में रहेंगे, तो मुश्किलों से निपटने के जरूरी गुर सीखकर आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में बालकांड के सर्ग 19, 20, 21, 49, 67 और 76 से ये संवाद लिए गए हैं। कल पढ़ें दूसरा भाग अयोध्याकांड…

संवाद-2 : श्रीराम-अहल्या श्रीराम-लक्ष्मण को लेकर विश्वामित्र ऋषि गौतम के आश्रम पहुंचे। यहां गौतम की पत्नी अहल्या पति के शाप की वजह से हजारों वर्षों से अदृश्य रूप में हवा पीकर कष्ट भोग रही थीं। श्रीराम के स्पर्श से ही वे प्रकट हो गईं। अहल्या ने कहा – नमः ते राम! आपके कारण मुझे पाप मुक्ति मिली है। श्रीराम ने कहा- माते! यह आपके तप और धैर्य का फल है। मनुष्य से भूल हो सकती है, पर सत्य और तप मुक्ति देते हैं। अब आप निःशंक होकर अपने आश्रम में सुखपूर्वक निवास कीजिए।

चुनौती: अक्सर लोग अपने जीवन में गलती, अपमान या असफलता के बाद खुद को पूरी तरह खो बैठते हैं। सीख : धैर्य के साथ सत्य के मार्ग पर डटे रहने से उन्नति और कल्याण निश्चित है। साथ ही, यह भी अटल विश्वास रहे कि नया अवसर मिलना तय है।

संवाद-3 : जनक-विश्वामित्र सीता स्वयंवर के लिए जनक दरबार में शिव धनुष लाया गया। इसे 8 पहियों वाले लोहे के बक्से में 5 हजार हट्‌टे-कट्‌टे लोग मुश्किल से खींचकर ला पाए। सभा में सब सोचने लगे कि ये धनुष कौन उठा पाएगा? राजा जनक ने विश्वामित्र से पूछा- गुरुदेव!

आपके साथ जो राम-लक्ष्मण हैं, क्या वे भी प्रयास करना चाहेंगे? विश्वामित्र मुस्कराकर बोले- राजन! राम सिर्फ दशरथ के पुत्र नहीं, वे असाधारण सामर्थ्य और गहन विनम्रता से सम्पन्न हैं। उन्हें अवसर दीजिए, जरूर सफल होंगे। चुनौती: कई लोग हमारी क्षमता पर भरोसा नहीं करते। ‘क्या तुम कर पाओगे?’ ऐसी शंका मौका छीन लेती है। सीख : जनक शंका में थे, विश्वामित्र के विश्वास ने राम को अवसर दिलाया। यह सिखाता है कि जीवन में सही मार्गदर्शन और विश्वास ही पूंजी है।

संवाद-4 : श्रीराम-परशुराम सीता स्वयंवर में धनुष टूटने का समाचार पाते ही परशुराम गुस्से में पहुंचे, कहा- ‘महादेव का धनुष किसने तोड़ा है? क्या उस वीर में इतना सामर्थ्य है कि मेरे विष्णुधनुष पर बाण चढ़ाकर दिखा सके? आज उसे इस अपराध का दंड अवश्य दूंगा।’

श्रीराम ने कहा- मैं दशरथ पुत्र राम हूं। फिर विनम्रता व आदर से प्रणाम किया और धनुष उठाकर बाण चढ़ाया। क्षणभर में ही परशुराम का तेज शांत हो गया। वे समझ गए कि ये साधारण राजकुमार नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु का अवतार हैं। चुनौती: अगर कोई शक्तिशाली व्यक्ति गुस्से और अपमान में हमें नीचा दिखाए। अपशब्द कहने लगे। सीख : राम की तरह संयम और विनम्रता से उत्तर दें। सम्मान व शांति अहंकार को खामोश कर देती है। अपनी क्षमता शब्दों से नहीं, काम से साबित करें।

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