कोलकाता2 घंटे पहलेलेखक: प्रभाकर मणि तिवारी
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कोलकाता के महाश्मशान घाट में चिताओं के बीच देश की एकमात्र काली पूजा होती है, यहां पंडाल में भी चिता रखते हैं।
पश्चिम बंगाल में जितना महत्व नवरात्र का है, लगभग उतना ही काली पूजा का है, जो दीपावली के दिन यानी 20 अक्टूबर को होगी। इसकी तैयारियां महानगर के सबसे बड़े श्मशान केवड़ातला पर लगभग पूरी हो चुकी हैं।
यह जगह मशहूर कालीघाट मंदिर के पास ही है, जहां चौबीस घंटे चिताएं जलती हैं। इसलिए इसे महाश्मशान कहा जाता है। फिलहाल डोम संप्रदाय के लोग श्मशान की दीवारों की रंगाई-पुताई कर चुके हैं।
काली पूजा के आयोजक उत्तम दत्त बताते हैं कि जब तक श्मशान में कोई शव नहीं आता, तब तक देवी को हम भोग नहीं चढ़ाते। पूरे बंगाल में यह पूजा सिर्फ कालीघाट पर ही होती है।
इसके अलावा, उनकी पूजा के समय यहां जलने के लिए आने वाली एक चिता भी पंडाल में रखी जाती है। इन्हीं परंपरा के चलते ही श्मशान का माहौल रहस्यमय बन जाता है।

150 साल से ज्यादा पुरानी है परंपरा
अमूमन काली माता की मूर्तियों में 8 से 12 हाथ होते हैं, देवी की जीभ भी बाहर निकली होती है, लेकिन काली पूजा की मूर्ति में सिर्फ दो हाथ होते हैं और जीभ भी मुंह के अंदर रहती है। दत्त के मुताबिक चिताओं के बीच ही यह सबसे बड़ी पूजा होती है। इसकी शुरुआत 1870 में एक कापालिक ने की थी। उन्होंने दो स्थानीय ब्राह्मणों की मदद ली थी।
चीनी काली मंदिर; पेड़ के नीचे रखी नारायण शिला का चमत्कार चीनी लोग भी मानते हैं, बीजिंग से भी आते हैं भक्त
कोलकाता के ही मशहूर टेंगरा इलाके में एक चीनी काली मंदिर भी है, जहां हिंदू और चीन की संस्कृति का बेहतरीन तालमेल नजर आ जाएगा। चीनी समुदाय का आखिर काली से क्या संबंध है? इसका जवाब मंदिर के पुजारी अर्णब मुखर्जी ने दिया। उन्होंने बताया कि करीब छह दशक पहले एक चीनी बालक काफी गंभीर रूप से बीमार पड़ा था। तमाम इलाज बेअसर हो गए थे। उसके बाद उसके घरवालों ने पेड़ के नीचे रखे उन पत्थरों की पूजा की और बच्चे के ठीक होने का आशीर्वाद मांगा।
कुछ दिनों बाद वह बच्चा चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हो गया। उसके बाद चीनियों में काली देवी के प्रति श्रद्धा रातों-रात बढ़ी और समुदाय के लोगों ने चंदा जुटा कर वहां मौजूदा मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर में नारायण शिला होने के कारण यहां चढ़ने वाला भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। जबकि बंगाल की काली पूजा में मांस का भोग चढ़ाने की परंपरा है।