16 घंटे पहले
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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ (10 अक्टूबर) का व्रत किया जाता है, ये व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए महाव्रत की तरह है, क्योंकि मान्यता है कि जो महिला ये व्रत करती है, उसे अखंड सौभाग्य मिलता है। व्रत करने वाली महिलाओं के घर में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है, जीवन साथी स्वस्थ रहता है। ये व्रत निर्जला है यानी इस व्रत में महिलाएं पानी भी नहीं पीती हैं।
करवा चौथ 10 अक्टूबर को; ये हैं व्रत से जुड़ी परंपराएं
करवा चौथ व्रत 10 अक्टूबर को किया जाएगा। इस व्रत में चंद्र दर्शन का महत्व काफी अधिक है। ये व्रत शाम को चंद्र दर्शन और पूजन के बाद ही पूरा होता है। इस व्रत में महिलाएं सुबह जल्दी जागती हैं और स्नान के बाद सूर्योदय से पहले सरगी खाकर व्रत शुरू करती हैं। इसके बाद पूरे दिन निर्जल रहती हैं।
ये निर्जला व्रत है यानी दिन भर जल और अन्न का त्याग किया जाता है। ये ससुराल पक्ष से दिया जाता है, इसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। विशेषकर लाल रंग को शुभ माना जाता है, इसलिए महिलाएं श्रृंगार में लाल चीजों का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं।
इस दिन शिव-पार्वती, गणेश जी और करवा माता की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। करवा चौथ की व्रत कथा भी खासतौर पर पढ़ी-सुनी जाती है। कई जगहों पर महिलाएं छलनी से चंद्रमा और पति को देखकर व्रत खोलती हैं।
व्रत करने वाले भक्तों को क्रोध से बचना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए। दिन में सोने से बचना चाहिए। ये व्रत तपस्या की तरह है, इसलिए इसे तप के भाव के साथ ही करना चाहिए।
महिलाएं जरूरतमंदों को सुहाग का सामान दान करें, जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि। इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को भारी शारीरिक श्रम करने से बचना चाहिए, वर्ना भूख-प्यास बढ़ सकती है। शरीर में पानी की कमी होने से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें भी हो सकती हैं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
इस व्रत की कथा वीरावती नाम की एक महिला से जुड़ी है। कथा के मुताबिक, वीरावती एक साहूकार की इकलौती बेटी थी, इसने अपने पहले करवा चौथ व्रत में दिन भर भूखी-प्यासी रहकर उपवास किया। शाम होते-होते वह भूख-प्यास की वजह से बेहोश होने लगी। उसके भाई वीरावती की ऐसी हालत देखकर व्याकुल हो उठे और उन्होंने एक झूठा चंद्रमा दिखाकर बहन से व्रत तुड़वा दिया।
व्रत में छल करने से उसके पति की मृत्यु हो गई। दुखी वीरवती ने देवी मां से क्षमा मांगी और मार्गदर्शन करने की प्रार्थना की। माता ने उसे फिर से विधिपूर्वक व्रत रखने का निर्देश दिया। माता की बात मानकर वीरावती ने अगली करवा चौथ का व्रत ईमानदारी से किया। जिससे उसके पति को जीवनदान मिला। यह कथा सिखाती है कि व्रत में छल या अधूरी निष्ठा नहीं होनी चाहिए।