karva chauth on 20th October, significance of karva chauth, Chauth Mata, Chandra puja, karva Chauth story | 20 अक्टूबर को करवाचौथ: भगवान गणेश, चौथ माता, चंद्र देव के साथ सूर्य की पूजा का शुभ योग, महिलाएं निर्जल रहकर करती हैं ये व्रत

1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

रविवार, 20 अक्टूबर को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी करवा चौथ है। ये विवाहित महिलाओं के लिए महाव्रत की तरह है। माना जाता है कि इस व्रत से महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है यानी व्रत करने वाली महिला के पति को लंबी उम्र, सौभाग्य, अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। अपने जीवन साथी के सुखद जीवन की कामना से महिलाएं दिनभर निर्जल रहती हैं यानी अन्न के साथ ही पूरे दिन पानी का भी त्याग करती हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, इस साल रविवार को करवा चौथ का व्रत होने से इस दिन भगवान गणेश, चौथ माता, चंद्र देव के साथ ही सूर्य देव की पूजा का शुभ योग बना है। दिन की शुरुआत सूर्य को अर्घ्य देकर करेंगे तो बहुत अच्छा रहेगा। चतुर्थी तिथि के स्वामी हैं भगवान गणेश प्रथम पूज्य भगवान गणपति चतुर्थी तिथि पर ही प्रकट हुए थे, इस कारण वे ही इस तिथि के स्वामी माने गए हैं। गणेश जी की कृपा पाने की कामना से भक्त चतुर्थी तिथि पर व्रत और भगवान का विशेष पूजन करते हैं। करवा चौथ से जुड़ी मान्यताएं करवा चौथ पर गणेश जी के साथ ही चौथ माता और चंद्र देव की पूजा की जाती है। रात में चंद्र उदय के बाद चंद्र को अर्घ्य दिया जाता है। चंद्र दर्शन और पूजन के बाद ही महिलाएं खाना-पानी ग्रहण करती हैं। इस व्रत में करवा चौथ माता की कथा पढ़ने और सुनने की परंपरा है। इसके बिना ये व्रत पूरा नहीं माना जाता है। ये है करवा चौथ की कथा

  • ये पौराणिक कहानी वेद शर्मा नाम के एक ब्राह्मण की पुत्री वीरावती से जुड़ी है। वेद शर्मा इंद्रप्रस्थ नगर में रहता था। लीलावती उसकी पत्नी थी। वेद शर्मा और लीलावती के सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था।
  • वीरावती बड़ी हुई तो सातों भाइयों ने उसका विवाह करवा दिया। शादी के बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी पर वीरावती अपने भाइयों से मिलने उनके घर आई थी। उस दिन वीरावती की सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत कर रही थीं, उनके साथ ही वीरावती ने भी ये व्रत कर लिया।
  • वीरावती भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी, इस वजह से चंद्र उदय पहले ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए।
  • सभी भाइयों ने तय किया कि किसी तरह बहन को खाना खिलाना चाहिए। उन्होंने सोच-विचार करके एक पेड़ के पीछे से मशाल जलाकर रोशनी कर दी। बहन को होश में लाकर कहा कि चंद्र उदय हो गया है। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधि-विधान से मशाल के उजाले को ही अर्घ्य दे दिया और इसके बाद भोजन कर लिया।
  • अगले दिन वीरावती अपने ससुराल लौट आई। कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद वीरावती ने अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी दिन इंद्राणी पृथ्वी पर आई थीं। वीरावती ने इंद्राणी को देखा तो उनसे अपने दुख की वजह पूछी।
  • इंद्राणी ने वीरावती को बताया कि तुमने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत सही तरीके से नहीं किया था, उस रात चंद्र उदय होने से पहले ही तुमने अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इस वजह से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है।
  • इंद्राणी ने आगे कहा कि अगर तुम अपने पति को फिर से जीवित करना चाहती हो तो तुम्हें विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करना होगा। मैं उस व्रत के पुण्य से तुम्हारे पति को जीवित कर दूंगी।
  • वीरावती ने पूरे साल की सभी चतुर्थियों का व्रत किया और जब करवा चौथ आई तो ये व्रत भी पूरे विधि-विधान से किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दे दिया। इसके बाद उनका वैवाहिक जीवन सुखी हो गया। वीरावती के पति को लंबी आयु, अच्छी सेहत और सौभाग्य मिला।

मान्यता : करवा चौथ से जुड़ी मान्यता है कि जो महिलाएं करवा चौथ की कथा पढ़ती-सुनती हैं, उनके जीवन साथी को अच्छा स्वास्थ्य, लंबी उम्र और भाग्य का साथ मिलता है।

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *