मुंबई35 मिनट पहले
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प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) मनोज गौर को मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया है। यह मामला घर खरीदने वालों से लिए गए 12,000 करोड़ रुपए के फंड डायवर्शन (पैसों की हेराफेरी) से जुड़ा है।
कंपनी के खिलाफ यह मामला 2017 से चल रहा है। इसमें करीब 21,000 फ्लैट के लिए एडवांस पैसे देने वाले लोग फंस चुके हैं। इन बायर्स ने नोएडा के विश टाउन जैसे प्रोजेक्ट्स में फ्लैट बुक किए थे लेकिन जब उन्हें फ्लैट्स नहीं मिले।
फंड्स को ग्रुप की दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर करने का आरोप
ED के अधिकारियों ने बताया कि गौर ने कंपनी के फैसलों में अहम रोल निभाया और फंड्स को ग्रुप की दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर किया। ED ने यह गिरफ्तारी दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और मुंबई में 15 लोकेशन्स पर छापेमारी के बाद की है। छापों में 1.7 करोड़ रुपए कैश, डिजिटल डेटा और प्रॉपर्टी डॉक्यूमेंट्स जब्त किए गए।
ED के मुताबिक, जेपी ग्रुप की सब्सिडियरी कंपनियां जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (JIL) और जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (JAL) में बड़े लेवल पर वित्तीय अनियमितताएं हुईं। घर खरीदने वालों और बैंक से लिए गए पैसे को हाउसिंग प्रोजेक्ट्स पूरा करने की बजाय अन्य वेंचर्स में भेज दिया गया। डायवर्ट किया गया।

बायर्स ने नोएडा के विश टाउन जैसे प्रोजेक्ट्स में फ्लैट बुक किए थे लेकिन जब उन्हें फ्लैट्स नहीं मिले।
क्या है पूरा मामला
जेपी इंफ्राटेक NCR का एक बड़ा रियल एस्टेट डेवलपर था, जो यमुना एक्सप्रेसवे पर विश टाउन और जेपी ग्रीन्स जैसे प्रोजेक्ट्स बना रहा था। लेकिन 2017 में IDBI बैंक ने 526 करोड़ रुपए के डिफॉल्ट पर NCLT इलाहाबाद में पिटीशन दाखिल की। 9 अगस्त 2017 को इन्सॉल्वेंसी प्रोसेस शुरू हो गया।
इसमें 21,000 से ज्यादा लोग फ्लैट्स बुक करने के बाद बिना घर के रह गए। बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया और IBC (इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी) में अमेंडमेंट करवाया, जिससे होमबायर्स को फाइनेंशियल क्रेडिटर्स का स्टेटस मिला। इससे उन्हें समझौते वाली प्रोसेस में वोटिंग के अधिकार मिले।
हजारों लोग पिछले 8-10 साल से इंतजार कर रहे
इन प्रोजेक्ट्स में फ्लैट के लिए एडवांस देकर हजारों लोग पिछले 8-10 साल से इंतजार कर रहे हैं। नोएडा के विश टाउन में बुकिंग करने वालों ने प्रोटेस्ट्स किए, लेकिन फंड्स डायवर्शन की वजह से कंस्ट्रक्शन रुका। ED के एक अधिकारी ने कहा, “यह केस क्रिमिनल कॉन्स्पिरेसी और डिशोनेस्ट इंड्यूसमेंट का है, जहां खरीदारों को झूठे वादों पर पैसे लिए गए।”
अब गिरफ्तारी से होमबायर्स को राहत मिल सकती है। NCLT प्रोसेस तेज हो सकता है, और जब्त प्रॉपर्टीज से फंड्स रिकवर हो सकते हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि रिजॉल्यूशन में अभी 2-3 साल लग सकते हैं।
