बेंगलुरु16 घंटे पहले
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सेमी क्रायोजेनिक इंजन के डेवलपमेंट में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो ने एक और टेस्ट पास कर लिया है। स्पेस एजेंसी ने बताया कि सेमी क्रायोजेनिक इंजन को स्टार्ट करने के लिए प्रीबर्नर को इगनाइट करना पड़ता है। इसी का टेस्ट सक्सेसफुल रहा है।
ये टेस्ट 2 मई 2024 को महेंद्रगिरी में किया गया। ये इंजन इसरो के LVM3 रॉकेट की पेलोड कैपेसिटी को बढ़ाने में मदद करेगा। LVM3 वही रॉकेट है जिसके जरिए भारत ने अपना च्रंदयान-3 मिशन लॉन्च किया था। च्रंदयान-4 मिशन में भी इसी रॉकेट का इस्तेमाल होगा।
विकास इंजन को रिप्लेस करेगा सेमी क्रायोजेनिक इंजन
इसरो का सेमी क्रायोजेनिक इंजन लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) और केरोसीन के कॉम्बिनेशन पर काम करता है। ये 2,000kN का थ्रस्ट जनरेट करता है। जब ये इंजन बनकर तैयार हो जाएगा तो LVM3 रॉकेट की सेकेंड स्टेज में लगे विकास इंजन को रिप्लेस करेगा।

दुनिया ने क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी देने से मना किया तो भारत ने खुद बनाई
- मिखाइल गोर्बाचेव के तहत, तत्कालीन सोवियत संघ की स्पेस एजेंसी 1991 में इसरो को क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने पर सहमत थी। उस समय, केवल चुनिंदा देशों के पास ही वह तकनीक थी। अमेरिका, जापान, यूरोप और चीन इस ट्रांसफर के खिलाफ थे।
- 1993 में बोरिस येल्तसिन की नई सोवियत सरकार ने अमेरिका के दबाव में भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने से मना कर दिया। बोरिस येल्तसिन ने कहा कि उनकी सरकार टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के बजाय 7 क्रायोजेनिक इंजन भारत को बेचेगा।
- टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं होने के बाद भारत ने तय किया कि वो खुद इस टेक्नोलॉजी को डेवलप करेगा। 2003 में भारत ने क्रायोजेनिक इंजन का पहला सक्सेसेसफुल टेस्ट किया, लेकिन सक्सेसफुल फ्लाइट के लिए उसे करीब 11 साल लग गए।
- भारत के पास 2 क्रायोजेनिक इंजन है। CE-7.5 का इस्तेमाल GSLV मार्क-2 रॉकेट की अपर स्टेज में किया जाता है। वहीं CE-20 इंजन का इस्तेमाल LVM-3 रॉकेट में होता है। इन इंजनों में लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल होता है।
- क्रायोजेनिक इंजन के विपरीत, सेमी-क्रायोजेनिक इंजन लिक्विड हाइड्रोजन के बजाय रिफाइन्ड केरोसिन का उपयोग करता है। लिक्विड ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सीडाइजर के रूप में किया जाता है।
स्पेस इंडस्ट्री में 1961 में शुरू हुआ था क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई इंडस्ट्री में होता है। स्पेस इंडस्ट्री में 1961 में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ था। तब अमेरिका ने एटलस रॉकेट में तरल हाइड्रोजन और तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया था।
क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी ग्रीक शब्द “क्रायोस” से आई है, जिसका अर्थ है “ठंडा”। यहां अत्यधिक ठंडे तापमान पर पदार्थों को बनाया, स्टोर, ट्रांसपोर्ट और इस्तेमाल किया जाता है। अत्यधिक ठंड के कारण मटेरियल्स में केमिकल रिएक्शन होते हैं। उदाहरण के लिए, ठंडा होने पर पदार्थ गैस से तरल में बदल जाते हैं या सॉलिड फॉर्म धारण कर लेते हैं।