इस पूरे समाधि कार्यक्रम के लिए चार लाख रुपए खर्च किए।
ऐसी घटनाएं तो आए दिन सामने आती रहती हैं कि किसी संत-महंत को दफनाया जाता है या किसी व्यक्ति ने अपने पालतू जानवर को दफनाया हो। लेकिन, गुजरात में अमरेली जिले के पडरसिंगा गांव के एक किसान ने अपनी लकी कार को दफनाकर उसे अंतिम विदाई दी।
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नहीं बेचना चाहते थे इस लकी कार को दरअसल, गांव में रहने वाले संजय पोरला ने साल 2023-14 में यह सेकेंड हैंड कार खरीदी थी। कार खरीदने के बाद से ही संजय की माली हालत दिन-ब-दिन सुधरने लगी। गांव में खेती-किसानी के साथ उनके व्यापार में भी बढ़ोतरी होने लगी।
समाधि कार्यक्रम से पहले 1500 लोगों का रात्रिभोज भी हुआ।
इसके बाद से ही संजय और उनका पूरा परिवार इस कार को लकी मानने लगा था। इसी के चलते अब कबाड़ हो चुकी कार को संजय बेचना नहीं चाहते थे। इसीलिए धूमधाम से कार की विदाई का सोचा और संतों के सानिध्य में पूरे धूमधाम के साथ डीजे की ताल पर कार को समाधि दे दी।
मैं कार नहीं बेचना चाहता था: संजय पोलारा दैनिक भास्कर से हुई बातचीत में कार मालिक संजय पोलारा ने कहा कि मैं पिछले दस साल से यह कार चला रहा हूं। कार आने के बाद से ही मेरी आर्थिक तरक्की शुरू हुई। यह कार मेरे लिए लकी है। हालांकि, अब कार चलाने लायक ही नहीं बची थी। इसीलिए मैंने इसे बेचने के बारे में सोचा ही नहीं। इस पूरे समाधि कार्यक्रम के लिए मैंने चार लाख रुपए खर्च किए हैं।
कार को विधि- विधान से दफनाने के लिए पंडित को भी बुलाया गया।
मैंने इसके बारे में कभी नहीं सुना: हरेश कारकर इतना ही नहीं, इस मौके पर बुधवार की रात रात्रिभोज भी आयोजित किया गया था। संजयभाई पोलारा ने पूरे गांव के लोगों को आमंत्रित किया। मेहमानों और ग्रामीणों को मिलाकर करीब 1500 लोग भोज में शामिल हुए थे। समाधि कार्यक्रम में शामिल होने सूरत से आए हरेश कारक ने कहा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कभी न देखा और न ही सुना।
समाधि स्थल पर लगाया जाएगा पेड़ संजय पोलारा ने आगे बताया कि अपनी लकी कार की याद को हमेशा जीवित रखने के लिए आंगन में उस जगह एक पेड़ लगाने का भी फैसला किया है, जहां कार को दफनाया गया है।