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- Inspirational Story: The Lesson Of Yudhishthira, Yudhishthira And Dronacharya Story In Hindi, Inspirational Story About The Truth
10 घंटे पहले
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द्वापर युग में भीष्म पितामह ने गुरु द्रोणाचार्य को पांडवों और कौरवों गुरु बना दिया था। द्रोणाचार्य ने एक दिन अपने शिष्यों को एक महत्वपूर्ण पाठ दिया और उनसे कहा कि सभी शिष्य इस पाठ को आत्मसात करके आएंगे। ‘आत्मसात’ शब्द का अर्थ है पाठ को सही तरह से समझना और अपने जीवन में उतारना।
अगले दिन सभी राजकुमार गुरु के पास पहुंचे और पढ़ाई शुरू हुई। गुरु ने पूछा, “कौन-कौन कल का पाठ याद करके आया है?”
युधिष्ठिर के अलावा सभी राजकुमारों ने तुरंत उत्तर दिया कि वे पाठ याद करके आए हैं। जब गुरु ने युधिष्ठिर से पूछा, “तुमने पाठ क्यों नहीं याद किया?” तो युधिष्ठिर ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “गुरुदेव, मैंने इस पाठ को अभी तक आत्मसात नहीं किया है।”
ये उत्तर सुनकर गुरु द्रोणाचार्य बहुत चकित हुए। वे जानते थे कि युधिष्ठिर सबसे बुद्धिमान और समझदार शिष्य है, फिर भी उसने इस पाठ को याद नहीं किया। कुछ देर सोचने के बाद द्रोणाचार्य ने कहा, “ठीक है, तुम कल याद करके आना।”
समय बीतता गया और दस दिन बाद गुरु ने युधिष्ठिर से पूछा, “तुम अब तक इस पाठ को क्यों नहीं याद कर पाए?” युधिष्ठिर ने कहा, “गुरुदेव, मेरे भाइयों ने पाठ याद कर लिया है, मुझे भी वह याद है, लेकिन आपने जो कहा था, वह बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है। आपने कहा था कि ये पाठ आत्मसात करना है। आपने सत्य को जीवन में उतारने की बात कही थी, और मैं अभी तक सत्य को अपने जीवन में उतार नहीं पाया हूं। जब तक मैं इस सत्य को पूरी तरह से आत्मसात नहीं कर लूंगा, तब तक मैं आगे नहीं बढ़ सकता।”
युधिष्ठिर के ये शब्द सुनकर द्रोणाचार्य बहुत खुश हो गए। उन्होंने समझ लिया कि भविष्य में युधिष्ठिर धर्मराज बनेंगे, क्योंकि वह सच्चाई और धर्म को अपने जीवन में उतारने के लिए तत्पर थे। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि युधिष्ठिर न केवल बुद्धिमान थे, बल्कि उनके दिल में सत्य और धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा थी।
युधिष्ठिर की सीख
जीवन में केवल अच्छे विचारों, कथनों या शिक्षाओं को पढ़ने-सुनने से कुछ हासिल नहीं होता। किसी भी शिक्षा या विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए उसे आत्मसात करना जरूरी है यानी अपने जीवन में उतारना जरूरी है। युधिष्ठिर ने जो समझा, वह ये था कि ज्ञान केवल शब्दों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे अपनी सोच, व्यवहार और कर्मों में भी उतारना चाहिए। जब तक हम अच्छे विचारों को अपनी दिनचर्या में शामिल नहीं करते, तब तक वे केवल शब्द रह जाते हैं और हमें इनसे कोई लाभ नहीं मिलता है।
आज के समय में लोग जीवन की सच्चाइयों को जानते हैं, लेकिन उन्हें अपने जीवन में लागू करने में चूक जाते हैं। लोग किताबें पढ़ते हैं, धर्मगुरुओं के प्रवचन सुनते हैं और समझते भी हैं कि क्या सही है और क्या गलत, लेकिन जब तक हम इन बातों को अपनी सोच और कार्यों में नहीं उतारते, तब तक इनसे कोई लाभ नहीं मिल सकता। युधिष्ठिर की तरह हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म और अच्छाई को उतारने की कोशिश करनी चाहिए।