नई दिल्ली1 घंटे पहले
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भारत की रिटेल महंगाई जून में 2.50% से कम रहने की उम्मीद है। इससे पहले मई में 2.82% पर आ गई थी। ये 6 साल का निचला स्तर था। इससे पहले मार्च 2019 में ये 2.86% रही थी। वहीं अप्रैल में रिटेल महंगाई 3.16% पर थी।
खाने-पीने के सामान की कीमतों में लगातार नरमी के कारण रिटेल महंगाई और घट सकती है। आज यानी 14 जुलाई को रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए जाएंगे। रिटेल महंगाई फरवरी से RBI के लक्ष्य 4% से नीचे है।

RBI ने महंगाई का अनुमान घटाया इससे पहले 4 से 6 जून तक हुई RBI मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग में भी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई का अनुमान 4% से घटाकर 3.7% कर दिया था। RBI ने अप्रैल-जून तिमाही के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमान को 3.6% से घटाकर 2.9% कर दिया।

महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है? महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
CPI से तय होती है महंगाई एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।