नई दिल्ली13 मिनट पहले
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ट्रम्प प्रशासन की ओर से लगाए गए 50% टैरिफ के बाद सितंबर 2025 में रूस से तेल आयात वैल्यू (मूल्य) में 29% और वॉल्यूम (मात्रा) में 17% कम रहा। हालांकि भारत का ये कदम ट्रम्प के टैरिफ की वजह से नहीं, बल्कि पहले से चल रही प्लानिंग का हिस्सा है। गवर्नमेंट के ट्रेड डेटा से साफ है कि भारत अब डाइवर्सिफिकेशन की तरफ बढ़ रहा है।
अमेरिका ने 27 अगस्त को रूसी तेल आयात के लिए 25% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाया, जो कुल 50% टैरिफ का हिस्सा था। लेकिन भारत ने इससे पहले ही कदम उठा लिए थे। पिछले 10 महीनों में से 8 महीनों में रूसी तेल आयात की वैल्यू में भारत ने कटौती की है। फरवरी, मई, जून, जुलाई और सितंबर जैसे 5 महीनों में ये कटौती 20% से ज्यादा रही।
रूसी तेल पर निर्भरता बढ़ गई थी इसलिए कम किया
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एक सीनियर अधिकारी ने द हिंदू को बताया ‘भारत को लंबे समय से पता था कि रूसी तेल पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है। इसलिए हम पहले से ही इसे कम करने की प्लानिंग पर काम कर रहे थे। ट्रंप टैरिफ इस दौरान आए हैं। हां, इन्हें ध्यान में रखना पड़ेगा, लेकिन ये हमारी पॉलिसी को ड्राइव नहीं कर रहे।’
भारतीय आयात में रूस का शेयर 2020-21 में सिर्फ 1.6% था
ये कमी सिर्फ नंबर्स में नहीं, बल्कि रूस का भारत के टोटल ऑयल इम्पोर्ट में शेयर भी कम हुआ है। सितंबर 2024 में रूस का शेयर 41% था, जो सितंबर 2025 में घटकर 31% रह गया। ये कोई अचानक बदलाव नहीं, बल्कि लंबे प्रोसेस का हिस्सा है।
रूस का शेयर 2020-21 में सिर्फ 1.6% था। फिर आगे से साल में इसमें लगातार बढ़ोतरी होती रही। लेकिन 2025-26 के पहले 6 महीनों (अप्रैल-सितंबर) में ये ट्रेंड टूटा और शेयर 32.3% पर आ गया।

भारत रूसी क्रूड ऑयल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार
भले ही भारत ने रूस से क्रूड ऑयल की खरीद कम की है। इसके बावजूद यह रूसी तेल का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। अक्टूबर में रूस से 2.5 बिलियन डॉलर (करीब 22.17 हजार करोड़ रुपए) वैल्यू का कच्चा तेल देश में आया। यह जानकारी हेलसिंकी स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) ने अपनी रिपोर्ट में दी।
CREA के अनुसार, चीन 3.7 बिलियन डॉलर (करीब 32.82 हजार करोड़ रुपए) के इम्पोर्ट के साथ पहले नंबर पर रहा। कुल मिलाकर, रूस से भारत का फॉसिल फ्यूल आयात 3.1 बिलियन डॉलर (करीब ₹27.49 हजार करोड़) पहुंच गया है, जबकि चीन का कुल आंकड़ा 5.8 बिलियन डॉलर (करीब ₹51.44 हजार करोड़) रहा। अमेरिकी प्रतिबंध का असर दिसंबर के आंकड़ों में दिख सकता है, लेकिन भारत अभी भी खरीदारी जारी रखे हुए है।

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