झारखंड में JMM के 5, भाजपा के 3 किले अभेद्य
.
बांटने वाले भी तुम हो और काटने वाले भी। आरएसएस-बीजेपी आपको बांटना चाहती है, आपके बीच लड़ाई कराना चाहती है। -मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष
भाजपा के एक दर्जन मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री झारखंड में गिद्ध की तरह मंडरा रहे हैं। आप लोग गिद्ध की तरह मंडरा रहे भाजपा नेताओं को तीर चला कर गिरा दीजिए। -हेमंत सोरेन, CM, झारखंड
ऊपर के तीन बयान बताते हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव अब किस मोड़ पर आ चुका है। वोटिंग के दिन नजदीक आते ही नेताओं के जुबानी हमले तेज हो गए हैं। ऐसे में राज्य के कुछ विधानसभा की सीटें ऐसी है, जहां दशकों से एक पार्टी का राज है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का पांच सीटों पर चार दशक से कब्जा है तो भाजपा का तीन सीटों पर। आइए उन सीटों के समीकरण को जानें…
बरहेट में चुनाव जीतने के लिए तीर-धनुष ही काफी बरहेट। अनुसूचित जनजाति यानी ST के लिए रिजर्व सीट। यहां पर आदिवासी वोटर अधिक है। यहां से दो बार से CM हेमंत सोरेन विधायक हैं। इस सीट पर 1990 के बाद से JMM चुनाव नहीं हारा है। बताया जाता है कि यहां प्रत्याशी देखकर नहीं, बल्कि चुनाव चिह्न तीर-धनुष पर जनता वोट देती है। आदिवासियों के परंपरागत हथियार तीर-धनुष को यहां के लोग देवता के रूप में पूजते हैं। तीर-धनुष JMM का चुनाव चिह्न है।
आदिवासी कहते हैं कि तीर-धनुष हमारा देवता है, हम इससे गद्दारी नहीं कर सकते। यही कारण है कि JMM से विधायक बने हेमलाल मुर्मू जब भाजपा के टिकट पर लड़े तो हार गए थे। इस बार JMM ने एक बार फिर हेमंत सोरेन को उतारा है। वहीं, भाजपा ने गमालियल हेंब्रम पर दांव खेला है। हेंब्रम पिछली बार यानी 2019 में आजसू के टिकट पर चुनाव लड़े थे। जमानत जब्त हो गई थी। वह टीचर की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए हैं। इस सीट पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी।
लिट्टीपाड़ा में उम्मीदवार बदल-बदलकर जीतता रहा है JMM
लिट्टीपाड़ा (एसटी) विधानसभा सीट है। इस सीट पर झामुमो ने प्रत्याशी बदलकर लगातार जीत दर्ज की है। इस बार फिर झामुमो ने अपना प्रत्याशी बदल दिया है। हेमलाल मुर्मू को मैदान में उतारा है। भाजपा ने बाबुधन मुर्मू को प्रत्याशी बनाया है।
लिट्टीपाड़ा पाकुड़ जिले में आता। JMM की सफलता का राज जातीय समीकरण है। यहां पर आदिवासी वोटरों की आबादी करीब 40% है। इसमें भी पहाड़िया जनजाति महत्वपूर्ण संख्या में हैं, जिनकी आबादी करीब 10% है। इसके अलावा मुस्लिम आबादी करीब 20% और हिंदू लगभग 15% है।
यहां पर आदिवासी और मुस्लिम वोटर्स ही निर्णायक भूमिका में होते हैं। इस सीट पर हमेशा से संथाल आदिवासी ही चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस बार भी संथालियों के बीच ही टक्कर है। इस सीट पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी।
शिकारीपाड़ा में लगातार जीतने वाले नलिन सोरेन बन गए हैं सांसद
शिकारीपाड़ा आदिवासी रिजर्व सीट है। इस सीट की खास बात है कि 1990 से एक ही उम्मीदवार नलिन सोरेन ने लगातार सात बार चुनाव जीता है।
हाल में हुए लोकसभा चुनावों में नलिन दुमका से सांसद बन चुके हैं। इस बार उनकी जगह उनके बेटे आलोक सोरेन को JMM ने मैदान में उतारा है। भाजपा ने परितोष सोरेन को टिकट दिया है।
झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी मतदाताओं की आबादी लगभग 55 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाताओं की आबादी करीब 8 प्रतिशत हैं।
जबकि, कोयरी 4, दलित 6, अन्य पिछड़ी जाति 7 और जातियों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है। यहां 20 नवंबर को वोटिंग होगी।
सरायकेला में लगातार 20 साल से JMM का दबदबा
झारखंड बनने के बाद 2005 से सरायकेला सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा रहा है। यहां से चंपाई सोरेन JMM के सिंबल पर लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। 2005 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, तब चंपाई ने BJP के लक्ष्मण टुडू को 882 वोटों से हराया था।
2010 में दोनों फिर एक-दूसरे के सामने थे। तब चंपाई 3,246 वोटों से जीते थे। 2014 और 2019 में चंपाई ने BJP कैंडिडेट गणेश महली को हराया।
सरायकेला सीट पर JMM को जिताते आ रहे चंपाई अब BJP में हैं। JMM ने BJP के बागी नेता गणेश महली को चंपाई के खिलाफ टिकट दिया है। सरायकेला में सबसे ज्यादा वोटर्स आदिवासी कम्युनिटी के हैं। अब तक इनकी बड़ी आबादी JMM का साथ देती आई है। अब चंपाई के पाला बदलने के बाद यहां पेंच फंस गया है।
आदिवासी वोटर्स का भरोसा अगर JMM पर कायम रहा, तो गणेश महली को पहली बार इस सीट पर जीत मिल सकती है। हालांकि, ग्राउंड पर माहौल को देखते हुए ऐसा होने की संभावना कम दिख रही है।
सरायकेला से JMM के अजेय रहने की 4 वजह
- कुल 3.6 लाख वोटर्स में से 34% आदिवासी वोटर्स हैं। यही JMM के कोर वोटर्स हैं।
- यहां के आदिवासी JMM के संस्थापक शिबू सोरेन को अपना गुरु मानते हैं।
- JMM सरकार रहते हुए यहां के आदिवासी गांवों में स्कूल, अस्पताल और हैंडपंप जैसी सुविधाएं दी गईं। इसका प्रभाव वोटर्स पर दिखता है।
- आदिवासी महिलाओं को मइयां योजना में JMM हर महीने 1 हजार रुपए देती है। चुनाव बाद इसे 2.5 हजार किया जाएगा। ये बात वोटर्स के दिमाग में है।
डुमरी में JMM को नहीं दे सका कोई मात
डुमरी विधानसभा सीट JMM का एक अभेद्य किला है। झारखंड गठन के बाद से यहां पर किसी और पार्टी ने जीत हासिल नहीं की है। JMM के कद्दावर नेता रहे जगरनाथ महतो लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। उनके निधन के बाद पार्टी ने उनकी पत्नी को टिकट दिया। डुमरी विधानसभा क्षेत्र बोकारो के चंद्रपुरा, नावाडीह और गिरिडीह के डुमरी प्रख़ंड को मिलाकर बनाई गई है। इस सीट के लिए इस बार आजसू ने फिर महिला प्रत्याशी यशोदा देवी तो उम्मीदवार बनाया हैं।
जयराम महतो से सबको खतरा
आज जयराम महतो उसी शैली और भाषा मे अपनी राजनीति कर रहे हैं, जैसा पहले इस क्षेत्र में टाइगर की पहचान रखने वाले जगरनाथ महतो किया करते थे। इस बार के लोकसभा चुनाव में गिरिडीह से झारखंडी भाषा संघर्ष समिति (जेबीकेएसएस) के जयराम महतो ने 3 लाख 47 हजार 322 वोट लाकर क्षेत्र में अपनी ताकत दिखा चुके हैं। वे डुमरी विधानसभा से चुनाव लड़ रहे हैं। इनसे सबको खतरा है। बताया जा रहा है कि जयराम भी उसी स्टाइल में राजनीति करते हैं जिस तरह जयराम महतो करते थे। डुमरी में 20 नवंबर को वोटिंग होगी।
34 वर्ष से रांची में भाजपा काबिज, घट रही मार्जिन
क्षेत्रफल के हिसाब से रांची विधानसभा सीट झारखंड का सबसे छोटा विस क्षेत्र है। राजधानी का यह एक विशेष हिस्सा है, जहां केवल शहरी वोटर हैं। 2019 में भाजपा ने यहां जीत दर्ज की थी। पिछले 34 साल से रांची पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन, अब तक जीत का अंदर घट रहा है।
2019 के चुनाव में भाजपा को यहां 79,522 वोट मिले थे। झामुमो की डॉ. महुआ माजी ने 73,569 वोट हासिल किया था। इस बार भी दोनों आमने-सामने हैं। भाजपा के लिए यहां चिंता की बात यही है कि पहले तो उसकी जीत का अंतर बड़ा होता था, पर अब यह सिकुड़ते जा रहा है। 2014 में इस सीट पर भाजपा व झामुमो के बीच वोट का अंतर 58,863 था, जबकि 2019 में यह अंतर 5,904 वोटों का रह गया था
1990 में भाजपा के गुलशन लाल आजमानी ने यहां जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1995 में भाजपा के टिकट पर यशवंत सिन्हा विधायक चुने गए। यशवंत ने बीच में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में सीपी सिंह पहली बार भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए। इसके बाद से उनका कब्जा बरकरार है।
कांके : भाजपा ने समरीलाल की जगह फिर जीतू चरण राम को दिया मौका
कांके विधानसभा का क्षेत्रफल बड़ा है। इसका इलाका खलारी तक फैला है। यह विधानसभा सीट रांची जिले में आता है। झारखंड गठन होने के बाद यहां भाजपा चुनाव नहीं हारी है। उसका कांग्रेस से सीधा मुकाबला होता रहा है।
भाजपा ने इस बार सीटिंग विधायक समरी लाल के स्थान पर जीतू चरण राम को मैदान में उतारा है। 2019 में समरी लाल ने कांग्रेस के सुरेश बैठा को 22,540 वोटों से हराया था। इस बार सुरेश और जीतू चरण आमने-सामने हैं। कांके सीट का आधा भाग शहरी और आधा ग्रामीण है।
खूंटी में खूंटा गाड़कर खड़े हैं नीलकंठ मुंडा
झारखंड गठन के बाद से ही भाजपा के नीलकंठ सिंह खूंटी से विधायक हैं। भाजपा ने लगातार छठी बार उनपर भरोसा जताया है। 2019 के चुनाव में उन्होंने झामुमो के सुशील पाहन को 26,327 मतों से हराया था। इस बार झामुमो ने राम सूर्य मुंडा को मौका दिया है।
नीलकंठ मंत्री और विधायक रहते क्षेत्र में हुए विकास कार्य की याद दिला रहे हैं। पर, उनके लिए परेशानी की बात है कि जहां अब तक विकास की किरण नहीं पहुंची हैं, वहां एंटी इनकंबेंसी की बातें भी हो रही है।
नीलकंठ के बड़े भाई कालीचरण मुंडा खूंटी से सांसद हैं। ऐसे में इंडिया के कार्यकर्ता लोगों को समझाने में जुटे हैं कि एक ही परिवार से सांसद -विधायक क्षेत्र के लिए ठीक नहीं है।
नीलकंठ के सामने झामुमो ने राम सूर्य मुंडा को उतारा है। यह पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। झामुमो ने नामांकन का समय खत्म होने के दो दिन पहले प्रत्याशी स्नेहलता कंडुलना को बदलकर राम सूर्य को उतारा है। इस कारण उन्हें और झामुमो को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। स्नेहलता कंडुलना की शादी गैर आदिवासी साहू परिवार में हुई है। इस कारण झामुमो ने टिकट वापस ले लिया।
खूंटी में सबसे प्रभावशाली मुंडा समुदाय है। हालांकि ईसाई मतदाता भी बड़ी संख्या में है। दलित और ओबीसी की संख्या तुलनात्मक रूप से क्षेत्र में कम है।