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नवजातों के पहले दो वर्षों के दौरान उनकी सेहत व पोषण पर विशेष रूप से निगरानी करने की जरूरत होती है। ताकि बच्चों में कुपोषण, स्वास्थ्य संबंधी अन्य जटिलताएं व खास कर बच्चों में होने वाले सामान्य रोगों का समय पर पता लगाया जा सके। ताकि समुचित इलाज सुनिश्चित कराते हुए बाल मृत्यु से संबंधी मामलों को नियंत्रित किया जा सके। रोगों के अलावे अन्य देखभाल के उद्देश्य से स्वास्थ्य विभाग द्वारा होम बेस्ड केयर फॉर यंग चाइल्ड यानी एचबीवाईसी कार्यक्रम संचालित है। जिले में इसका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से एक दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन जिला स्वास्थ्य समिति सभागार में किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप ने किया। प्रशिक्षण में डीआईओ डॉ मोईज, सभी एमओआईसी, बीसीएम, बीएमएनई, पिरामल फाउंडेशन के डीएल संजय झा, डीपीएल प्रफुल्ल झा, यूनिसेफ के एसएमसी आदित्य कुमार, यूएनडीपी के शकील आजम सहित अन्य स्वास्थ्य अधिकारी व कर्मी मौजूद थे।
सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप ने बताया कि होम बेस्ड केयर फॉर यंग चाइल्ड यानी एचबीवाईसी कार्यक्रम स्वास्थ्य कर्मियों व समुदाय के सहयोग से पहले दो वर्षों के दौरान छोटे बच्चों की सेहत व पोषण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के मृत्यु दर को कम करना, कुपोषण रोकना व बच्चों में होने वाली बीमारियों को जल्दी पहचानकर इसका उपचार सुनिश्चित करना है। कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के समय पर कर्मियों को जरूरी प्रशिक्षण देना। इसकी नियमित निगरानी व अनुश्रवण सुनिश्चित कराने का निर्देश उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों को दिया। उन्होंने आशा कार्यकर्ता, एएनएम व आंगनबाड़ी सेविकाओं की मदद से बच्चे की शारीरिक वृद्धि की समुचित निगरानी करते हुए उनके माता-पिता को बच्चों के समुचित स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता सहित अन्य मामलों के प्रति जागरूक करने का निर्देश दिया गया।
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य कुपोषण की पहचान करना डीआईओ डॉ मोइज ने कहा कि कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिये स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा गृह भ्रमण के दौरान बच्चों के विकास, पोषण सहित स्वास्थ्य संबंधी मामलों की समुचित निगरानी जरूरी है। कार्यक्रम के तहत बच्चों के जन्म के पहले वर्ष में छह बार व दूसरे वर्ष में तीन बार गृह भ्रमण करने का प्रावधान है। इस दौरान आशा द्वारा बच्चों की लंबाई, वजन, टीकाकरण की स्थिति का अवलोकन जरूरी है। इसके साथ बच्चों में कुपोषण की पहचान, दस्त, निमोनिया, खसरा जैसे बचपन की सामान्य बीमारियों को चिन्हित कर उनका समुचित उपचार सुनिश्चित कराने की कारगर पहल को उन्होंने महत्वपूर्ण बताया। ताकि बाल मृत्यु संबंधी मामलों को नियंत्रित किया जा सके।