IITian & Ex-Zomato VP Mridul Anand Shares Insights on Career Pause vs. Break | Haryana Gurugram news | जोमैटो के पूर्व VP ने साझा किया करियर ‘पॉज’ एक्सपीरियंस: आईआईटीयन मृदुल आनंद ने कहा- बर्नआउट से उभरने के लिए ब्रेक नहीं, विराम लें – gurugram News

जोमैटो के पूर्व वाइस प्रेजीडेंट मृदुल आनंद ने सोशल मीडिया पोस्ट कर अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है। – फाइल फोटो

हरियाणा के गुरुग्राम में रहने वाले और IIT दिल्ली से पढ़े जोमैटो के पूर्व वाइस प्रेजीडेंट मृदुल आनंद ने कॉर्पोरेट करियर और निजी जीवन में ‘ब्रेक’ और ‘पॉज’ के बीच के अंतर को साझा किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने 8 साल पहले बर्नआउट से उबरने के लिए एक

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लिंक्डइन पर एक पोस्ट पर मृदुल ने लिखा- मैं सालों से बर्नआउट का सामना कर रहा था, यह मानते हुए कि मेहनत हमेशा तरक्की लाती है, लेकिन काम से भरे हुए दिन, दिमाग में बोझ और रिश्तों में तनाव ने मुझे ‘ब्रेक’ लेने के लिए मजबूर किया। उस समय ‘ब्रेक’ को संदेह की नजर से देखा जाता था, इसलिए मैंने इसे ‘पॉज’ यानी विराम का नाम दिया।

इस ब्रेक में उन्होंने ट्रैवल किया, किताबें पढ़ीं, स्वास्थ्य सुधारा, पॉडकास्ट देखे और स्वास्थ्य का ध्यान रखा, लेकिन उनकी सोच वही रही कि मेहनत से ही प्रगति होगी। इस चिंता के बीच कि ब्रेक के बाद उनके पास दिखाने के लिए कुछ ठोस नहीं था।

उन्होंने लिखा-

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ब्रेक का एक साल बीत गया और वापसी के बाद छह महीने में ही बर्नआउट फिर लौट आया। मैंने महसूस किया कि ‘ब्रेक’ ने मुझे तरोताजा तो किया, लेकिन मेरी सोच का सिस्टम वही रहा।

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मृदुल आनंद की सोशल मीडिया पोस्ट…

कई ‘ब्रेक’ के बाद अंतर समझ आया उन्होंने कहा कि ब्रेक आपको अनुभव से दूरी देता है, जबकि पॉज आपको उसमें नया दृष्टिकोण देता है। ब्रेक रिचार्ज करता है, लेकिन पॉज आपको सोच बदलने में मदद करता है। असली पॉज तब शुरू होता है, जब आप पुरानी सोच को छोड़ते हैं, पैटर्न से बाहर निकलते हैं और शांति में अपनी बेचैनी को समझते हैं।

मृदुल ने ध्यान अभ्यास के जरिए यह सीखा, जिसने उनकी सोच को बदला। इस अनुभव ने उन्हें प्रेरित किया कि वह रिट्रीट्स आयोजित करें, जो ‘ब्रेक’ नहीं, बल्कि ‘पॉज’ का मौका दें।

कॉर्पोरेट्स वर्क प्रेशर और अकेलेपन से बढ़ रहा स्ट्रेस साइक्लॉजिस्ट डॉ. अर्चना कृष्णा का कहना है कि गुरुग्राम में कॉर्पोरेट कर्मी स्ट्रेस के चलते मेंटल हेल्थ की समस्या झेल रहे हैं। कहने को आठ-नौ घंटे की शिफ्ट होती हैं, लेकिन लोग 12 से 16 घंटे तक की शिफ्ट्स करते हैं। परफॉर्मेंस का दबाव, अकेलापन और सामाजिक अपेक्षाएं प्रोफेशनल्स को तोड़ देती हैं, जिससे सुसाइड थॉट्स बढ़ते हैं। यही वजह है कि जॉब से ब्रेक लेने के बाद भी वे उबर नहीं पाते। क्योंकि ब्रेक के दौरान वे अपनी प्रोफेशनल लाइफ से जुड़े रहते हैं। ऐसे में पॉज या यूं कहें कि विराम लेना जरूरी है।

हर तीसरे दिन एक सुसाइड हरियाणा की इकोनॉमी कैपिटल कहे जाने वाले गुरुग्राम में सुसाइड के मामलों में कमी नहीं आ रही है। यहां महीने में औसतन 10 से 12 लोग सुसाइड करते हैं। इनमें से 4 से 5 लोग कॉर्पोरेट से जुड़े एम्पलाई होते हैं। इनमें छोटे कर्मचारी से लेकर मैनेजर, इंजीनियर तक शामिल हैं। हालांकि, पुलिस मानती है कि इसमें व्यक्तिगत, लव एंगल और घरेलू कारण ज्यादा होते हैं, लेकिन कॉर्पोरेट का वर्क प्रेशर कहीं न कहीं हावी होता है।

IT इंजीनियर और आईआईटीयन कर चुके सुसाइड

  • 30 सितंबर को प्रयागराज के रहने वाले इंजीनियर अजय कुमार अग्रहरि ने पहले अपनी पत्नी स्वीटी शर्मा की हत्या की, फिर खुद भी फांसी से लटक गया। वह काफी समय से डिप्रेशन में था। एमएनसी में 20 लाख रुपए का पैकेज था।
  • 7-8 अक्टूबर की रात राजस्थान के अलवर के रहने वाले शुभम मीणा ने फांसी लगाकर सुसाइड कर लिया। शुभम आईआईटीयन था और इंफोसिस में 20 लाख के पैकेज पर काम कर रहा था। 5 महीने पहले ही लव मैरिज की थी।
  • 5 अगस्त को जटौली गांव के रहने वाले आईआईटीयन सॉफ्टवेयर इंजीनियर मोहित चौहान ने सुसाइड किया। वह एलन डिजिटल में 35 लाख के पैकेज पर गुरुग्राम में नौकरी कर रहा था। 26 जून को ही सगाई हुई थी और दो नवंबर को उसकी शादी होनी तय हुई थी। उसकी मंगेतर इंटेलिजेंस ब्यूरो में है।

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