If he had contested the elections, he would have been in the race for CM… | चुनाव लड़ता तो CM की रेस में रहता…: अर्जुन मुंडा बोले- मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, पत्नी को टिकट दिलाने में मेरी भूमिका नहीं – Ranchi News

दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में अर्जुन मुंडा ने कहा – चुनाव लड़ता तो CM की रेस में रहता

परिवारवाद। दलबदल और सीएम फेस। तीन ये ऐसे सवाल हैं जो आजकल भाजपा नेताओं से लगातार पूछ जा रहे हैं। अब तक अलग-अलग नेता इसका जवाब देते रहे हैं। दैनिक भास्कर के इन सवालों का पूर्व CM अर्जुन मुंडा ने बेबाकी से जवाब दिया।

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अपने बदले पत्नी को चुनाव लड़ाने के सवाल पर कहा कि मैं चुनाव लड़ता तो मैसेज जाता कि मैं सीएम की रेस में हूं। इसलिए हमने मना कर लिया। मेरी पत्नी को टिकट मिलना परिवारवाद नहीं है। वह किसी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ रही हैं। वह पोटका की जनता का प्रतिनिधितत्व करने के लिए मैदान में हैं। राजा का बेटा ही राजा बनेगा यह केवल कांग्रेस में है।

सवाल: परिवारवाद को लेकर भाजपा पर सवाल उठ रहे हैं। आपने भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपनी पत्नी को पोटका से टिकट दिलवाया है? जवाबः मेरी पत्नी को टिकट मिलना परिवारवाद नहीं है। मीरा मुंडा को पार्टी ने टिकट दिया है। चुनाव लड़ने का उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। भाजपा में कांग्रेस की तरह वंशवाद नहीं है। राजा का बेटा ही राजा बनेगा, ऐसा केवल कांग्रेस में है। वंशवाद की राजनीति बड़े नेताओं के यहां बच्चे के जन्म लेते ही पद और सत्ता में बने रहने को लेकर होती है, जबकि राजनीति जनसेवा के लिए होनी चाहिए। भाजपा में एक सामान्य कार्यकर्ता भी सीएम बन सकता है। मीरा किसी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ रही हैं, वह पोटका का प्रतिनिधितत्व करने के लिए चुनाव लड़ रही हैं।

सवालः आपने अपनी परंपरागत सीट के बदले पोटका से पत्नी को चुनाव मैदान में क्यों उतारा? जवाबः मैं लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, अगर विधानसभा चुनाव लड़ता तो सभी को लगता कि मैं मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनाव लड़ रहा हूं। मैंने पहले ही पार्टी को यह बता दिया था कि मेरे बदले किसी अन्य को मौका मिले। इसके बाद पार्टी ने मेरी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से चुनाव लड़ने को कहा। टिकट दिलाने में मेरी कोई भूमिका नहीं है। पार्टी ने मीरा को टिकट दिया। जहां तक खरसावां की बात है, वहां की जनता के साथ मेरा लगाव बना हुआ है।

सवालः क्या आप अब वह चेहरा नहीं रहे, जो वोट दिला सके, आखिर चंपाई की जरूरत क्यों पड़ी? जवाबः इच्छाएं तो अनंत हैं, पार्टी ने मुझे काफी तरजीह दी है। मैं पार्टी का जनरल सेक्रेटरी रहा, विधायक बना, विपक्षी दल का नेता रहा, सीएम बना। लोकसभा सांसद रहा, पार्टी ने केंद्रीय मंत्री बनाया। छोटे कार्यकर्ता को बड़ा पद दिया, यह बड़ी बात है। जहां तक चंपाई सोरेन की बात है। हमलोगों ने साथ-साथ काम किया है। वे आंदोलनकारी नेता रहे हैं। मंत्री रहे, सीएम बने। पर, चंपाई ने सीएम पद से हटने के बाद जो बयान दिया था कि जिस तरीके से उन्हें हटाया गया, उससे और भी अच्छे रास्ते हो सकते थे। उनके सम्मान का ध्यान नहीं रखा गया। वे हेमंत के पिता के साथ काम किए हुए हैं। वे अपनी बात भी नहीं कह सके, चंपाई की बात सुनने वाला कोई नहीं था। यह विषय केवल एक पद का नहीं रहा, बल्कि यह बताता है कि झामुमो की लीडरशिप बुनियादी शर्तों से हट गई है।

सवालः हेमंत सरकार के कार्यकाल में झारखंड का कितना विकास हुआ? जवाबः हेमंत सरकार जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर सत्ता में आई थी, लेकिन सरकार बनते ही फोकस बुनियादी मुद्दों से हट गया। पूरे 5 साल पॉलिसी क्राइसिस रही। सरकार वित्त, कृषि, उद्योग, रोजगार और विकास की नीति नहीं बना पाई। हेमंत सरकार का फोकस कोषागार का खेल करने और व्यवस्था को भ्रष्ट बनाने में लगा रहा। जनता हेमंत सरकार के भ्रष्टाचार को समझ गई है। इस चुनाव में भाजपा सत्ता में लौट रही है।

सवालः भाजपा में चंपाई सोरेन की स्वीकार्यता कम है, आपसी तालमेल भी कम दिख रहा है? जवाबः ऐसा नहीं है। भाजपा बड़ा परिवार है, कई बार ऐसा दिखता है। नीतियों की स्पष्टता से ये सारी चीजें मायने नहीं रखती है। ऐसी बात नहीं है। राजनीतिक कार्यक्षेत्र में सभी अपने-अपने तरीके से देखते-समझते हैं। पर, जहां पार्टी की विचारधारा काम करती है, वहां ऐसा विषय महत्व नहीं रखता।

सवालः भाजपा का झामुमोकरण हो रहा है क्या? जवाबः झामुमो के जो नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, वे अब झारखंड से आगे देशव्यापी स्तर पर देख रहे हैं। देश में केवल झारखंड में ही आदिवासी नहीं हैं, सीमाई क्षेत्रों में ज्यादा आदिवासी हैं। आदिवासियों के लिए देशव्यापी नीति बनती है, इसलिए भी लोग अब भाजपा में आ रहे हैं।

सवालः आपके कई करीबी को 5 साल पहले भाजपा से निकाला गया था, अब भी वे पार्टी से बाहर हैं? जवाबः भाजपा वैचारिक पार्टी है। पार्टी हमेशा नीतियों और विचारों के आधार पर निर्णय लेती है। कभी यह निर्णय किसी के अनुकूल तो कभी किसी के प्रतिकूल हो सकता है। इस पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं।

सवालः केंद्रीय मंत्री रहते पूर्वी सिंहभूम में आपकी सक्रियता कम रही, किस आधार पर वोट मांगेंगे? जवाबः जब मैं जनजातीय मंत्रालय का मंत्री था, तो आदिवासी बहुल इलाके में स्वास्थ्य व शिक्षा पर काम किया। प्रखंड स्तर पर एकलव्य आवासीय विद्यालय खुलवाया। आदिवासी के स्वास्थ्य को लेकर डाटा बनवाया। राज्य सरकार को वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को वन पट्टा देने के लिए 10 बार पत्र लिखा। हेमंत सरकार ने आदिवासी हितों के लिए भेजी गई राशि खर्च नहीं की।

सवालः लक्ष्मण टुड्डू, बारी मुर्मू व गणेश महली का झामुमो में जाने से क्या असर पड़ेगा? जवाबः मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। सभी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।

सवालः भाजपा में सीएम फेस कौन है? जवाबः यह पार्टी का अंदरुनी निर्णय है। रिजल्ट आने पर विधायक दल का नेता चुना जाएगा, जो सीएम पद की शपथ लेगा। नेता चयन में हमारे दिल की बात नहीं चलती, दल की बात चलती है। दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही होता रहा है।

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