चेन्नई49 मिनट पहले
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लगभग 80 करोड़ रुपए की लागत से बनेगी ट्रेन।
भारतीय रेलवे ने देश के पहले हाइड्रोजन पावर्ड कोच की सफल टेस्टिंग की है। यह टेस्टिंग इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) चेन्नई में हुई। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज यानी, 25 जुलाई को इस उपलब्धि की जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर शेयर की।
उन्होंने कहा- ‘भारत 1,200 हॉर्सपावर की हाइड्रोजन ट्रेन विकसित कर रहा है, जो इसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ट्रेनों में से एक बनाएगी।’ यह ट्रेन 1,200 हॉर्सपावर की क्षमता के साथ डिजाइन की गई है, जो इसे जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन और चीन जैसे देशों की मौजूदा हाइड्रोजन ट्रेनों से कहीं अधिक शक्तिशाली बनाती है, जिनकी क्षमता 500-600 हॉर्सपावर के बीच है।

डीजल ट्रेनों की तुलना में 60% कम शोर
- यह ट्रेन पारंपरिक डीजल या कोयला-चालित ट्रेनों की तुलना में 60% कम शोर उत्पन्न करती है, जिससे यात्रियों को शांत और आरामदायक यात्रा का अनुभव मिलेगा।
- ट्रेन हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक पर आधारित है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया से बिजली बनाती है। इसमें पानी और भाप बाय-प्रोडक्ट के रूप में निकलता है।
- यह ट्रेन भारतीय रेलवे की ‘हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज’ परियोजना का हिस्सा है, जिसके तहत 2030 तक भारतीय रेलवे को नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचाने की योजना है।
- इसके लिए वित्त वर्ष 2023-24 में 2,800 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया था। इसमें 35 हाइड्रोजन फ्यूल सेल-आधारित ट्रेनों को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है।
- प्रत्येक ट्रेन की अनुमानित लागत 80 करोड़ रुपए है और इसके लिए प्रति रूट 70 करोड़ रुपए की अतिरिक्त ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर लागत होगी।
- यह ट्रेन विशेष रूप से हेरिटेज और पहाड़ी मार्गों, जैसे कालका-शिमला, दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे और कांगड़ा घाटी रेलवे, के लिए डिजाइन की गई है।
इलेक्ट्रिक इंजन की तुलना में ज्यादा महंगी
हाइड्रोजन ट्रेनें मौजूदा रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ही काम करेंगी और डीजल इंजन की तुलना में ज्यादा एनर्जी एफिशिएंट होंगी। यह इंजन काफी ज्यादा एनर्जी लॉस करता है। इसी कारण इलेक्ट्रिक ट्रेनों की तुलना में हाइड्रोजन ट्रेनें कम एफिशिएंट होती हैं। इलेक्ट्रिक ट्रेन जहां 70-95% तक एनर्जी एफिशिएंट हैं, वहीं हाइड्रोजन इंजन 30-60% तक एफिशिएंट हैं।
हाइड्रोजन ट्रेनों को उन रूट्स पर चलाना किफायती हो सकता है जहां अभी ट्रैकों को इलेक्ट्रीफाइड नहीं किया गया है। क्योंकि यहां इलेक्ट्रिफिकेशन का खर्च काफी होगा।