How can we trust the confidence of Uddhav Thackeray? | भास्कर ओपिनियन: उद्धव ठाकरे के विश्वास पर विश्वास कैसे किया जाए?

10 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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शिवसेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे अब कह रहे हैं कि भाजपा ने हमें भुलावे में रखा और धोखा दिया। इसका क्या मतलब? मतलब साफ़ है। उद्धव को हर हाल में मुख्यमंत्री बनना था। उद्धव का कहना है कि भाजपा ने मुझसे वादा किया था।

उद्धवजी ये नहीं समझ पा रहे हैं कि राजनीति में नंबर गेम चलता है। जब सीटें भाजपा की ज़्यादा थीं तो वह आपको मुख्यमंत्री क्यों बनाती भला? ख़ैर आपको बनना था, सो बन गए थे। राकांपा और कांग्रेस की मदद से ही सही। आख़िर सरकार चल नहीं पाई।

आप भली भाँति जानते हैं कि गठबंधन सरकारों में सबके अपने अहम् होते हैं। कहीं न कहीं ये अहम् आड़े आते ही हैं। टकराते ही हैं। यह सब जानते हुए उद्धव ठाकरे कहते हैं कि इंडिया गठबंधन की सरकार बनी तो नेता को लेकर कोई विवाद नहीं होगा। सरकार भी ठीक से चलेगी। पिछली जनता सरकार भी इसी तरह बनी थी।

हश्र आपने देखा ही होगा। सबने देखा। जबकि वो सरकार तो चुनाव पूर्व गठबंधन की सरकार थी। फिर भी नहीं चली। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वामपंथियों और भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। ये पहला मौक़ा था जब वामपंथी और दक्षिणपंथी यानी भाजपा दोनों किसी एक बात पर सहमत हुए थे, लेकिन फिर भी सरकार चल नहीं पाई थी।

चंद्रशेखर सरकार का भी यही हश्र हुआ था। कांग्रेस के समर्थन से बनी और एक छोटी सी बात को मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। सरकार गिर गई थी। फिर पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ज़रूर पूरे पाँच साल चली, लेकिन उसके बाद एचडी देवगौडा की सरकार भी समर्थन वापसी के कारण गिर गई थी। उसके बाद इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनी, लेकिन वह भी नहीं चल पाई।

इतने उदाहरण सामने होने के बावजूद उद्धव ठाकरे को इंडिया गठबंधन पर ऐसा क्या भरोसा है कि वे न तो नेता चयन के मामले में कोई अड़चन देख पा रहे हैं और न ही गठबंधन सरकार के रास्ते में फिलहाल कोई रुकावट उन्हें दिखाई दे रही है?

जबकि बंगाल वालीं ममता बनर्जी और बिहार वाले नीतीश कुमार के इंडिया गठबंधन से अलग होते ही इसमें बड़ा बिखराव आ गया था। नीतीश के अपने कारण रहे होंगे और ममता बनर्जी के अपने। लेकिन कोई तो मनमुटाव रहा ही होगा। कोई बिना कारण तो किसी गठबंधन से अलग नहीं ही होता!

बहरहाल दावों- प्रति दावों का दौर चल रहा है। भाजपा चार सौ पार के अपने नारे के साथ चल रही है जबकि इंडिया गठबंधन कह रहा है कि भाजपा दो सौ पार भी नहीं हो पाएगी। असल बात चार जून को ही पता चलेगी, जब चुनाव परिणाम सामने आएँगे।

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