राजस्थान में 12 साल से सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे आयुर्वेद और नर्सिंग अभ्यर्थियों को हाईकोर्ट से बड़ी निराशा हाथ लगी है। राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने वर्ष 2013 की कंपाउंडर/नर्स जूनियर ग्रेड भर्ती में नियमित नियुक्ति की मांग वाली सभी याचिकाओं
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जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने गुरुवार 20 नवंबर को यह फैसला देते हुए साफ कर दिया है कि चयन सूची में नाम होना किसी भी अभ्यर्थी को नियुक्ति का कानूनी अधिकार नहीं देता है।

(फाइल फोटो)
313 को ही मिली नौकरी, शेष 692 को संविदा का रास्ता
राज्य सरकार ने 7 जून 2013 को विज्ञापन जारी किया था। जिसमें आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा विभाग में कंपाउंडर/नर्स जूनियर ग्रेड के कुल 1005 पदों के लिए आवेदन मांगे थे। भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद मेरिट लिस्ट और चयन सूची भी जारी कर दी गई।
लेकिन विवाद तब शुरू हुआ, जब सरकार ने केवल 313 अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति पत्र जारी किए। शेष 692 पदों पर चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी गई। तब रतन लाल पूर्बिया सहित सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से 21 याचिकाएं दायर की गई।
12 साल चला कानूनी लड़ाई का सफर
वर्ष 2013 से 2025 तक यह लड़ाई अभ्यर्थियों के लिए काफी लंबी और थकाऊ रही है। सबसे पहले अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट की एकल पीठ में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने 27 फरवरी 2018 को खारिज कर दिया था। इसके बाद अभ्यर्थियों ने फैसले पर पुनर्विचार के लिए रिव्यू पिटीशन दायर की, लेकिन 24 अक्टूबर 2019 को सिंगल बेंच ने उसे भी खारिज कर दिया। इसके बाद अभ्यर्थियों ने खंडपीठ (Division Bench) में विशेष अपील (Special Appeal) दायर की, जिस पर अब 20 नवंबर को अंतिम फैसला आया है।

तर्क: विज्ञापन जारी होने के बाद बीच में नहीं रोकना गलत
अपीलकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि एक बार विज्ञापन जारी होने और चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार नियुक्तियों को बीच में नहीं रोक सकती।
वकील ने “राजस्थान आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी और नेचुरोपैथी सेवा नियम का हवाला दिया। वकील ने तर्क दिया कि नियमों के अनुसार पदों के सृजन (Creation of posts) की शक्ति संबंधित विभाग के पास होती है। इसलिए, वित्त विभाग द्वारा मंजूरी न देने का बहाना बनाकर नियुक्ति रोकना नियमों के खिलाफ है। वकील ने कहा कि सरकार का यह कदम कानून से परे है।
सरकार ने बताया नीतिगत फैसला, अब संविदा पर होगी भर्ती
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) ने कोर्ट में बताया कि सरकार ने वित्त विभाग के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बाद एक ‘सचेत नीतिगत निर्णय’ (Conscious Policy Decision) लिया है।
सरकारी वकील ने बताया कि वित्त विभाग ने इन शेष पदों पर स्थायी नियुक्ति के लिए वित्तीय मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। इसी कारण सरकार ने निर्णय लिया है कि अब इन पदों को नियमित भर्ती के बजाय राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के माध्यम से संविदा आधार पर भरा जाएगा।
खंडपीठ ने कहा- एकलपीठ का फैसला सही था
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने माना कि सिंगल बेंच का फैसला सही था। कोर्ट ने अपने आदेश में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट किए:
- विज्ञापन की शर्तें: कोर्ट ने कहा कि 7 जून 2013 के विज्ञापन में ही यह शर्त स्पष्ट रूप से लिखी थी कि “पदों की संख्या को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।” इसलिए सरकार द्वारा पदों को कम करना या न भरना गलत नहीं माना जा सकता।
- नियुक्ति का अधिकार: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “भले ही अपीलकर्ताओं के नाम चयन सूची में हैं, लेकिन इससे उन्हें नियुक्ति पाने का कोई अटूट अधिकार नहीं मिल जाता।” कोर्ट ने कहा कि केवल चयन सूची के आधार पर सरकार को नियुक्ति देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- नीतिगत फैसले में हस्तक्षेप नहीं: कोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकार का फैसला वित्तीय कारणों और नीतिगत विचार-विमर्श पर आधारित है, जो तर्कसंगत है। इसलिए, कोर्ट सरकार के नीतिगत फैसले में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझता।
इन आधारों पर हाईकोर्ट ने रतन लाल पूर्बिया और अन्य सभी जुड़ी हुई अपीलों को खारिज कर दिया।
