42 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र
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हेमा मालिनी भारतीय सिनेमा की सबसे सफल और प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से एक हैं, जिन्हें न केवल उनकी अदाकारी के लिए बल्कि उनके अनुशासन, संघर्ष और अथक मेहनत के लिए भी सम्मानित किया जाता है। दक्षिण भारत के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर उन्होंने बॉलीवुड की ‘ड्रीम गर्ल’ का खिताब हासिल किया और आगे चलकर राजनीति में कदम रखकर संसद तक अपनी पहचान बनाई।
हालांकि करियर की शुरुआत में एक डायरेक्टर ने उन्हें यह कहकर ठुकरा दिया था कि उनके चेहरे में ‘स्टार जैसी चमक’ नहीं है, लेकिन हेमा ने हार नहीं मानी। अपनी प्रतिभा और दृढ़ता के बल पर उन्होंने बॉलीवुड पर राज किया और शाहरुख खान जैसे सितारों को प्रेरित करते हुए उनके करियर की राह में अहम भूमिका निभाई।
आज, हेमा मालिनी के 77वें जन्मदिन पर, आइए जानते हैं उनकी जीवन यात्रा से जुड़ी कुछ खास बातें।

हेमा मालिनी का प्रेरणादायक बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
हेमा मालिनी का जन्म 16 अक्टूबर 1948 को तमिलनाडु के अम्मनकुडी में एक तमिल अय्यंगार ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता वी.एस. चक्रवर्ती स्वतंत्रता सेनानी रहे और बाद में सरकारी सेवा में कार्यरत हुए, जबकि उनकी मां जया लक्ष्मी एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम नृत्यांगना थीं। परिवार में सादगी और अनुशासन का वातावरण था, साथ ही कला और संस्कृति के प्रति गहरी समझ भी विद्यमान थी।
बचपन से ही हेमा मालिनी को नृत्य और अभिनय में गहरी रुचि थी। उन्होंने भरतनाट्यम का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसके साथ कथक एवं कुचिपुड़ी की बारीकियां भी सीखीं। उनकी मां स्वयं नर्तकी बनना चाहती थीं, लेकिन अवसर न मिलने के कारण उन्होंने हेमा को श्रेष्ठ नृत्यांगना बनाने में अपना पूरा प्रयास किया।
पढ़ाई में भी हेमा बचपन से होशियार थीं और विशेष रूप से इतिहास विषय में उनकी रुचि थी। 10वीं कक्षा की परीक्षा वे नहीं दे पाईं क्योंकि उस समय उन्हें लगातार अभिनय के प्रस्ताव मिल रहे थे। उनके परिवार ने हमेशा शिक्षा और कला के बीच संतुलन बनाए रखने की सीख दी। यही अनुशासन आगे चलकर उनके करियर की बड़ी ताकत बना।
करियर के शुरुआत में रिजेक्शन और स्ट्रगल
1960 के दशक में हेमा मालिनी ने सिनेमा में करियर बनाने की इच्छा जताई। उनकी मां भी चाहती थीं कि बेटी फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम कमाए। उन्होंने चेन्नई के विभिन्न फिल्म स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट दिए, लेकिन शुरुआती दौर में उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। इस बीच, वे तेलुगु फिल्म ‘पांडव वनवासम’ (1965) और तमिल फिल्म ‘इधु सथियम’ (1962) में छोटी भूमिकाएं निभा चुकी थीं।
1964 में तमिल फिल्म निर्देशक सी.वी. श्रीधर ने हेमा मालिनी को यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि “उनके चेहरे में स्टार जैसी चमक नहीं है।” यह बात हेमा को बहुत चुभी, लेकिन इसी तिरस्कार ने उन्हें और अधिक मेहनत करने की प्रेरणा दी।

हेमा मालिनी की डेब्यू फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ में राज कपूर के साथ उनका सुनहरा अंदाज।
बॉलीवुड में पहला कदम, बनी राज कपूर की नायिका
हेमा मालिनी को हिंदी सिनेमा में पहला ब्रेक निर्देशक महेश कौल की फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ (1968) से मिला था। इस फिल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया था। इस फिल्म के लिए हेमा मालिनी की मां की मुलाकात मशहूर निर्देशक सुब्रमण्यम से हुई थी, जिन्होंने उन्हें राज कपूर से मिलवाया।
राज कपूर ने खुद इस फिल्म के लिए हेमा मालिनी का स्क्रीन टेस्ट लिया था। टेस्ट के दौरान उन्होंने हेमा को गांव की लड़की का रूप देकर कैमरे के सामने साधारण अभिनय करने को कहा। हेमा का स्क्रीन टेस्ट देखकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। उनकी सादगी और अभिव्यक्ति ने राज कपूर को बेहद प्रभावित किया, और इसी कारण उन्हें यह पहला मौका मिला।
हालांकि ‘सपनों का सौदागर’ बॉक्स ऑफिस पर अधिक सफल नहीं हो पाई, लेकिन हेमा मालिनी के अभिनय, अभिव्यक्ति और अदाओं ने दर्शकों और फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींच लिया। यही फिल्म उनके लिए संभावनाओं के द्वार खोलने का पहला कदम साबित हुई।
राज कपूर संग रोमांटिक सीन करते वक्त हुई थीं असहज
हेमा मालिनी ने ‘लहरें रेट्रो’ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपनी डेब्यू फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ में राज कपूर के साथ रोमांटिक सीन करने में असहजता महसूस की थी। उन्होंने कहा कि उस समय वह बहुत युवा थीं, जबकि राज कपूर उनसे काफी बड़े और अनुभवी थे, इसी कारण रोमांटिक सीन करना उनके लिए कठिन था। हेमा ने यह भी साझा किया कि फिल्म के निर्देशक महेश कौल ने डांस की भाषा के जरिए सीन के भाव उन्हें समझाकर, उस कठिनाई से उबरने में मदद की थी।

हेमा मालिनी बॉलीवुड की सदाबहार ड्रीम गर्ल, जिन्होंने अपने सौंदर्य और अभिनय से दिल जीत लिया।
‘ड्रीम गर्ल’ बनने की राह पर आगे बढ़ीं/ बताया—‘ड्रीम गर्ल’ सम्मान और जिम्मेदारी दोनों रहा
70 के दशक में हेमा मालिनी ने फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ (1970) से बॉलीवुड में अपनी खास पहचान बनाई। इस फिल्म के बाद वे एक मजबूत, आकर्षक और प्रतिभाशाली अभिनेत्री के रूप में जानी जाने लगीं। इसके बाद उन्होंने कई सुपरहिट फिल्में कीं, जिनमें ‘सीता और गीता’, ‘शोले’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘क्रांति’ और ‘बागबान’ जैसी कई महत्वपूर्ण फिल्में शामिल हैं।
हेमा मालिनी की खासियत यह थी कि वे केवल ग्लैमरस किरदारों तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि भावनात्मक और गहराई वाले रोल्स में भी बेहतरीन नजर आती थीं। ‘सीता और गीता’ में उनका डबल रोल आज भी हिंदी सिनेमा की यादगार परफॉर्मेंस में गिना जाता है।
1977 में रिलीज हुई फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ के बाद उन्हें ‘ड्रीम गर्ल’ कहा जाने लगा, और यह नाम धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व का स्थायी हिस्सा बन गया।
फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में हेमा मालिनी ने ‘ड्रीम गर्ल’ टैग पर बात करते हुए कहा था कि वे हमेशा अपने काम और किरदारों को बहुत गंभीरता से लेती थीं। ‘ड्रीम गर्ल’ का नाम उनके लिए एक ऐसी पहचान बन गया जो लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। उन्होंने इस टैग को अपने करियर का एक गौरवपूर्ण हिस्सा माना और अपनी खूबसूरती तथा अभिनय क्षमता के लिए इसे एक सम्मान के रूप में स्वीकार किया। उसी इंटरव्यू में हेमा मालिनी ने यह भी बताया कि ‘ड्रीम गर्ल’ नाम से जुड़ी जिम्मेदारियां उन्हें हमेशा बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करती रहीं।

अनुशासन और मेहनत का मंत्र/ अनुशासन ही हेमा मालिनी का असली जादू
हेमा मालिनी आज भी अपने अनुशासन, समर्पण और पेशेवर रवैये के लिए मिसाल मानी जाती हैं। समय की पाबंद हेमा मालिनी हमेशा सेट पर तय समय से पहुंचती हैं और रिहर्सल में पूरी मेहनत करती हैं। नृत्य और अभिनय के प्रति उनका समर्पण उनके लंबे करियर की सबसे बड़ी पहचान बन चुका है। हेमा मालिनी अक्सर कहती हैं, ‘सपनों को सच करने के लिए केवल प्रतिभा पर्याप्त नहीं होती, अनुशासन और लगन भी उतनी ही आवश्यक हैं।’ यही वजह है कि वह पिछले 50 से अधिक वर्षों से फिल्म और कला की दुनिया में सक्रिय हैं।

हेमा और धर्मेंद्र—बॉलीवुड के सबसे खूबसूरत और सदाबहार कपल।
निजी जीवन और रिश्ते/ पहली नजर का प्यार, उम्रभर का सम्मान
हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की पहली मुलाकात निर्देशक के.ए. अब्बास की फिल्म के प्रीमियर के दौरान हुई थी। इस प्रीमियर के इंटरवल में धर्मेंद्र पहले से ही शशि कपूर के साथ मंच पर मौजूद थे। जब हेमा मालिनी स्टेज पर पहुंचीं, तो धर्मेंद्र ने शशि कपूर से पंजाबी में कहा, ‘कुड़ी बड़ी चंगी है।’
हेमा मालिनी ने अपनी आत्मकथा ‘हेमा मालिनी: बियॉन्ड द ड्रीम गर्ल’ में लिखा है कि धर्मेंद्र उनकी खूबसूरती से पहली ही नजर में प्रभावित हो गए थे।
उनकी प्रेम कहानी की शुरुआत तब हुई जब दोनों को साथ में फिल्म ‘तुम हसीन मैं जवां’ में काम करने का मौका मिला। उस समय धर्मेंद्र पहले से शादीशुदा थे, लेकिन हेमा मालिनी के प्रति उनका लगाव गहरा होता गया। अंततः वर्ष 1980 में दोनों ने विवाह किया। यह शादी उस दौर में काफी चर्चा में रही क्योंकि धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर थीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी से विवाह के लिए इस्लाम धर्म अपनाया था और उनसे निकाह किया। हेमा मालिनी ने अपने जीवन में हमेशा धर्मेंद्र की पहली पत्नी और उनके परिवार का सम्मान बनाए रखा।
अपनी आत्मकथा ‘हेमा मालिनी: द ड्रीम गर्ल’ में उन्होंने अपने रिश्ते की चुनौतियों और धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर के प्रति अपने दृष्टिकोण के बारे में खुलकर लिखा है। उन्होंने बताया कि वे कभी धर्मेंद्र के जुहू वाले बंगले में नहीं गईं और परिवार की एकता बनाए रखने के लिए परिस्थितियों को स्वीकार किया।
हेमा मालिनी का कहना है कि परिवार की स्थिति जैसी भी रही हो, उन्होंने उसे हमेशा सम्मानपूर्वक स्वीकार किया और सभी को खुश रखने की कोशिश की।

हेमा मालिनी बोलीं — नृत्य मेरे लिए साधना, योग और ईश्वर से जुड़ाव का माध्यम है
हेमा मालिनी ने अपने एक इंटरव्यू में नृत्य के प्रति अपने गहरे प्रेम और लगाव को साझा किया। उन्होंने कहा कि नृत्य उनके लिए केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि साधना, योग और ध्यान का माध्यम भी है। उनके अनुसार भरतनाट्यम के जरिए वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया के सामने प्रस्तुत करती हैं, और नृत्य करते समय स्वयं को जीवित और पूर्ण महसूस करती हैं। हेमा मालिनी का मानना है कि नृत्य ही उनकी शक्ति और आध्यात्मिक शांति का स्रोत है, जो उन्हें भगवान से जुड़ाव का अनुभव कराता है। उन्होंने यह भी बताया कि नृत्य उनकी आध्यात्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिससे उन्हें जीवन में संतुलन और सकारात्मकता मिलती है।
ब्रजभूमि की समर्पित सेविका: हेमा मालिनी का मथुरा से अटूट नाता और विकास की कहानी
हेमा मालिनी ने वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण की। इससे पहले, वर्ष 1999 में उन्होंने भाजपा के प्रचार अभियान से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी, जब उन्होंने पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र में पार्टी उम्मीदवार विनोद खन्ना के लिए चुनाव प्रचार किया था।
2003 से 2009 तक वे राज्यसभा की सदस्य रहीं। वर्ष 2010 में भाजपा ने उन्हें पार्टी का महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) नियुक्त किया।
वर्ष 2014 में हेमा मालिनी ने उत्तर प्रदेश के मथुरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के उम्मीदवार जयंत चौधरी को तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से पराजित कर लोकसभा सदस्या बनीं। अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने मथुरा क्षेत्र में विशेष रूप से पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया।
दो बार की सांसद रहने के दौरान हेमा मालिनी ने मथुरा में कई विकासात्मक योजनाओं को आगे बढ़ाया और लगातार सक्रिय रहीं। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोग से इस क्षेत्र के उत्थान हेतु अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर कार्य किया।
मथुरा, जो ब्रज क्षेत्र का हिस्सा है और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है, हमेशा उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहा है। इस कारण वे यहां के पर्यटन विकास को विशेष महत्व देती हैं। मुंबई और मथुरा के बीच वे नियमित रूप से यात्रा करती हैं, जिससे उनका इस क्षेत्र से भावनात्मक और प्रशासनिक जुड़ाव और भी गहरा हुआ है।
भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पुनः मथुरा से उम्मीदवार बनाया, जहां उन्होंने एक बार फिर विजय प्राप्त की। मथुरा के लोग स्वयं को उनका ‘ब्रजवासी परिवार’ मानते हैं, क्योंकि उन्होंने क्षेत्र के विकास में सक्रिय भूमिका निभाई है और भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त मानी जाती हैं।
फिल्मी दुनिया से आगे बढ़कर समाजसेवा की मिसाल बनीं
हेमा मालिनी न सिर्फ एक महान अभिनेत्री और सांसद हैं, बल्कि समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण, बाल शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे कई सामाजिक अभियानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वे अक्सर अपने जनसंपर्क और लोकप्रियता का उपयोग समाज के हित के लिए करती हैं। हेमा मालिनी का मानना है कि प्रसिद्धि केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसका उपयोग समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वच्छता की दिशा में कई पहलें की हैं और वृक्षारोपण अभियानों से भी जुड़ी रही हैं।

सीता-गीता’ से पद्मश्री तक, हिंदी सिनेमा की ‘ड्रीम गर्ल’ का सुनहरा सफर
वर्ष 2000 में भारत सरकार ने हेमा मालिनी को कला और सांस्कृतिक योगदान के लिए देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री प्रदान किया। यह सम्मान उनके लंबे और प्रभावशाली फिल्मी करियर तथा भारतीय संस्कृति में बहुमूल्य योगदान की मान्यता के रूप में दिया गया था।
हेमा मालिनी को राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, रजनीकांत लीजेंड अवॉर्ड, राजीव गांधी अवॉर्ड, एएनआर नेशनल अवॉर्ड, और आइकॉन ऑफ द ईयर शामिल हैं। इन पुरस्कारों ने उन्हें भारतीय सिनेमा की सबसे सफल और सम्मानित अभिनेत्रियों में एक मजबूत पहचान दिलाई।
फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए उन्हें कुल 11 बार नामांकित किया गया, जो उनकी अभिनय क्षमता और लोकप्रियता को दर्शाता है। वर्ष 1973 में उन्होंने अपनी फिल्म ‘सीता और गीता’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था। इस फिल्म में उन्होंने जुड़वां बहनों सीता और गीता का किरदार निभाया था। एक भूमिका जिसने उनके करियर को नई ऊंचाई दी और जिसे आज भी हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में गिना जाता है।

हेमा मालिनी ने निर्देशन में सिनेमा को नई संवेदना और गहराई दी, जो हर दृश्य में उनकी मेहनत और प्रतिभा दिखाती है।
शाहरुख खान को बनाया बॉलीवुड का बादशाह
शाहरुख खान मानते हैं कि उन्हें बॉलीवुड का बादशाह बनाने में हेमा मालिनी का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘दिल आशना है’ में काम करने का अवसर हेमा मालिनी से पाया था, जो इस फिल्म की निर्देशक भी थीं।
शाहरुख बताते हैं कि पहली मुलाकात में हेमा मालिनी ने उन्हें मेकअप के लिए बुलाया था। ऑडिशन के दौरान जब शाहरुख ने कहा कि उन्हें मेकअप के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि वे दिल्ली के लड़के हैं, तब हेमा मालिनी ने खुद उनके बालों में कंघी की। इस खास पल के बाद शाहरुख ने निर्णय लिया कि वे अब मुंबई छोड़कर नहीं जाएंगे और यहीं अपना करियर बनाएंगे।
यह किस्सा शाहरुख खान ने इंडिया टीवी के लोकप्रिय शो आपकी अदालत में दिए एक इंटरव्यू के दौरान साझा किया था।
हेमा मालिनी ने शाहरुख के टैलेंट को पहचाना और उन्हें दूसरा मौका दिया, जबकि पहली बार उनका ऑडिशन उम्मीद के अनुसार नहीं रहा था। उन्होंने शाहरुख को सादे कपड़े पहनकर आत्मविश्वास के साथ दोबारा ऑडिशन देने की सलाह दी। इसी बदलाव के बाद शाहरुख को यह भूमिका मिली।
हेमा मालिनी की वजह से ही शाहरुख को बॉलीवुड में पहला बड़ा ब्रेक मिला। इसके बाद उन्होंने लगातार सफल फिल्में दीं और ‘बादशाह’ का खिताब हासिल किया।
हेमा मालिनी ने कई बार स्वीकार किया है कि उन्होंने सिर्फ एक मौका दिया था, लेकिन असली सफलता और स्टारडम शाहरुख खान की मेहनत का परिणाम है। शाहरुख ने भी आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हेमा मालिनी के आशीर्वाद और समर्थन के बिना वे यह मुकाम कभी हासिल नहीं कर पाते।

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