हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 2019 के मुकाबले 2.24% कम वोटिंग दर्ज की गई। इलेक्शन कमीशन के वोटर टर्नआउट एप पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस बार रात 12 बजे तक प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों पर कुल 66.96% मतदान हुआ। 2019 में 69.20% लोगों ने वोट डाले थे।
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10 साल से सरकार चला रही भाजपा के प्रति लोगों- खासकर जाटों और दलितों की नाराजगी के बावजूद वोटिंग % नहीं बढ़ने के कई मायने हैं। वर्ष 2000 से 2024 तक, हरियाणा में हुए 5 विधानसभा चुनाव के पोलिंग % से जुड़े आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो एक ट्रेंड निकलता हुआ दिखता है। इन 24 बरसों में दो मर्तबा ऐसा हुआ जब वोटिंग में 1% से कम बढ़ोतरी या फिर गिरावट दर्ज की गई और दोनों ही बार राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी। उसका फायदा उस समय सत्ता में रही पार्टी को मिला।
इस बार राज्य का ग्रामीण वोटर खुलकर BJP के खिलाफ बोलता नजर आया। जाटों में तो BJP के प्रति गुस्सा साफ दिख रहा था लेकिन लग रहा है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस के रणनीतिकार कहीं न कहीं इस गुस्से को वोटों के अंदर कन्वर्ट करने में चूक गए। एक दशक से सत्ता में बैठी भाजपा के प्रति एंटी इनकम्बेंसी दिख रही थी लेकिन वोटिंग % कम रहने के बाद लग रहा है कि पार्टी के रणनीतिकार मतदान का दिन आने तक कहीं न कहीं चीजों को मैनेज करने में काफी हद तक कामयाब रहे।
हरियाणा का 24 साल का ट्रेंड: वोटिंग 2 से 4% बढ़ने पर ही बहुमत
साल 2000 में वोटिंग % बढ़ा तो विपक्षी दल सत्ता में आया
अगर बीते 24 बरसों की बात करें तो हरियाणा में साल 2000 में 69% वोटिंग हुई और इनेलो को 47 सीटें यानी पूर्ण बहुमत मिला। 2005 के विधानसभा चुनाव में 71.9% वोटिंग हुई जो सन 2000 के चुनाव से 2.9% ज्यादा थी। जब रिजल्ट आए तो कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। 90 सीटों वाली विधानसभा में उसने 67 सीटें जीतीं। यानि बहुमत के लिए जरूरी 46 सीटों से 21 सीटें ज्यादा।
साल 2009 में वोटिंग % मामूली बढ़ा तो कांग्रेस बहुमत से चूकी
साल 2009 के विधानसभा चुनाव में 72.37% वोटिंग हुई जो 2004 के 71.9% से सिर्फ 0.4% ज्यादा थी। मतगणना हुई तो कोई पार्टी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई। कांग्रेस 40 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी जरूर बन गई लेकिन वह बहुमत के लिए जरूरी 46 सीटों से 6 सीट पीछे रह गई।
उस समय तत्कालीन सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सरकार बनाने के लिए कुलदीप बिश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) के 6 विधायक तोड़ने पड़ गए। हालांकि तब 7 निर्दलीय विधायकों ने भी हुड्डा सरकार को समर्थन दे दिया था।
साल 2014 में वोटिंग 4% बढ़ी तो भाजपा सत्ता में आई
इसके 5 साल बाद यानी 2014 के चुनाव में 76.54% वोटिंग हुई। यह 2009 से 4.17% ज्यादा थी। जब नतीजे आए तो BJP को पहली बार अपने बूते पूर्ण बहुमत मिला। मोदी वेव पर सवार BJP ने 90 में से 47 सीटें जीती। BJP ने मनोहर लाल खट्टर की अगुआई में सरकार बनाई।
साल 2019 में वोटिंग 8.34% गिरी तो BJP बहुमत से चूकी
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा में कुल 68.20% वोटिंग हुई जो 2014 के मुकाबले 8.34% कम थी। उस समय भाजपा ने 75 पार का नारा दिया था लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो BJP को बहुमत लायक सीटें भी नहीं मिलीं। पार्टी महज 40 सीटें जीत पाई। इसके बाद उसे दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी।
साल 2024 में वोटिंग 1.24% कम, नतीजों पर नजर
इस बार चुनाव में रात 12 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक कुल 66.96% मतदान हुआ। यह 2019 से 1.24% कम है। वोटों की काउंटिंग 8 अक्टूबर को होनी है। अब देखना है कि इस बार भी वोटिंग % गिरने पर किसी को बहुमत न मिलने का ट्रेंड कायम रहता है या इस बार कोई नया इतिहास बनता है।
यहां समझिए बेल्ट वाइज क्या रही
जीटी रोड: BJP का 10 साल का दबदबा खतरे में, उसके विधायकों की सीटों पर अधिक वोटिंग
जीटी रोड बेल्ट में हरियाणा के 6 जिले आते हैं। इस एरिया में सबसे अधिक 23 विधानसभा सीटें पड़ती हैं। पिछले दो चुनाव में यहां बीजेपी का दबदबा रहा। 2014 में उसने यहां 23 में से 21 सीटें जीती जबकि 2019 में 23 में से 12 सीटें अपनी झोली में डालीं। हरियाणा में BJP गैर जाट की राजनीति करती है और इस रीजन में सबसे ज्यादा गैर जाट वोटर ही हैं। 2019 में यहां औसतन 69.38% वोटिंग हुई थी जो इस बार घटकर 67.72% रह गई। 2019 में भाजपा ने यहां जो 12 सीटें जीती थीं, उनमें से 5 पर इस बार पिछली बार के मुकाबले अधिक पोलिंग दर्ज की गई।
मायने : भाजपा के प्रति सबसे अधिक एंटी इनकम्बेसी इसी इलाके में नजर आई। भाजपा विधायकों वाली सीटों पर हुई अधिक वोटिंग को पार्टी के खिलाफ माना जा सकता है। पानीपत सिटी में पिछली बार के मुकाबले 11.9%, घरौंडा में 4.4% और करनाल शहर में साढ़े 3% अधिक लोगों ने वोट डाले। दूसरी ओर कांग्रेस के सभी 9 विधायकों वाली सीटों पर 2019 के मुकाबले कम मतदान हुआ।
साउथ हरियाणा-अहीरवाल बेल्ट : BJP विधायकों वाली 15 में से 7 सीटों पर अधिक वोटिंग
दिल्ली-NCR रीजन में आने वाली अहीरवाल बेल्ट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। इस रीजन में किसानों-पहलवानों के मुद्दे का भी ज्यादा असर नहीं है। 2014 में BJP ने यहां के तीन जिलों की सभी 11 सीटें जीती। 2019 में 11 में से 8 सीटें जीतकर अपना दबदबा कायम रखा। 2019 में अहीरवाल बेल्ट के तीन जिलों- गुरुग्राम, महेंद्रगढ़-रेवाड़ी में कुल 66.38% वोटिंग हुई थी। इस बार यह आंकड़ा 65.21% रहा जो 2019 के आंकड़े के आसपास ही है।
वहीं साउथ हरियाणा में आते फरीदाबाद और पलवल जिले की 9 सीटों पर 2019 में 63.16% वोटिंग हुई थी। इस बार यहां 62.01% पोलिंग हुई। यह गुर्जरों के प्रभाव बाला इलाका है। 2019 में भाजपा ने इन 9 में से 7 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी।
मायने : इन दोनों एरिया में रहने वाली ओबीसी बिरादरी BJP का कोर वोटबैंक मानी जाती है। भाजपा तीसरी बार सरकार बना पाएगी या नहीं, इसका फैसला काफी हद तक यही इलाका करेगा। यहां की बल्लभगढ़, फरीदाबाद, हथीन व होडल सीट पर 2019 के मुकाबले अधिक वोटिंग हुई। ये अधिक मतदान भाजपा के पक्ष में जाएगा या कांग्रेस के हक में? इसका पता 8 अक्टूबर को काउंटिंग के दौरान ही पता चलेगा।
बांगर बेल्ट ने हमेशा चौंकाया, इस बार वोटिंग घटी
बांगर बेल्ट में जींद और कैथल जिले की 9 विधानसभा सीटें आती हैं। यह इलाका ताऊ देवीलाल, चौधरी बीरेंद्र सिंह और सुरजेवाला परिवार की कर्मभूमि रहा है। जींद इसी बांगर बेल्ट में आता है और हरियाणा के ज्यादातर आंदोलन इसी धरती से खड़े हुए हैं। 2014 और 2019 में कांग्रेस ने यहां की 9 में से 1-1 सीट जीती। 2019 में यहां 74.55% वोटिंग हुई थी जो इस बार घटकर 71.21% रह गई। यानि पिछली बार के मुकाबले 3.34% कम।
मायने : इस इलाके में जाट बिरादरी का दबदबा है जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोटबैंक मानी जाती है। इस बार चौधरी बीरेंद्र सिंह का बेटा बृजेंद्र सिंह उचाना से, रणदीप सुरजेवाला का बेटा आदित्य कैथल से और जयप्रकाश जेपी का बेटा विकास सहारण कलायत से चुनाव मैदान में है। यह इन तीनों का पहला विधानसभा चुनाव है।
इनमें से उचाना और कलायत में तो लगभग 2019 जितनी पोलिंग दर्ज की गई लेकिन कैथल में मतदान 4% के आसपास कम रहा जो सुरजेवाला के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता।
रेसलर से नेता बनी विनेश फोगाट की वजह से जींद जिले की जुलाना हॉट सीट बन चुकी है। विनेश के लिए खुद प्रियंका गांधी प्रचार करने भी आई लेकिन यहां 2019 के मुकाबले साढ़े 3% के आसपास कम मतदान हुआ।
जाटलैंड हुड्डा का गढ़, यहां भी बंपर वोटिंग नहीं
हरियाणा के जाटलैंड या देशवाल बेल्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा रहा है। यहां के तीन जिलों, रोहतक, झज्जर और सोनीपत में बीजेपी को सिर्फ गैर जाट वोटरों का सहारा रहा है। 2014 में जब मोदी-वेव चरम पर थी, तब भी बीजेपी यहां की 14 सीटों पर खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। यही हाल 2019 में रहा। 2019 में यहां की 14 सीटों पर औसतन 67.77% वोटिंग हुई थी। इस बार यह 2.33% घटकर 65.44% रह गई। हुड्डा की अपनी गढ़ी-सांपला-किलोई सीट पर 6.28% और सोनीपत जिले की खरखौदा सीट पर 9.5% कम वोटिंग दर्ज की गई।
मायने : हुड्डा के गढ़ में ही कम वोटिंग कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी कही जा सकती है। सोनीपत जिले की 6 में से 4 और रोहतक शहरी सीट पर कांग्रेस-भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला है। कांग्रेस को प्रचार के आखिरी चरण में जिस तरह यहां राहुल गांधी का रोड शो करवाना पड़ा, उसके भी कई मायने हैं। झज्जर जिले की बहादुरगढ़ और बादली सीट पर फंसी हुई नजर आ रही है।
बागड़ बेल्ट में जाटों का दबदबा, फिर भी वोटिंग घटी
प्रदेश में विधानसभा सीटों के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा इलाका, बागड़ बेल्ट है। इसमें 5 जिलों की 21 विधानसभा सीटें आती हैं। इस रीजन में जाटों का दबदबा है। हरियाणा के तीनों मशहूर लाल- देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल इसी एरिया से संबंध रखते थे और आज भी यहां उनके परिवारों का दबदबा है।
हालांकि 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद भाजपा इस एरिया में राज्य के बाकी हिस्सों जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। तब यहां कांग्रेस, INLD और अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी सीटें जीतीं। इस बार यहां के पांचों जिलों में 2019 में कुल 72.92% वोटिंग हुई थी, जो इस बार 2.42% घटकर 70.50% रह गई।
मायने : भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने के लिए जीटी रोड और अहीरवाल के बाद सबसे ज्यादा उम्मीद इसी इलाके से है। तीन लाल परिवारों में से दो इस बार उसके साथ हैं। उसकी प्लानिंग बंसीलाल और भजनलाल परिवार की विरासत का फायदा उठाने की है। हिसार की सात में से 5 सीटों पर उसके और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला दिख रहा है।
सिरसा जिले की 5 में से 4 सीटें BJP पहले ही एक तरह से इनेलो के लिए छोड़ चुकी है और सिरसा सीट पर गोपाल कांडा के समर्थन में अपना कैंडिडेट वापस ले चुकी है। भिवानी की चार में से तीन सीटें भी टफ फाइट में फंसी है।
मुस्लिम बाहुल्य मेवात बेल्ट, 2019 से ज्यादा वोटिंग
हरियाणा की मेवात बेल्ट में हमेशा से मुस्लिमों का दबदबा रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव तक यहां इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का वर्चस्व रहा, लेकिन 2019 में कांग्रेस ने नूंह जिले की तीनों सीटें जीतीं। 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां कुल 72.16% वोटिंग हुई थी। 31 जुलाई 2023 को हुए दंगों के सवा साल बाद हुए इस चुनाव में यहां 72.83% पोलिंग हुई जो पिछली बार से 0.67% ज्यादा रही। यह आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है।
मायने: यहां अधिक पोलिंग का फायदा कांग्रेस को मिलने के आसार हैं। वह 2019 की तरह इस बार भी यहां की तीनों सीटें जीत सकती है। दंगों के कारण सबसे ज्यादा जो इलाके प्रभावित हुए थे, वह नूंह सीट के तहत आते हैं। भाजपा ने यहां कांग्रेस के आफताब अहमद के सामने राजपूत बिरादरी के संजय सिंह को उतारकर वोटों के ध्रुवीकरण की प्लानिंग की थी लेकिन इससे पार्टी को कुछ खास फायदा होगा, इसमें संदेह है।