नई दिल्ली11 मिनट पहले
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सरकार ने देश के सभी मजदूरों और कर्मचारियों के लिए एक बड़ा फैसला करते हुए शुक्रवार से चार नए लेबर कोड लागू किए हैं। पहले जो 29 अलग-अलग श्रम कानून थे, उनमें से जरूरी बातें निकालकर इन्हें अब 4 आसान और साफ नियमों में बदल दिया गया है।
इन नए नियमों का मकसद हर कामगार को समय पर और ओवरटाइम वेतन, न्यूनतम मजदूरी, महिलाओं को बराबर मौका और सैलरी, सोशल सिक्योरिटी, फ्री हेल्थ चेकअप देना है। नए कानून से कर्मचारी को 5 की जगह सिर्फ 1 साल में ग्रेच्युटी का लाभ मिलेगा।
सरकार का कहना है कि पुराने श्रम कानून 1930–1950 के बीच बने थे, जब कामकाज, इंडस्ट्री और टेक्नोलॉजी आज से बिल्कुल अलग थे। नए कोड आधुनिक जरूरतों और अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इसलिए पुराने 29 श्रम कानूनों को सरल बनाकर चार लेबर कोड में बदल दिया है।

मोदी बोले- बदलाव मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करेंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि नई श्रम संहिताएं लोगों के लिए खासकर महिलाओं और युवाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम और समय पर मिलने वाली मजदूरी, सुरक्षित कार्यस्थल और बेहतर अवसरों की मजबूत नींव तैयार करेंगी।
उन्होंने कहा कि ये बदलाव मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करेंगे और भारत की आर्थिक वृद्धि को और मजबूत बनाएंगे।इन सुधारों से रोजगार बढ़ेगा, उत्पादकता में सुधार होगा, और विकसित भारत की दिशा में हमारी गति तेज होगी।
ट्रेड यूनियनों ने लेबर कोड की निंदा की
10 लेबर यूनियनों के एक जॉइंट फोरम ने शुक्रवार को लेबर कोड की निंदा करते हुए कहा कि यह कदम मजदूर विरोधी है और मालिकों का समर्थन करता है। वहीं भारतीय मजदूर संघ ने सुधारों का स्वागत किया और इसे लंबे समय से इंतजार किया जा रहा कदम बताया।

नए लेबर कोड से होने वाले फायदे डिटेल में जानें…
1. फिक्स्ड-टर्म स्टाफ को परमानेंट लेवल के फायदे: फिक्स्ड-टर्म वाले कर्मचारी अब परमानेंट वर्कर्स जैसे फायदे पाएंगे, जैसे सोशल सिक्योरिटी, मेडिकल कवर और पेड लीव। ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल की जगह एक साल का समय ही लगेगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों पर ज्यादा निर्भरता कम होगी और डायरेक्ट हायरिंग को बढ़ावा मिलेगा।
2. सभी मजदूरों के लिए मिनिमम वेज और समय पर पेमेंट: हर सेक्टर के मजदूरों को नेशनल फ्लोर रेट से जुड़ी न्यूनतम वेतन मिलेगा, साथ ही समय पर पेमेंट और अनऑथराइज्ड कटौतियां बंद होंगी।
3. महिलाओं को सभी शिफ्ट्स और जॉब रोल्स में अनुमति: महिलाएं नाइट शिफ्ट्स में और सभी कैटेगरी में उनकी मंजूरी और सेफ्टी मेजर्स के साथ काम कर सकेंगी। जैसे माइनिंग, हैवी मशीनरी और खतरनाक जगहों पर। बराबर पेमेंट जरूरी है और ग्रिवांस पैनल्स में उनकी रिप्रेजेंटेशन जरूरी।
4. बेहतर वर्किंग-आवर रूल्स और ओवरटाइम प्रोटेक्शन: ज्यादातर सेक्टर्स में काम के घंटे 8–12 घंटे प्रति दिन और 48 घंटे प्रति हफ्ते तक रहेंगे, ओवरटाइम के लिए दोगुना वेतन और जरूरी जगहों पर लिखित कंसेंट जरूरी होगा। एक्सपोर्ट्स जैसे सेक्टर्स में 180 वर्किंग डेज के बाद लीव्स एक्यूमुलेट होंगी।
5. यूनिवर्सल अपॉइंटमेंट लेटर्स और फॉर्मलाइजेशन पुश: अब सभी नियोक्ताओं (एम्प्लॉयर्स) को हर मजदूर को अपॉइंटमेंट लेटर देना जरूरी होगा।इससे मजदूरों की नौकरी का रिकॉर्ड साफ रहेगा, वेतन में पारदर्शिता रहेगी और उन्हें मिलने वाले लाभों तक पहुंच आसान होगी। इस कदम से IT, डॉक, टैक्सटाइल जैसी इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों की नौकरियां अधिक फॉर्मल होंगी और सिस्टम अधिक व्यवस्थित होगा।
6. गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को आधिकारिक मान्यता: पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म मजदूरों को कानूनी तौर पर परिभाषित किया गया। एग्रीगेटर्स को अपनी कमाई का 1-2% (पेमेंट्स का 5% तक कैप्ड) वेलफेयर के लिए देना होगा और आधार से लिंक्ड पोर्टेबल फायदे हर राज्य में मिलेंगे।
7. जोखिम वाली इंडस्ट्रीज में हेल्थ चेकअप्स और सेफ्टी नियम जरूरी: खतरनाक फैक्ट्रियों, प्लांटेशन, कॉन्ट्रैक्ट लेबर और खदानों में काम करने वाले मजदूरों (जो तय संख्या से ज्यादा हैं) के लिए हर साल फ्री हेल्थ चेकअप कराना जरूरी होगा। इसके साथ ही सरकार द्वारा तय किए गए सेफ्टी और हेल्थ स्टैंडर्ड लागू करने होंगे, और बड़े संस्थानों में सेफ्टी कमेटी बनाना भी अनिवार्य होगा, ताकि मजदूरों की सुरक्षा पर लगातार नजर रखी जा सके।
8. उद्योगों में सोशल सिक्योरिटी का नेटवर्क और बड़ा: सोशल सिक्योरिटी कोड की कवरेज पूरे देश में फैल जाएगी, जिसमें MSME कर्मचारी, खतरनाक जगहों पर एक भी मजदूर, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और वो सेक्टर शामिल हैं जो पहले ESI की जरूरी स्कीम से बाहर थे।
9. डिजिटल और मीडिया वर्कर्स को आधिकारिक कवर: अब पत्रकार, फ्रीलांसर, डबिंग आर्टिस्ट और मीडिया से जुड़े लोग भी लेबर प्रोटेक्शन के दायरे में आएंगे।इसका मतलब है कि उन्हें अपॉइंटमेंट लेटर मिलेगा, उनकी सैलरी समय पर और सुरक्षित रहेगी, और उनके काम के घंटे तय और नियमबद्ध होंगे।
10. कॉन्ट्रैक्ट, माइग्रेंट और अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स के लिए मजबूत प्रोटेक्शन: कॉन्ट्रैक्ट और दूसरे शहरों से आए मजदूरों को अब स्थायी कर्मचारियों जितना ही वेतन, सरकारी वेलफेयर योजनाएं, और ऐसी सुविधाएं मिलेंगी जो एक जगह से दूसरी जगह जाने पर भी जारी रहेंगी। साथ ही जिस कंपनी में वे काम करते हैं, उसे उनके लिए सोशल सिक्योरिटी देना जरूरी होगा और पीने का पानी, आराम करने की जगह और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध करानी होंगी।
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