Geeta’s teaching: Right action is done with a calm mind, life management tips about success and happiness, lesson of shrimad bhagwad geeta in hindi | गीता की सीख: सही कर्म शांत चित्त से होता है: डर, लालच या तुलना करके से किया गया कर्म हमें थका देता है, ऐसे कामों से बचें

  • Hindi News
  • Jeevan mantra
  • Dharm
  • Geeta’s Teaching: Right Action Is Done With A Calm Mind, Life Management Tips About Success And Happiness, Lesson Of Shrimad Bhagwad Geeta In Hindi

3 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

आज सभी लोग सफलता के पीछे भाग रहे हैं, यहां अनवरत परिश्रम को ही महानता की निशानी माना जाता है। जबकि श्रीमद्भगवद्गीता कहती है कि किसी चीज को ज्यादा जोर से पकड़ने की जरूरत नहीं है, जब हम चीजों को कसकर पकड़ते हैं तो वे हमारे हाथों से फिसलने लगती हैं।

गीता ये नहीं कहती कि तुम कुछ मत करो, बल्कि गीता कहती है कि कोई काम किस भाव के साथ कर रहे हैं, इस बात को समझना महत्वपूर्ण है। ज्यादा श्रम करना गलत नहीं है, लेकिन ध्यान रखें सही कर्म शांत चित्त से होता है। कुछ भी काम करने से पहले हमें अपने मन को शांत कर लेना चाहिए। अशांत मन के साथ काम करेंगे तो दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

असहजता असफलता नहीं है

जीवन में भ्रम, संदेह और जड़ता आना स्वाभाविक है। ये विकास की निशानी है, पतन की नहीं। जैसे अर्जुन युद्धभूमि में हिचकिचाते हैं और श्रीकृष्ण उनके भ्रम-संदेह दूर करते हैं, ठीक इसी तरह हम भी नए काम करते समय अस्थिर हो जाते हैं। ये कमजोरी नहीं, जागृति की शुरुआत है। इस असहजता को असफलता न समझें।

स्पष्टता और कर्तव्य भाव से करें कर्म

गीता हमारे कर्म को दो भागों में बांटती है- पहला- अहंकार से प्रेरित कर्म और दूसरा है धर्म से प्रेरित कर्म। डर, लालच या तुलना करके से किया गया कर्म हमें थका देता है, लेकिन स्पष्टता और कर्तव्य भाव से किया गया कर्म हमें ऊर्जा देता है।

संतुलन और सरलता से जीवन में स्पष्टता आती है

गीता तीन गुणों की बात करती है- सत्व यानी स्पष्टता, रज यानी चंचलता और तम यानी जड़ता। उलझन में हम अक्सर रज गुण की ओर भागते हैं, सिर्फ कुछ करने के लिए, लेकिन गीता हमें सत्त्व गुण को अपनाने के लिए कहती है। संतुलन, सरलता, और शांत विचार के साथ जीवन में स्पष्टता आती है। सत्व गुण यानी स्पष्टता अभ्यास से आती है।

गीता साक्षी भाव अपनाने की शिक्षा देती है, घटनाओं को देखें, उनमें बहें नहीं। जब हम अपने विचारों और भावनाओं को बस देखना सीख जाते हैं, प्रतिक्रिया देने के पहले सोच-विचार करने लगते हैं, वहीं से स्पष्टता जन्म लेती है। जब स्पष्टता आती है, तब हम ज्यादा प्रयास नहीं करते, बेहतर प्रतिक्रिया देने लगते हैं।

भ्रम दूर करें और स्पष्टता लाएं

अर्जुन की असली लड़ाई बाहर नहीं, अपने अंदर के भ्रमों से थी, जिन्हें श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश देकर दूर किया। हमें भी अपने सभी भ्रम को छोड़कर जीवन में स्पष्टता लानी चाहिए। गीता का सबसे प्रसिद्ध श्लोक कहता है-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

हमारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं है।

ये उदासीनता नहीं है, ये बुद्धिमत्ता है। परिणामों पर पकड़ बनाने की भावना हमें सीमित कर देती है। जब हम सिर्फ प्रक्रिया में, अपने कर्म में लीन हो जाते हैं, तब हमें असीमित संभावनाएं मिलती हैं।

जब हम अपने कर्म बिना अहंकार या नियंत्रण की कामना से करते हैं, तब हम भगवान की कृपा के पात्र बन जाते हैं। समय के साथ हमारा धर्म भी बदलता है। कभी हमारा धर्म कार्य करना हो सकता है और कभी आराम करना, कभी सुनना हो सकता है। हमें सार्थक प्रयास करना चाहिए। सबसे बड़ी स्पष्टता अशांति से नहीं, शांति से उपजती है।

खबरें और भी हैं…

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *