दिसंबर की सर्द सुबह। उज्जैन दक्षिण से तीसरी बार विधायक चुने गए डॉ. मोहन यादव जब अपने घर से भोपाल के लिए निकल रहे थे तब पत्नी सीमा यादव से बोले- शाम तक कुछ अच्छा होगा। कुछ घंटे बाद भाजपा विधायक दल की बैठक में उनके मुख्यमंत्री बनने का ऐलान हो गया। दो द
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जाहिर है सब अचानक नहीं हुआ था, दिल्ली की नजर मोहन यादव पर पहले से थी और इधर ‘पहली पंक्ति’ के बड़े चेहरों की नजर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर। नए मुख्यमंत्री के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती थी। पावर सेंटर्स के प्रेशर के बीच उनमें बैलेंस बनाए रखना।
लगातार 18 साल मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के प्रशासनिक और राजनीतिक आभामंडल के साए से निकलकर मोहन यादव ने अपनी नई टीम बनाकर बिना समय गंवाए काम शुरू कर दिया। छह महीने बाद पहली और बड़ी राजनीतिक परीक्षा में बैठना था- लोकसभा चुनाव की।
पहली चुनावी परीक्षा में तो मोहन यादव पास हो गए, लेकिन राजनीतिक पावर सेंटर्स की प्रेशर पॉलिटिक्स से जूझना पड़ रहा है। उनके खाते में लोकसभा की सभी 29 सीटें जिताने की उपलब्धि है तो उपचुनाव में विजयपुर में सरकार के मंत्री की हार का सबब भी।
प्रशासनिक कसावट और बड़े फैसलों को लेकर उनकी वर्किंग स्टाइल की चर्चा हुई तो गृह विभाग खुद के पास होने की वजह से लॉ एंड ऑर्डर को लेकर उनसे सवाल भी पूछे जा रहे हैं।
सीएम डॉक्टर मोहन यादव ने 10 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का भूमिपूजन के लिए उन्हें मध्यप्रदेश आने का न्यौता दिया।
एक साल का डॉ. मोहन यादव कार्यकाल कैसा रहा, पांच सवालों के जवाब से समझते हैं..
1. सरकार में सबसे बड़ा बदलाव क्या दिखा?
प्रशासनिक कसावट : अपनी ही पार्टी की सरकार। प्रशासनिक सिस्टम भी पूरी तरह सेट, लेकिन अफसरशाही के प्रति लोगों की नाराजगी की दुखती रग को नए मुख्यमंत्री ने शुरुआत में समझ लिया। पहले एक महीने के दौरान ही एक संभाग आयुक्त, 9 कलेक्टर, 3 एसपी हटा दिए। नवंबर तक 22 जिलों के कलेक्टर, 39 जिलों के एसपी बदले जा चुके हैं।
शाजापुर कलेक्टर को तो गलत भाषा की वजह से बदल दिए गया। कलेक्टर ने एक बैठक में ड्राइवर को औकात दिखाने की बात कह दी थी। अगले दिन मुख्यमंत्री का बयान आया – ऐसी भाषा बर्दाश्त नहीं। थोड़ी देर बाद ही शाजापुर को नया कलेक्टर मिल गया।
एक साल में प्रशासनिक कसावट के लिए कुछ प्रयोग भी किए। सीनियर आईएएस और आईपीएस को संभागों का जिम्मा सौंपा, ताकि मैदानी मॉनिटरिंग मजबूत रहे। मुख्यमंत्री खुद संभागों में पहुंचे।
2. चुनावी परीक्षा में प्रदर्शन कैसा रहा?
नाथ के छिंदवाड़ा को जीता, मंत्री का घर हारे : 2019 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा ही एकमात्र ऐसी सीट थी जिसे भाजपा जीत नहीं पाई थी। फिर 2023 के विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा जिले की सात में एक भी सीट भाजपा के हाथ में नहीं आ पाई।
मुख्यमंत्री के लिए चुनौती थी कि किसी तरह कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को जीतना। हालांकि छिंदवाड़ा के लिए भाजपा का राजनीतिक प्रोजेक्ट काफी पहले से चल रहा था, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद इसकी सीधी जिम्मेदारी संगठन और मुख्यमंत्री के हाथों में आ गई।
लगातार दौरे और छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह की भाजपा में एंट्री कराकर नाथ परिवार के लिए राजनीतिक चक्रव्यूह तैयार किया। प्रयोग सफल रहा। दूसरी राजनीतिक परीक्षा अमरवाड़ा उपचुनाव थी। इसे भी आसानी से पास कर लिया।
तीसरी परीक्षा का रिजल्ट जरूर सवाल खड़े कर गया। कांग्रेस से भाजपा में आए रामनिवास रावत मंत्री बनकर भी अपनी सीट नहीं बचा पाए, शिवराज की सीट बुधनी को जैसे–तैसे बचा पाए। यहां जीत का अंतर 1,04,974 से घटकर 13901 ही रह गया। बुधनी की जीत ऐसी रही कि पार्टी चाहकर भी जश्न नहीं मना पाई।
3. सबसे बड़ी चुनौती क्या?
सीनियर मंत्रियों को कैसे साधे : लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. यादव से भास्कर ने सवाल किया था- कैबिनेट में कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल जैसे सीनियर लीडर को किस तरह हैंडल करते हैं? जवाब था – ‘धोनी की टीम में कई सीनियर थे। विराट कोहली की टीम में धोनी थे। राजनीति भी एक टीम गेम है। इसमें वरिष्ठ भी रहते हैं, कनिष्ठ भी रहते हैं। कैप्टन कोई एक बनता है।’
मुख्यमंत्री ने जितनी सहजता से जवाब दिया था, असल में यह इतना आसान नहीं था। दिख भी रहा है। मंत्रिमंडल की कम से कम पांच बैठकों में दोनों मंत्री शामिल नहीं हुए। तर्क दिया गया कि महाराष्ट्र चुनाव में व्यस्त रहे। हो सकता है। दो दिन पहले कैबिनेट बैठक में भी दोनों मंत्री नदारद थे। कुछ गड़बड़ नहीं है तो सब कुछ ठीक भी नहीं दिख रहा है।
इस राजनीतिक धुएं को जल्द साफ करना या हाईकमान से करवाना मुख्यमंत्री के लिए पहली प्राथमिकता का काम होगा। राजनीति में नहीं दिखने नहीं वाले झगड़े भी बड़ा उलटफेर कर जाते हैं।
गाय के बछड़े को दुलार करते सीएम डॉ. मोहन यादव। तस्वीर 6 जुलाई की उज्जैन की है। जब सीएम एक पेड़ मां के नाम अभियान की शुरुआत करने पहुंचे थे।
4. किस एजेंडे पर आगे बढ़ रहे हैं?
शस्त्र, गीता और गाय पर जोर : मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पहला आदेश धार्मिक स्थलों पर नियमों के खिलाफ तेज आवाज में बजने वाले लाउड स्पीकर पर रोक लगाने का था। मांस-मछली की अवैध दुकानों पर कार्रवाई की बात कही। कोर्ट के आदेश के पहले तक खूब बुलडोजर एक्शन भी हुए।
संकेत साफ था और लाइन भी स्पष्ट। शुरुआत हार्डकोर हिंदुत्व के एजेंडे के साथ, फिर सॉफ्ट हुए। एजेंडे को पर्व–त्योहार से जोड़ा। दशहरे पर सभी मंत्री विधायकों को अपने गृह जिले में शस्त्र पूजन करने को कहा। फिर, मंत्रियों को कहा गया कि दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर गौशालाओं में पहुंचकर गायों की पूजा करें।
गीता जयंती पर सरकारी कार्यक्रम हुए और ऐलान किया कि हर जिले में सरकार गीता भवन बनाएगी। जन्माष्टमी पर घोषणा की, जहां-जहां भगवान कृष्ण के चरण पड़े, वहां श्रीकृष्ण पाथेय बनाएंगे।
5. शिवराज सरकार के फैसले क्यों बदले?
बीआरटीएस को हटाया : भोपाल में BRTS कॉरिडोर के कारण होने वाली दिक्कतों की वजह से इसे हटाने की मांग लंबे समय से उठ रही थी। जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक में एक झटके में इसे हटाने का फैसला ले लिया गया। BRTS कॉरिडोर पर 13 साल पहले 360 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इंदौर बीआरटीएस के बारे में सरकार ऐसा ही फैसला ले चुकी है।
राजधानी परियोजना प्रशासन सीपीए को शिवराज ने 2022 में अनुपयोगी बताते हुए बंद कर दिया था। मोहन सरकार ने इसी साल अगस्त में इसे फिर शुरू कर दिया। मध्यप्रदेश गान के दौरान खड़े रहकर सम्मान देने की परंपरा शिवराज ने शुरू की थी। मोहन यादव ने एक कार्यक्रम के दौरान इस परंपरा को बदलते हुए कहा कि सिर्फ राष्ट्रगान के दौरान ही खड़े रहना चाहिए।
इन फैसलों के पीछे परिस्थितजन्य कारण हो सकते हैं। उन्होंने संदेश दिया कि फैसले लेते वक्त पीछे नहीं देखेंगे।
भोपाल में गीता जयंती के आयोजन में एक बालक सीएम डॉ. मोहन यादव की पेंटिंग थामे।
एक साल की खास बातें, 4 पॉइंट में …
1. सबसे बड़ा फैसला…
आरटीओ चेक पोस्ट रातोंरात बंद कर दिए। सरकारी सिस्टम से जुड़े लोगों के लिए एटीएम की तरह काम करने वाले इन चेकपोस्ट पर वाहनों से अवैध वसूली को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। अब गुजरात पैटर्न तरह रोड सेफ्टी और इन्फोर्समेंट चैकिंग पॉइंट बनाए गए।
2. निर्णय नहीं ले पाए..
तबादला नीति जारी नहीं हो पाई, जबकि इसका ड्राफ्ट तक तैयार हो गया था। मंत्रियों से नेताओं का इसका इंतजार था, ताकि वे अपने मनमाफिक तबादले करवा सकें। यह इंतजार अब बरकरार है।
3. पीछे कदम खींचे..
जिला अस्पतालों के संचालन को पीपीडी मोड पर निजी हाथों में देने की तैयारी हो चुकी थी। टेंडर भी जारी होने वाले थे लेकिन विरोध के बाद सरकार को इस मामले में कदम पीछे खींचना पड़े।
4. जो अलग किया…
धार्मिंक न्यास विभाग के डायरेक्टोरेट को उज्जैन शिफ्ट कर दिया। पहले यह भोपाल में था। इस विभाग का काम प्रदेशभर धर्मस्थलों के लिए नियम कायदे तय करना और उन्हें आर्थिक मदद देना।