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11 घंटे पहले
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गौतम बुद्ध और उनके शिष्य आनंद से जुड़ा किस्सा है। बुद्ध और आनंद एक दिन घने जंगल से गुजर रहे थे। मौसम गर्म था और लंबी दूरी पैदल तय करने के बाद दोनों को प्यास लगने लगी। बुद्ध एक पेड़ की छाया में रुके और आनंद से बोले कि यहां पास ही एक झरने दिखाई दे रहा है। जाकर देखो, अगर पानी साफ हो तो पीने के लिए लेकर आओ।
आनंद तेजी से उस दिशा में चल दिए। झरने के पास पहुंचते ही आनंद ने देखा कि एक बैलगाड़ी पानी से गुजर रही है। पहियों के दबाव से नीचे की मिट्टी ऊपर आ गई थी और पानी पूरी तरह मटमैला हो चुका था। आनंद को लगा कि इस पानी को पीना तो दूर, छूना भी ठीक नहीं। वे बिना देर किए वापस लौटे और बुद्ध से कहा कि तथागत, वहां का पानी बिल्कुल साफ नहीं है। अभी तो गंदगी इतनी है कि पानी पीने के लिए अच्छा नहीं है।
बुद्ध ने कहा कि कोई बात नहीं, एक काम करो, वापस जाओ और पानी के पास कुछ देर चुपचाप बैठ जाना। कुछ देर बाद देखना पानी साफ हो जाएगा।
आनंद को ये बात थोड़ी विचित्र लगी, लेकिन उन्होंने बुद्ध के कहे अनुसार ऐसा ही किया। वे पानी के किनारे बैठ गए। कुछ ही समय बीता था कि पानी की हलचल थमने लगी। मिट्टी धीरे-धीरे नीचे बैठ गई और ऊपर का पानी बिल्कुल साफ दिखाई देने लगा। आनंद के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। अब उन्हें गुरु की बात का अर्थ समझ आने लगा था।
आनंद साफ पानी लेकर वापस लौटे। बुद्ध ने पानी से प्यास बुझाई और बोले कि देखा आनंद, पानी अपने आप साफ हो गया, क्योंकि तुमने उसे छेड़ा नहीं, बस समय दिया। जीवन में भी यही होता है। जब परिस्थितियां उलझी हुई हों, तो हम जितना उन्हें हिलाते-डुलाते हैं, वे उतनी ही मटमैली दिखती हैं। हमें लगता है कि कोई रास्ता नहीं बचा, सब खत्म हो रहा है, लेकिन थोड़े धैर्य से, थोड़े मौन से, मन की परेशानियां खुद नीचे बैठने लगती है।
आनंद ने कहा कि तथागत, आज मैंने समझ लिया कि समाधान कई बार बाहर नहीं, हमारे शांत मन में छिपा होता है।
बुद्ध ने कहा कि बुरे समय में मन अस्थिर होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि हम धैर्य रखकर मन शांत करें, तो हालात अपने आप साफ होने लगते हैं। ठीक उस झरने के पानी की तरह।
गौतम बुद्ध की सीख
- धैर्य कमजोरी नहीं एक ताकत है
जब स्थिति बिगड़ती है, लोग अक्सर तुरंत समाधान खोजने की कोशिश में और तनाव पैदा कर लेते हैं। धैर्य का अर्थ निष्क्रिय होना नहीं है, बल्कि उचित समय का इंतजार करते हुए सही दिशा में सोचने की क्षमता विकसित करना है। कभी-कभी ठहरना ही सबसे बड़ा निर्णय होता है। धैर्य से बड़ी-बड़ी समस्याएं हल हो सकती हैं।
- मन को शांत करने के लिए विराम लें
जैसे पानी को शांत होने के लिए समय चाहिए, वैसे ही मन को भी समय चाहिए। तनाव हो तो कुछ देर ब्रेक लें, गहरी सांसें लें। इससे मानसिक स्पष्टता लौटती है और हम बेहतर निर्णय ले पाते हैं।
- तुरंत प्रतिक्रिया देने से बचें
उलझन के समय में लोग तुरंत प्रतिक्रिया दे देते हैं। ऐसी त्वरित प्रतिक्रियाएं मन को और अशांत कर देती हैं। स्थिति को देखने, समझने और फिर प्रतिक्रिया देने की आदत डालें। ये नेतृत्व और स्थिरता दोनों बनाता है।
- मेडिटेशन से मन होता है शांत
जो लोग ध्यान करते हैं, वे तनाव को जल्दी पहचानकर खुद को संभाल लेते हैं। रोज कुछ देर मेडिटेशन यानी ध्यान करने से मन को स्थिरता और मजबूती मिलती है। इससे बुरा समय आने पर घबराहट कम होती है, मानसिक स्थिरता और स्पष्टता बनी रहती है।
- तत्काल समाधान पाने की कोशिश न करें
हर समस्या तुरंत हल नहीं होती। कई मुद्दे समय, परिस्थितियों और लोगों की मन:स्थिति के बदलने से ही सुलझते हैं। जब समाधान दिखाई न दे, तो अपने विचारों को शांत होने दें, तुरंत समाधान पाने की कोशिश न करें, क्योंकि समय बीतने के साथ कभी-कभी समाधान स्वयं प्रकट हो जाता है।
- कठिन समय को सीखने का अवसर मानें
बुद्ध की सीख के बाद आनंद ने समझ लिया था कि हलचल से पानी गंदा होता है, वैसे ही समस्याएं हमें हमारे मन की हलचल दिखाती हैं। हर चुनौती हमें नई बातें सिखाती हैं, हर परेशानी को एक अवसर मानेंगे तो जीवन में सुख-शांति और सफलता बनी रहेगी।
