सूरत की लाजपोर जेल में हाल ही में एक ऐसा सजायाफ्ता कैदी आया है। जिसे यूके (यूनाइटेड किंगडम) में मंगेतर की हत्या के जुर्म में 28 साल की सजा सुनाई है। जिसमें से कैदी चार साल की सजा यूके में काट चुका है। अब बाकी के 24 साल वह लाजपोर जेल में ही रहेगा। यह
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साल 2020 में यूके के लीसेस्टर शहर में कैदी जीगू ने मामूली झगड़े में चाकू से वार कर मंगेतर भाविना की हत्या कर दी थी। लीसेस्टर कोर्ट ने जीगू को 28 साल की आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। आरोपी जीगू सोरठिया के परिवार ने उसे भारत लाने की अर्जी थी कि जिसके बाद कैदी को सूरत के लाजपोर जेल में सजा काटने के लिए भेजा गया।
जीगू और भावना ने 2017 में सिविल मैरिज की थी और यूके में रह रहे थे।
कैदी को यूके से दिल्ली और फिर सूरत लेकर आए चार साल तक यूके की जेल में सजा काटने के बाद, सारठिया के परिवार ने उसे भारत की जेल में स्थानांतरित करने की अपील की। 16 दिसंबर को ब्रिटिश एस्कॉर्ट स्टाफ जीगू को सुरक्षित तरीके से यूके से दिल्ली लेकर पहुंचे। इस दौरान सूरत पुलिस का एक विशेष दल कैदी को रिसीव करने के लिए दिल्ली पहुंचे।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कैदी को प्राप्त करने की सभी प्रक्रियाओं का वीडियोग्राफी और दस्तावेजीकरण किया गया। यूके पुलिस ने कैदी जीगू सोरठिया को सूरत पुलिस अधिकारियों को सौंप दिया। 17 दिसंबर को सूरत पुलिस ने कैदी को लाजपोर जेल के अधिकारियों को सौंप दिया। जेल सूत्रों के अनुसार, ट्रांसफर के दौरान कैदी के साथ किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए विशेष सावधानी बरती गई।
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सभी प्रक्रियाओं का वीडियोग्राफी और दस्तावेजीकरण किया गया।
इसलिए कर दी थी अपनी मंगेतर की हत्या यह मामला युवा जोड़े के टूटे हुए संबंधों से जुड़ा है। जीगू और भावना ने 2017 में सिविल मैरिज की थी और यूके में रह रहे थे। वे विधिवत शादी करने की योजना बना रहे थे, लेकिन शादी से पहले बने कुछ मतभेदों के कारण भावना ने शादी से इनकार कर दिया था। इससे गुस्साए जीगू ने चाकू से लगातार वार कर भावना की हत्या कर दी थी। हालांकि, जीगू ने हत्या के तुरंत बाद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। गंभीर अपराध को देखते हुए कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा दी।
अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत पहले ट्रांसफर का मामला भारत और यूके के बीच हुए संधि समझौते के तहत किए गए पहले कानूनी ट्रांसफर की प्रक्रिया है। इस समझौते के तहत, कोई भी कैदी अपनी बाकी की सजा काटने के लिए अपने देश वापस जाने की अपील कर सकता है। जब दोनों सरकारों और एंबेसी ने इस प्रक्रिया में सहयोग किया, तो इसे कानूनी और पारदर्शी बनाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए। यह ट्रांसफर यूके और भारत के बीच 2003 में बने समझौते के तहत हुआ।