मध्यप्रदेश में 19 सितंबर को सीएम हाउस में सरकार-संगठन के मुख्य पदाधिकारियों की बैठक हुई। बैठक में जिन मुद्दों पर चर्चा हुई, उनमें से एक मुद्दा बीजेपी नेताओं के बीच बढ़ते विवाद और आंतरिक गुटबाजी दूर करने का स्थायी समाधान निकालना भी था।
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दरअसल, मध्यप्रदेश में इन दिनों बीजेपी नेता एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी कर रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में टीकमगढ़, रायसेन और रीवा में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जो सरकार और संगठन दोनों को असहज कर रही हैं। हालांकि, संगठन ने इनको सुलझाने की कोशिश की है, मगर पूरी तरह से मामला शांत नहीं हुआ है।
एक्सपर्ट का कहना है कि ये सारे विवाद इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि बीजेपी मूल कैडर की उपेक्षा कर रही है। जो आने वाले दिनों में खतरे की घंटी साबित हो सकता है। बीजेपी के वो नेता, जो संगठन के कामकाज को लेकर अक्सर मुखर रहते हैं, कहते हैं कि चुनाव जीतने के लिए पार्टी की कांग्रेस समेत दूसरे दलों के नेताओं को आयातित करने की रणनीति भारी पड़ रही है। जो गांठ पड़ चुकी है, वो खुलनी मुश्किल है।
इधर, पार्टी नेतृत्व का कहना है कि जो भी गिले शिकवे हैं, वो दूर कर लिए जाएंगे।

केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक के खिलाफ उन्हीं के लोकसभा क्षेत्र टीकमगढ़ के विधायकों ने मोर्चा खोला हुआ है।
पहले जानिए, वो तीन विवाद…जो सुर्खियों में हैं
केंद्रीय मंत्री खटीक के खिलाफ 3 साल से पनप रहा गुस्सा
केंद्रीय मंत्री व टीकमगढ़ सांसद डॉ. वीरेंद्र खटीक के खिलाफ प्रतिनिधियों की नियुक्ति को लेकर विधायकों की लामबंदी का विवाद नया नहीं है। इसकी शुरुआत उनके पिछले कार्यकाल के दौरान 28 मई 2021 को हुई थी। कलेक्ट्रेट में बुलाई गई कोरोना क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक में डॉ. खटीक और टीकमगढ़ के तत्कालीन विधायक राकेश गिरी के बीच विवाद हो गया था।
बैठक में नगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग और पीडब्ल्यूडी के कामों को लेकर सांसद ने विधायक पर कई आरोप लगाए थे। इस दौरान राकेश गिरी और सांसद खटीक के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। इसके बाद सांसद ने इन्हीं तीनों विभागों में अपने समर्थक भाजपा पदधिकारियों को प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया था।
पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिला महामंत्री जितेंद्र सेन जीतू को पीडब्ल्यूडी, भाजपा महामंत्री अभिषेक खरे को नगर पालिका परिषद जबकि भाजपा जिला उपाध्यक्ष मनोज देवलिया को स्वास्थ्य विभाग का सांसद प्रतिनिधि बनाया था।

100 से ज्यादा प्रतिनिधियों की नियुक्ति को लेकर गहराया विवाद
राकेश गिरि से पिछली बार हुए विवाद के बाद मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि इस बार जब डॉ. खटीक एक बार फिर सांसद बने तो उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में 100 से ज्यादा प्रतिनिधि बना दिए। पूर्व मंत्री और छतरपुर की महाराजपुर विधानसभा से मौजूदा विधायक कामाख्या प्रताप सिंह के पिता मानवेंद्र सिंह ने सबसे पहले मोर्चा खोला।
उन्होंने आरोप लगाया कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया गया है। छतरपुर की मौजूदा विधायक ललिता यादव ने उनका समर्थन किया। ये भी कहा कि जो भी सांसद प्रतिनिधि बनाए गए हैं, वे विधायकों के कामों में दखल दे रहे हैं।
टीकमगढ़ में पूर्व विधायक राकेश गिरि और खरगापुर से पूर्व विधायक राहुल लोधी ने मोर्चा संभाला। उन्होंने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाए। जब प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो संगठन सक्रिय हुआ। 18 सितंबर को मानवेंद्र सिंह और ललिता यादव को भोपाल तलब कर सार्वजनिक बयानबाजी न करने की हिदायत दी गई।

रीवा में भी सांसद-विधायक आए आमने-सामने
रीवा में 15 सितंबर को ओवर ब्रिज के लोकार्पण कार्यक्रम में सांसद जनार्दन मिश्रा और विधायक सिद्धार्थ तिवारी आमने-सामने आ गए थे। सांसद मिश्रा ने अपने भाषण के दौरान सिद्धार्थ तिवारी के दादा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को लेकर टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा कि यहां की सड़कें पहले बहुत खराब थीं, तब श्रीनिवास तिवारी नेता हुआ करते थे। वे अपने जीवन में एक गड्ढा तक भरवा नहीं पाए, फिर भी उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीनिवास तिवारी ने आतंक, लूट, गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार की राजनीति की है। ये सारी बातें उन्हीं की बगल में बैठे और श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी को नागवार गुजरी। अपने भाषण में पोते ने बताया कि उनके दादा ने क्षेत्र के लिए क्या किया था।

रायसेन में सांसद का नाम पहले छपने से मंत्री नाराज
रायसेन में शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर को अभिनव गरिमा विद्या निकेतन हायर सेकेंडरी स्कूल में शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। स्कूल प्रबंधन ने कार्यक्रम में होशंगाबाद के सांसद दर्शन सिंह चौधरी और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा राज्यमंत्री और स्थानीय विधायक नरेंद्र शिवाजी पटेल को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था।
जो कार्ड छपा था, उसमें सांसद दर्शन सिंह का नाम पहले और मंत्री का नाम बाद में था। पटेल ने इस पर आपत्ति दर्ज की। जिला शिक्षा अधिकारी डीडी रजक ने इसे नियमों के खिलाफ बताते हुए स्कूल प्रबंधन को 12 सितंबर को नोटिस थमा दिया और तीन दिन में जवाब मांगा। मामले का खुलासा तब हुआ, जब नोटिस सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।

शिक्षक सम्मान समारोह के लिए स्कूल प्रबंधन ने यह आमंत्रण पत्र छपवाया था।
नया नहीं है, सांसदों का विधायकों से विवाद…
साध्वी प्रज्ञा ने सुदेश राय पर लगाया था अवैध शराब बेचने का आरोप
ये विवाद लोकसभा चुनाव से पहले 7 मार्च 2024 को सामने आया था। भोपाल की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने सीहोर से बीजेपी विधायक सुदेश राय पर अवैध शराब बेचने का आरोप लगाया था। सीहोर के खजुरिया कलां में शराब दुकान का ताला तोड़कर प्रज्ञा ठाकुर ने बोतलें तोड़ते हुए कहा था- मुझे शर्म आ रही है कि ये दुकान हमारे विधायक सुदेश राय की है।
बाद में जब खुलासा हुआ कि दुकान विधायक की नहीं, बल्कि किसी महेश गौर की है तो सांसद ने मामले से दूरी बना ली थी। सुदेश राय ने इसकी शिकायत संगठन से कर दी थी।
पूर्व विधायकों के निशाने पर आ गए थे खंडवा सांसद
ये मामला विधानसभा चुनाव के दौरान का है, जब खंडवा सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल के खिलाफ पूर्व विधायकों ने मोर्चा खोल दिया था। दरअसल, भाजपा ने विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र के 4 सीटिंग एमएलए खंडवा से देवेंद्र वर्मा, पंधाना से राम दांगोरे, नेपानगर से सुमित्रा कास्डेकर और बागली से पहाड़ सिंह का टिकट काट दिया था।
इन नेताओं ने आरोप लगाया था कि सांसद के इशारे पर पार्टी ने उनके टिकट काटे। इनकी जगह कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए नेताओं को टिकट दिए गए। विधायकों ने लोकसभा चुनाव से पहले पाटिल के विरोध में मुहिम छेड़ दी थी। संगठन ने जैसे-तैसे इन नेताओं की नाराजगी को दूर किया।

खंडवा में पिछले साल चार पूर्व विधायक, सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल के विरोध में उतर गए थे।
बीजेपी में नेताओं के बीच क्यों बढ़ रहे विवाद
इसे समझने के लिए फ्लैश बैक में चलते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले 6 अप्रैल 2024 को भाजपा का स्थापना दिवस था। इस दिन प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री और भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने मीडिया को बताया था कि पिछले तीन माह में 2.58 लाख से अधिक लोग भाजपा में शामिल हो गए हैं। इनमें से 1.26 लाख से अधिक लोग एक ही दिन में भाजपा में शामिल हुए।
इनमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के बड़े नेता, जिनमें मौजूदा विधायक से लेकर पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और मौजूदा महापौर शामिल थे। डॉ. मिश्रा ने यह दावा भी किया था कि पार्टी में शामिल होने वालों में से 90% से अधिक नेता-कार्यकर्ता कांग्रेसी हैं।
कांग्रेसियों को पार्टी में शामिल करने के पीछे क्या रणनीति
एक्सपर्ट का कहना है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में एक खास रणनीति के तहत काम कर रही थी। इसके जरिए वह मनोवैज्ञानिक तौर पर कांग्रेस को कमजोर करने के साथ लोकसभा चुनाव में रेड जोन वाली पांच लोकसभा सीटें- मंडला, छिंदवाड़ा, मुरैना, भिंड और ग्वालियर में जीत पक्की करना चाहती थी।
दरअसल, विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। इसका असर लोकसभा चुनाव पर न पड़े, इस वजह से बीजेपी ने इन पांचों संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस के नेताओं को पार्टी में शामिल कराया था। इन्हें जिला और प्रदेश स्तर में संगठन के पदों पर एडजस्ट किया गया।

21 मार्च को कमलनाथ के करीबी दीपक सक्सेना के बेटे अजय सक्सेना ने 200 लोगों के साथ बीजेपी जॉइन की थी।
एक्सपर्ट बोले- मूल कैडर की उपेक्षा भाजपा के लिए खतरे की घंटी
वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं, ‘कांग्रेस से आकर पदाधिकारी बने नेताओं से बीजेपी के पुराने नेताओं का समन्वय नहीं बन पा रहा है। इसी की वजह से विवाद सामने आ रहे हैं। टीकमगढ़ और छतरपुर के विधायकों ने आरोप भी लगाए हैं कि कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं को सांसद प्रतिनिधि बनाया गया है। विधायक सिद्धार्थ तिवारी भी कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हैं।’
सिंह ये भी कहते हैं कि ये मसला नया नहीं है। साल 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक बीजेपी में शामिल हुए थे, तभी से पार्टी में समन्वय की कमी नजर आ रही है। इसी के चलते विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के कई नेताओं ने पार्टी भी छोड़ी। इनमें रुस्तम सिंह, भंवर सिंह शेखावत, वीरेंद्र रघुवंशी, दीपक जोशी जैसे कई बड़े नेता शामिल हैं।
वे कहते हैं कि दूसरे दलों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में लेने का बीजेपी को राजनीतिक फायदा हो सकता है, लेकिन सत्ता में बंटवारे में मूल कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होने से गुटबाजी अंदर ही अंदर पनप रही है। यह केवल मध्यप्रदेश में ही नहीं, उत्तर प्रदेश जैसे बाकी राज्यों में भी देखा जा रहा है।

पूर्व मंत्री विश्नोई बोले- गांठ तो पड़ ही गई है, अब कोई गुंजाइश नहीं
बीजेपी में कैडर की उपेक्षा का मसला पूर्व मंत्री और जबलपुर के पाटन से विधायक अजय विश्नोई समय-समय पर उठाते रहे हैं। अब सामने आए ताजा विवादों को लेकर उन्होंने भास्कर से कहा, ‘कांग्रेस और बीजेपी दो विपरीत विचारधाराओं की पार्टी हैं। ऐसे में गांठ तो पड़ ही गई है। नेताओं के बीच समन्वय होने की गुंजाइश बहुत ज्यादा दिखाई नहीं देती। लोकसभा चुनाव से पहले बिना जांच परख किए, जिसे चाहे उसे पार्टी में शामिल कर लिया।’
इससे बीजेपी को फायदा हुआ या नुकसान, इसे लेकर वे जबलपुर का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि बीजेपी ने जबलपुर लोकसभा सीट का चुनाव 4 लाख 86 हजार वोटों से जीता लेकिन विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा में कम वोट मिले।
लोकसभा चुनाव से पहले सिहोरा विधानसभा में कांग्रेस की दावेदार एकता ठाकुर को बीजेपी में शामिल किया गया था। यहां बीजेपी को विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में 5 हजार वोट कम मिले। इसी तरह पाटन से दावेदार नीलेश अवस्थी को बीजेपी में लाया गया, यहां बीजेपी के 2 हजार वोट कम हो गए।
बरगी से जिला पंचायत सदस्य संध्या ठाकुर आईं तो यहां 7 हजार वोट कम हो गए। इससे साफ है कि कांग्रेस के लोगों को बीजेपी में शामिल कराने का फायदा कम नुकसान ज्यादा दिखाई दे रहा है।
