नई दिल्ली5 मिनट पहलेलेखक: गुरुदत्त तिवारी
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क्रिसिल के मुताबिक, राज्यों का सोशल वेलफेयर खर्च बढ़ गया है।
बिहार में चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए अब तक ₹33,920 करोड़ के वादे किए गए हैं। लेकिन लोकलुभावन वादों के साथ सत्ता में आए सियासी दलों को राज्यों में वित्तीय मोर्चे पर बड़ी मुश्किल आ रही है।
ब्याज अदायगी और वेतन-भत्ते जैसे खर्च तो काट नहीं सकते। उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा चुनावी वादे पूरे करने में जा रहा है। इसके चलते सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए सरकारी खर्च में उनके हाथ तंग हैं।
तेलंगाना सरकार का कमाई का 57% चुनावी वादों में, कमाई का 80% हिस्सा वेतन-भत्तों पर जा रहा है। यही सरकार पुरानी पेंशन का वादा लाई थी। लाड़ली बहन योजना पर कमाई का 22% हिस्सा चला जाता है।
6 गारंटी के वादे के साथ सत्ता में आई कर्नाटक सरकार की कमाई का 35% हिस्सा इन्हीं गारंटी को पूरा करने में जा रहा है। 40% राशि वेतन-भत्ते और कर्ज के ब्याज चुकाने में चली जाती है। इससे राज्य सरकार को सड़क की मरम्मत तक के लिए बजट जुटाने में दिक्कतें आ रही हैं।
मध्य प्रदेश में 2024-25 में उधारी बड़े राज्यों में सर्वाधिक बढ़ी हैं। कमाई का 42% वेतन-भत्ते, ब्याज, 27% मुफ्त की योजना में जा रहा है। छत्तीसगढ़ में खुद की कमाई की 18% राशि वादे पूरे करने पर खर्च हो रही है। स्वास्थ्य पर खर्च घटा है।
बिहार: ₹33,920 करोड़ के नए वादे, 62% खर्च होगा
- आगामी चुनाव के लिए ₹33,920 करोड़ के नए वादे किए। इन पर खुद की कमाई का 62.46% खर्च हो जाएगा।
- अगली सरकार इन वादों से सत्ता में आई तो सरकार का खर्च 1.26 लाख करोड़ हो जाएगा, जो कुल कमाई का 233.52% हो जाएगा। यानी कमाई से खर्च 133.32% ज्यादा हो जाएगा।
- 2024-25 में टैक्स से कमाई ₹54,300 करोड़ थी। वेतन-भत्ते, पेंशन, कर्ज का ब्याज चुकाने में कमाई का 171% खर्च करता है। शेष पैसा केंद्र से विशेष पैकेज में मिलता है।
बाजार से कर्ज लेकर खर्च कर रहे राज्य
देश की प्रमुख प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक, राज्यों का सोशल वेलफेयर खर्च बढ़ गया है। खपत को बढ़ावा देने के लिए बाजार से कर्ज लेकर खर्च कर रहे हैं। इससे वित्तीय सेहत बिगड़ रही है। आरबीआई भी चेता चुका है कि बेवजह खर्चे आर्थिक परेशानियां खड़ी करेंगे।
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