4 घंटे पहले
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महाभारत का युद्ध खत्म हो चुका था। भीम ने दुर्योधन को अधमरा करके छोड़ दिया था। दुर्योधन कीचड़ भरे गड्ढे में पड़ा हुआ था, उस समय द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वथामा उससे मिलने पहुंचा। वह दुर्योधन को मित्र मानता था, उसे मरता देखकर वह बहुत दुखी हुआ। उसने दुर्योधन से कहा कि मित्र, बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?
दुर्योधन ने अश्वत्थामा से कहा कि पांडवों ने मेरे सभी भाई मार दिए, मित्रों और रिश्तेदारों को भी जीवित नहीं छोड़ा, मेरे गुरु, पितामह को भी मार दिया, लेकिन मरते-मरते मुझे इस बात का अफसोस है कि पांडवों में से एक भी भाई नहीं मरा। कोई एक भी मर जाता तो मुझे संतोष मिलता।
क्रोधित अश्वथामा ने दुर्योधन को वचन दिया कि मैं कम से कम किसी एक पांडव को जरूर मार दूंगा। इसके बाद दुर्योधन ने अश्वत्थामा को कौरव सेनापति नियुक्त कर दिया। अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य के वध की वजह से भी बहुत गुस्से में था। मित्र दुर्योधन को मरते देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया।
अश्वथामा ने विचार किया कि रात में जब पांडव अपने शिविर में सो रहे होंगे, तब मैं धोखे से उनका वध कर दूंगा। श्रीकृष्ण अश्वथामा की योजना समझ गए थे, इसलिए उन्होंने पांचों पांडवों को उनके शिविर से हटा लिया था, उनकी जगह द्रौपदी के पांचों पुत्र सो रहे थे। पांचों पांडवों से द्रौपदी को पांच पुत्र हुए थे। अश्वथामा ने रात में उन पांचों पुत्रों को मार डाला।
पुत्रों के मरने के बाद पांडवों ने अश्वथामा को पकड़ लिया और उसे द्रौपदी के सामने लाया गया। पांच पुत्रों का वध करने वाले अश्वथामा को देखकर द्रौपदी ने कहा कि ये तो हमारे गुरु का बेटा है। अगर हम इसका वध करेंगे तो गुरु माता को वही दुख होगा जो मुझे हो रहा है। इसे कोई उचित दंड देकर जीवित छोड़ दो।
इसके बाद अश्वत्थामा ने अर्जुन को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र प्रकट कर लिया और दूसरी ओर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र निकाल लिया। अगर ये दोनों ब्रह्मास्त्र आपस में टकराते तो पूरी सृष्टि नष्ट हो जाती। उस समय श्रीकृष्ण और वेद व्यास के कहने पर अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेने की विधि मालूम नहीं थी। उसने ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया, ताकि पांडवों का वंशज खत्म हो जाए।
श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा की। इसके बाद भगवान ने अश्वत्थामा के माथे से मणि निकाल ली और उसे कलियुग के अंत तक भटकते रहने का शाप दे दिया।
प्रसंग की सीख
किसी भी समस्या का सबसे बुरा मार्ग अक्सर क्रोध में लिया गया निर्णय होता है। अश्वथामा को बदला लेने की भावना की वजह से कलियुग के अंत तक भटकते रहना का शाप मिला। उसने तत्कालिक भावनाओं में आकर रात में पांडवों के पुत्रों का वध कर दिया।
जीवन में जब भी कोई चुनौती आती है, तो पहले शांति से स्थिति का आकलन करना चाहिए। त्वरित, बिना सोचे-समझे लिए गए निर्णय अक्सर नुकसान कराते हैं, व्यक्तिगत रिश्ते हों या कोई अन्य काम आत्म-नियंत्रण और थोड़ा रुककर सोचना बहुत जरूरी है। तभी हम परेशानियों से बच सकते हैं।
